Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 87 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 87/ मन्त्र 5
    ऋषिः - कृष्णो द्युम्नीको वा वासिष्ठः प्रियमेधो वा देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    आ नू॒नं या॑तमश्वि॒नाश्वे॑भिः प्रुषि॒तप्सु॑भिः । दस्रा॒ हिर॑ण्यवर्तनी शुभस्पती पा॒तं सोम॑मृतावृधा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नू॒नम् । या॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । अश्वे॑भिः । प्रु॒षि॒तप्सु॑ऽभिः । दस्रा॑ । हिर॑ण्यवर्तनी॒ इति॒ हिर॑ण्यऽवर्तनी । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑ । पा॒तम् । सोम॑म् । ऋ॒त॒ऽवृ॒धा॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ नूनं यातमश्विनाश्वेभिः प्रुषितप्सुभिः । दस्रा हिरण्यवर्तनी शुभस्पती पातं सोममृतावृधा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । नूनम् । यातम् । अश्विना । अश्वेभिः । प्रुषितप्सुऽभिः । दस्रा । हिरण्यवर्तनी इति हिरण्यऽवर्तनी । शुभः । पती इति । पातम् । सोमम् । ऋतऽवृधा ॥ ८.८७.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 87; मन्त्र » 5
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Ashvins, holy powers of humanity and nature living and acting in complementarity, destroyers of evil and negativities, moving by golden paths of virtue, protectors and promoters of the good and positive values of life, growing to higher life by truth, observing and advancing the laws of truth by following paths of truth, come with your mind and senses inspired and strengthened by nature and enlightenment and enjoy the soma delight of life.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जीवनयात्रेचे मुख्य साधक ज्ञानेन्द्रिये कर्मेन्द्रिये आहेत. त्यांना प्राणशक्तीद्वारे बलवान ठेवून सुखपूर्वक जीवनयात्रा शक्य आहे. या प्रकारे जीवनयात्राकरणारे स्त्री-पुरुष दु:ख नष्ट करतात. हितकारक रमणीय मार्गावर चालतात. आपले यथार्थ ज्ञान वाढवित सदैव कल्याण करून घेतात. ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे (अश्विना) गृहस्थ नर-नारियो! (प्रुषितप्सुभिः) प्राणबल से सिंचित (अश्वैः) बलशाली इन्द्रियों से वहन किये हुए (नूनम्) निश्चय ही (आ यातम् स्व) जीवनयज्ञ में पधारो; अपना जीवन-यज्ञ आरम्भ करो। जीवन-यज्ञ में तुम (दस्रा) दुःखनाशक बने हुए, (हिरण्यवर्तनी) हित व रमणीय मार्ग पर चलने वाले, (शुभस्पती) कल्याण पालक, (ऋतावृधा) यथार्थज्ञान को बढ़ाते हुए (सोमम्) शास्त्रबोधादिरूप ऐश्वर्य के सार का (पातम्) उपभोग करो॥५॥

    भावार्थ

    ज्ञान एवं कर्मेन्द्रियाँ ही जीवनयात्रा के मुख्य साधक हैं; इन्हें प्राण शक्ति से बलवान् रखते हुए ही सुखपूर्वक जीवनयात्रा सम्भव है। इस भाँति जीवन यात्रा करने वाले नर-नारी दुःखों को नष्ट करते हैं, हित व रमणीय मार्ग का अनुगमन करते हैं, अपने यथार्थ ज्ञान को बढ़ाते हुए सदैव कल्याण बनाए रखते हैं॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राजा और शासकों अश्वादि सैन्य एवं सेनापति, उन के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (अश्विना) शीघ्र गमन करने वाले अश्वों और इन्द्रियों के स्वामी, नायक जनो ! आप दोनों ( प्रुषित-प्सुभिः ) स्निग्ध, पूर्ण वा जलादि से सिक्त अभिषेचित रूप वाले ( अश्वेभिः ) अश्वों और विद्यावान् पुरुषों सहित ( नूनं आयातम् ) अवश्य आवो। आप दोनों ( दस्रा ) बाह्य अन्तःशत्रुओं के नाशक ( हिरण्य-वर्त्तनी ) सुवर्ण के रथ वाले वा हितरमणीय मार्ग के अवलम्बक (शुभः-पती) उत्तम शोभा वा कल्याण के पालक, ( ऋत-वृधा ) सत्य ज्ञान के वर्धक और सत्य के बल से बढ़ने वाले आप दोनों ( सोमम् पातम् ) ऐश्वर्य का पालन और उपभोग करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कृष्णो द्युम्नी द्युम्नीको वा वासिष्ठ आंगिरसः प्रियमेधो वा ऋषिः॥ अश्विनी देवते॥ छन्दः—१, ३ बृहती। ५ निचृद् बृहती। २, ४, ६ निचृत् पंक्तिः॥ षडृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रुषितप्सु अश्व [स्निग्धरूप इन्द्रयाश्व]

    पदार्थ

    [१] हे (अश्विना) = प्राणापानो! आप (नूनम्) = निश्चय से (प्रुषितप्सुभिः) = स्निग्धरूप-दीप्तरूपवाले-शक्ति से सिक्तरूपवाले (अश्वेभिः) = इन्द्रियाश्वों के साथ (आयातम्) = हमें प्राप्त होओ। सोमरक्षण द्वारा आप हमारी इन्द्रियों को शक्तिसिक्त बनाओ। [२] (दस्त्रा) = हमारे शत्रुओं का आप ही क्षय करनेवाले हो । शत्रुक्षय के द्वारा आप ही (हिरण्यवर्तनी) = हमारे जीवन को ज्योतिर्मय मार्गवाला बनाते हो और इस प्रकार (शुभस्पती) = शुभ का रक्षण करते हो। हे (ऋतावृधा) = ऋत का [सत्य का व यज्ञ का ] वर्धन करनेवाले प्राणापानो! आप (सोमं पातम्) = हमारे जीवनों में सोम का रक्षण करो।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणापान सोमरक्षण द्वारा हमारे इन्द्रियाश्वों को दीप्तरूपवाला बनाते हैं। ये हमारे शत्रुओं का क्षय करनेवाले, जीवनमार्ग को ज्योतिर्मय बनानेवाले व शुभ के रक्षक हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top