ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 86/ मन्त्र 3
ऋषिः - कृष्णो विश्वको वा कार्ष्णिः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - विराड्जगती
स्वरः - निषादः
यु॒वं हि ष्मा॑ पुरुभुजे॒ममे॑ध॒तुं वि॑ष्णा॒प्वे॑ द॒दथु॒र्वस्य॑इष्टये । ता वां॒ विश्व॑को हवते तनूकृ॒थे मा नो॒ वि यौ॑ष्टं स॒ख्या मु॒मोच॑तम् ॥
स्वर सहित पद पाठयु॒वम् । हि । स्म॒ । पु॒रु॒ऽभु॒जा॒ । इ॒मम् । ए॒ध॒तुम् । वि॒ष्णा॒प्वे॑ । द॒दथुः॑ । वस्यः॑ऽइष्टये । ता । वा॒म् । विश्व॑कः । ह॒व॒ते॒ । त॒नू॒ऽकृ॒थे । मा । नः॒ । वि । यौ॒ष्ट॒म् । स॒ख्या । मु॒मोच॑तम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
युवं हि ष्मा पुरुभुजेममेधतुं विष्णाप्वे ददथुर्वस्यइष्टये । ता वां विश्वको हवते तनूकृथे मा नो वि यौष्टं सख्या मुमोचतम् ॥
स्वर रहित पद पाठयुवम् । हि । स्म । पुरुऽभुजा । इमम् । एधतुम् । विष्णाप्वे । ददथुः । वस्यःऽइष्टये । ता । वाम् । विश्वकः । हवते । तनूऽकृथे । मा । नः । वि । यौष्टम् । सख्या । मुमोचतम् ॥ ८.८६.३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 86; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
O givers of good health and nourishment to all living beings, you bring knowledge, awareness and wisdom to the aspiring devotee of omnipresent divinity for the attainment of desired honour and excellence. That’s why the whole world calls on you for the health of body and mind. Ashvins, forsake us not, deprive us not of your friendship.
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वानांकडून प्रबोध झाल्यावर त्यानुसार आचरण करून उपासक प्राण अपानच्या क्रियांवर नियंत्रण ठेवू शकतो. ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(युवं हि) निश्चय ही तुम दोनों [प्राण व अपान] (वस्यः इष्टये) अतिशयमात्रा में ऐश्वर्य का संगम कराने हेतु (विष्णाप्वे) विद्या पारंगत विद्वानों की प्राप्ति बोध में (एधतुम्) समृद्धि को (ददथुः) धारण कराते हो। (तां वाम्) उन तुम दोनों की, (विश्वकः) सब पर कृपा करने वाला विद्वान् (भिषक् तनू कृथे) देह की रक्षा हेतु, (हवते) वन्दना करता है--तुम्हारे गुणों का वर्णन करता हुआ उनका अध्ययन करता है। (नः मा वियौष्टम्) तुम दोनों हमसे अलग न होवो; (सख्या) अपनी मित्रता से हमें मा (मुमोचतम्) मुक्त न करो॥३॥
भावार्थ
विद्वानों से बोध पा कर तथा उसके अनुसार आचरण कर उपासक प्राण-अपान की क्रियाओं को अपने नियंत्रण में ला सकता है॥३॥
विषय
उत्तम स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे ( पुरु भुजा) बहुतों को पालन करने में समर्थ पुरुषो ! आप दोनों ( विष्णाप्वे ) व्यापक शक्तिमान् प्रभु को प्राप्त करने वाले को ( इष्टये ) यज्ञ के निमित्त ( वस्यः ) उत्तम धन और ( एधतुं ददथुः स्म ) वृद्धि के साधन देते रहो। ( ता वां० इत्यादि पूर्ववत् )
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कृष्णो विश्वको वा कार्ष्णिऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, ३ विराड् जगती। २, ४, ५ निचृज्जगती॥
विषय
पुरुभुजा [अश्विना]
पदार्थ
[१] हे प्राणापानो! (युवम्) = आप दोनों (हि ष्मा) = निश्चय से (पुरुभुजा) = खूब ही पालन करनेवाले हो आप (विष्णाप्वे) = [विष्णुं कर्मणा व्याप्नोति] यज्ञादि कर्मों के द्वारा प्रभु को प्राप्त करनेवाले इस के लिए (एधतुम्) = वृद्धि के साधनभूत धन आदि को (ददधुः) = देते हो। आप (वस्य:) = प्रशस्त वसुओं के द्वारा (इष्टये) = इष्ट प्राप्ति के लिये होते हो। [२] (ता वाम्) = उन आप दोनों को (विश्वक:) = यह अपनी पूर्ण उन्नति करनेवाला (विश्वक तनूकृथे) = वासनारूप शत्रुओं को क्षीण करने के लिये हवते पुकारता है। आप (नः) = हमें (मा वि यौष्टम्) = मत छोड़ जाओ। (सख्या) = हमारे साथ अपनी मित्रताओं को मत नष्ट करो और आप (मुमोचतम्) = हमें रोगों व वासनारूप शत्रुओं से मुक्त करो।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणापान ही हमारा पालन कर रहे हैं। ये ही हमारी वृद्धि का कारण होते हैं। ये हमें शत्रुओं से मुक्त करें।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal