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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 102 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 102/ मन्त्र 4
    ऋषिः - त्रितः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    ज॒ज्ञा॒नं स॒प्त मा॒तरो॑ वे॒धाम॑शासत श्रि॒ये । अ॒यं ध्रु॒वो र॑यी॒णां चिके॑त॒ यत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ज॒ज्ञा॒नम् । स॒प्त । मा॒तरः॑ । वे॒धाम् । अ॒शा॒स॒त॒ । श्रि॒ये । अ॒यम् । ध्रु॒वः । र॒यी॒णाम् । चिके॑त । यत् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जज्ञानं सप्त मातरो वेधामशासत श्रिये । अयं ध्रुवो रयीणां चिकेत यत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जज्ञानम् । सप्त । मातरः । वेधाम् । अशासत । श्रिये । अयम् । ध्रुवः । रयीणाम् । चिकेत । यत् ॥ ९.१०२.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 102; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सप्त मातरः) महत्तत्त्वादिप्रकृतयः सप्तसङ्ख्याकाः (जज्ञानम्) आविर्भूतं (वेधाम्) परमात्मानम् (श्रिये) ऐश्वर्याय (अशासत) आश्रयन्ते (अयम्) अयं परमात्मा (ध्रुवः) अचलः (यत्) यश्च (रयीणाम्) सर्वलोकैश्वर्याणां (चिकेत) ज्ञातास्ति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सप्त, मातरः) महत्तत्त्वादि सातों प्रकृतियें (जज्ञानं) आविर्भाव को प्राप्त (वेधां) जो परमात्मा है, (श्रिये) ऐश्वर्य्य के लिये उसको (अशासत) आश्रयण करती हैं, (अयं) उक्त परमात्मा (ध्रुवः) अचलरूप से विराजमान है और (यत्) जो (रयीणां) सब लोक-लोकान्तरों के ऐश्वर्य्य का (चिकेत) ज्ञाता है ॥४॥

    भावार्थ

    इसमें महत्तत्त्वादि सातों प्रकृतियों का वर्णन है ॥४॥

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    विषय

    प्रभु के अधीन सब जीव प्रेम से रहें तो उत्तम है।

    भावार्थ

    (अयम् ध्रुवः) यह नित्य, वा सब जगत् का सञ्चालक और धारक प्रभु (रयीणां) समस्त ऐश्वर्यों को (चिकेत) जानता है। (मातरः) जगत् का निर्माण करने वाले प्रकृति के परमाणु, (सप्त) संख्या में सात प्रकृति विकृतियें उस (जज्ञानं) जगत् को उत्पन्न करने वाले (वेधाम्) विधाता, कर्त्ता की (श्रिये) हे मनुष्यो ! ऐश्वर्य लाभ और आश्रय के प्राप्ति के लिये (आ शासत) स्तुति करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    त्रित ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः–१–४, ८ निचृदुष्णिक्। ५-७ उष्णिक्। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    ध्रुवो रयीणाम्

    पदार्थ

    (जज्ञानम्) = शरीर में शक्ति का विकास करते हुए (वेधम्) = [विधाताम्] विशिष्ट रूप से धारण करनेवाले इस सोम को (सप्त-मातरः) = सात गायत्री आदि छन्दों में होने के कारण सात संख्या वाली वेदमातायें (श्रिये) = शोभा के लिये (आशासत) = उपदिष्ट करती हैं [अनु शासन्ति]। वेदमाता अपने सन्तान भूत जीवों के लिये यही उपदेश करती है कि यह सोम सुरक्षित हुआ हुआ तुम्हारी शोभा के लिये होगा । (अयम्) = यह सोम ही (यत्) = क्योंकि (रयीणाम्) = सब ऐश्वर्यों का (ध्रुवः) = निश्चित आधार (चिकेत) = जाना जाता है। सारे ऐश्वर्य इस सोम से ही प्रादुर्भूत होते हैं । यही उनका ध्रुव सोम है।

    भावार्थ

    भावार्थ- वेदमाता का यही उपदेश है कि 'सोम का रक्षण करो। यह तुम्हारी श्री का कारण होगा । यही तुम्हें सब ऐश्वर्यों को प्राप्त करायेगा' ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Seven measured motherly orders of existence at the material, pranic and psychic level join, reveal and celebrate Soma manifesting in beauty and glory, this constant unmoved mover who, being omnipresent and pervasive, knows of the wealth and sublimity of the universe.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    यात महत्तत्त्व इत्यादी सातही प्रकृतीचे वर्णन आहे. ॥४॥

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