ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 106/ मन्त्र 6
अ॒स्मभ्यं॑ गातु॒वित्त॑मो दे॒वेभ्यो॒ मधु॑मत्तमः । स॒हस्रं॑ याहि प॒थिभि॒: कनि॑क्रदत् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्मभ्य॑म् । गा॒तु॒वित्ऽत॑मः । दे॒वेभ्यः॑ । मधु॑मत्ऽतमः । स॒हस्र॑म् । या॒हि॒ । प॒थिऽभिः॑ । कनि॑क्रदत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्मभ्यं गातुवित्तमो देवेभ्यो मधुमत्तमः । सहस्रं याहि पथिभि: कनिक्रदत् ॥
स्वर रहित पद पाठअस्मभ्यम् । गातुवित्ऽतमः । देवेभ्यः । मधुमत्ऽतमः । सहस्रम् । याहि । पथिऽभिः । कनिक्रदत् ॥ ९.१०६.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 106; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(देवेभ्यः) दिव्यसम्पत्तिमद्भ्यः (मधुमत्तमः) आनन्दमयो भवान् (अस्मभ्यं) अस्मदर्थं (गातुवित्तमः) शुभमार्गप्रापको भवतु (सहस्रं, पथिभिः) अनन्तशक्तिप्रदमार्गैः (कनिक्रदत्) गर्जन् (याहि) ज्ञानरूपगत्याः प्रदानं कुरुताम् ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(देवेभ्यः) दैवी सम्पत्तिवाले पुरुषों को लिये (मधुमत्तमः) आनन्दमय परमात्मन् (अस्मभ्यं) हमारे लिये (गातुवित्तमः) शुभ मार्गों की प्राप्ति करनेवाले हो और (सहस्त्रं, पथिभिः) अनन्त शक्तिप्रद मार्गों से (कनिक्रदत्) गर्जते हुए (याहि) आप ज्ञानरूपी गति को प्रदान करें ॥६॥
भावार्थ
परमात्मा अनन्त मार्गों द्वारा अपने ज्ञान का प्रकाश करता है अर्थात् इस विविध रचना से उसके भक्त अनन्त प्रकार से उसके ज्ञान को उपलब्ध करते हैं। अनन्त ब्रह्माण्डों की रचना द्वारा और इस विशाल नभोमण्डल में अपनी दिव्य ज्योतियों से परमात्मा सदैव गर्ज रहा है। परमात्मा का यही गर्जन है और निराकार परमात्मा किसी प्रकार भी गर्जन नहीं करता ॥६॥
विषय
गातुवित्तम:- मधुमत्तमः
पदार्थ
यह सोम (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (गातुवित्तमः) = अधिक से अधिक उत्तम मार्ग को प्राप्त करानेवाला है । इसके रक्षण से ही जीवन का मार्ग उत्तम बना रहता है। यह सोम (देवेभ्यः) = देववृत्ति वाले पुरुषों के लिये (मधुमत्तमः) = अतिशयेन माधुर्य को लिये हुए होता है । यह जीवन को माधुर्य से सिक्त कर देता है। 'भूयासं मधुसन्दृशः' यह प्रार्थना सोमरक्षण से ही पूर्ण होती है । हे सोम ! तू (कनिक्रदत्) = सदा उस प्रभु का आह्वान करता हुआ (पथिभिः) = मार्गों से, मार्ग पर चलने के द्वारा (सहस्र) = सदा आनन्दमय [सहस्र] 'अट्टहास' नाम वाले प्रभु को याहि प्राप्त होनेवाला हो । सुरक्षित सोम हमें प्रभु को प्राप्त कराता है। प्रभु का नाम ही 'अट्टहास' है, वे सदा आनन्दमय हैं। यह सब सृष्टि उस प्रभु की अद्भुत लीला है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें जीवन में मधुर वृत्तिवाला व मार्ग पर चलनेवाला बनकार प्रभु को प्राप्त कराता है ।
विषय
उसकी उपासना।
भावार्थ
हे प्रभो ! तू (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (गातुवित्-तमः) सर्वोपरि उपदेश ज्ञान देने वाला और मार्ग जानने वाला है। तू (देवेभ्यः) हम नाना जीवों के लिये (मधुमत्-तमः) अति मधुर आनन्द और ज्ञान को धारण करने वाला है। तू (सहस्रं पथिभिः) सहस्रों मार्गों से (कनि क्रदत्) उपदेश करता हुआ बरसते मेघवत् (याहि) प्राप्त है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषि:-१-३ अग्निश्चाक्षुषः। ४–६ चक्षुर्मानवः॥ ७-९ मनुराप्सवः। १०–१४ अग्निः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ३, ४, ८, १०, १४ निचृदुष्णिक्। २, ५–७, ११, १२ उष्णिक् । ९,१३ विराडुष्णिक्॥ चतुदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Best pioneer, path finder and highest honeyed joy for us, for the divines, come roaring by a thousand paths of light and holiness.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा अनंत मार्गांनी आपल्या ज्ञानाचा प्रकाश करतो. अर्थात, या विविध रचनेने त्याचे भक्त अनंत प्रकारांनी त्याचे ज्ञान उपलब्ध करतात. अनंत ब्रह्मांड रचनेद्वारे व या विशाल नभोमंडलात आपल्या दिव्य ज्योतींनी परमेश्वर सर्दव गर्जना करत आहे. परमेश्वराचे हेच गर्जन आहे व निराकार परमेश्वर इतर कोणत्याही प्रकारे गर्जन करत नाही. ॥६॥
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