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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 18/ मन्त्र 7
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    स शु॒ष्मी क॒लशे॒ष्वा पु॑ना॒नो अ॑चिक्रदत् । मदे॑षु सर्व॒धा अ॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । शु॒ष्मी । क॒लशे॑षु । आ । पु॒ना॒नः । अ॒चि॒क्र॒द॒त् । मदे॑षु । स॒र्व॒ऽधाः । अ॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स शुष्मी कलशेष्वा पुनानो अचिक्रदत् । मदेषु सर्वधा असि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । शुष्मी । कलशेषु । आ । पुनानः । अचिक्रदत् । मदेषु । सर्वऽधाः । असि ॥ ९.१८.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 18; मन्त्र » 7
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 8; मन्त्र » 7
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (शुष्मी) ओजस्वी (पुनानः) सर्वस्य पावयिता (सः) स परमात्मा (कलशेषु) वैदिकशब्देषु (अचिक्रदत्) ब्रवीति स एव (मदेषु) सर्वहर्षयुक्तवस्तुषु (सर्वधाः) सर्वविधशोभानां धारकः (असि) अस्ति ॥७॥ अष्टादशं सूक्तमष्टमो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (शुष्मी) ओजस्वी और (पुनानः) सबको पवित्र करनेवाला (सः) वह परमात्मा (कलशेषु) “कलं शवन्ति इति कलशा वैदिकशब्दाः” वैदिक शब्दों में (अचिक्रदत्) बोलता है (मदेषु) और हर्षयुक्त वस्तुओं में (सर्वधाः) सब प्रकार की शोभा को धारण करानेवाला (असि) वही है ॥७॥

    भावार्थ

    जिस प्रकार परमात्मा के अन्तरिक्ष उदर और द्युलोक मूर्धस्थानी रूपकालङ्कार से माने गये हैं, इसी प्रकार उसके शब्दों को भी रूपकालङ्कार से कल्पना की गयी है। वास्तव में वह परमात्मा ‘अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययम्’ कि वह शब्दस्पर्शादिगुणों से रहित है और अव्यय=अविनाशी है इत्यादि वाक्यों द्वारा शब्दादि गुणों से सर्वथा रहित वर्णन किया गया है। उपनिषदों का यह भाव भी ‘स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणम्’ यजु० ४०।८ कि वह निराकार परमात्मा सर्वत्र व्यापक है इत्यादि वेदमन्त्रों से लिया गया है ॥७॥ यह अठारहवाँ सूक्त और आठवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    'शुष्मी' सोम

    पदार्थ

    [१] (सः) = वह सोम (शुष्मी) = शत्रुशोषक बलवाला है। (कलशेषु) = सोलह कलाओं के निवास- स्थानभूत इन शरीरों में (आपुनानः) = समन्तात् पवित्रता को करता हुआ यह सोम अचिक्रदत्-प्रभु का आह्वान करता है । अर्थात् सोमरक्षक पुरुष प्रभु के आह्वान की वृत्तिवाला बनता है । एवं सोम हमें [क] शत्रु- शोषक बल प्राप्त कराता है, [ख] हमारे जीवनों को पवित्र करता है, [ग] और हमें प्रभु प्रवण बनाता है। [२] हे सोम ! तू (मदेषु) = उल्लासों के होने पर (सर्वधाः असि) = सबका धारण करनेवाला है। तू शत्रु-शोषक बल को प्राप्त कराके शरीरों को नीरोग बनाता है। पवित्रता के द्वारा मनों को निर्मल करता है। प्रभु सम्पर्क में लाकर हमें ज्ञान - ज्योति से दीप्त कर देता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमें शत्रु-शोषक शक्ति देता है । हमारे मनों को पवित्र करता है। हमें प्रभु सम्पर्क में लाकर ज्ञानदीप्त बनाता है।

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    विषय

    सर्वोपदेष्टा।

    भावार्थ

    (सः) वह (शुष्मी) बलवान् (कलशेषु) समस्त शरीरों में (पुनानः) पवित्र करता हुआ (आ अचिक्रदत्) जीव को उपदेश करता है। वही (मदेषु) समस्त आनन्दों के रूप में (सर्वधाः असि) सब का पोषक, सर्वप्रद है। इत्यष्टमो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः– १, ४ निचृद् गायत्री। २ ककुम्मती गायत्री। ३, ५, ६ गायत्री। ७ विराड् गायत्री॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord of bliss, all-powerful and all-purifying, you, who pervade all forms and regions of existence and proclaim your presence and power therein in action, are the sustainer of all in bliss divine.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या प्रकारे परमेश्वराचे उदर अंतरिक्ष व मूर्धस्थानी द्युलोक रूपकालंकाराने मानले गेलेले आहे. त्याच प्रकारे त्याच्या शब्दाचीही रूपकालंकाराने कल्पना केलेली आहे. वास्तविक तो परमात्मा ‘अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययम’ शब्द स्पर्श इत्यादी गुणांनी रहित आहे. अव्यय-अविनाशी आहे. इत्यादी वाक्यांद्वारे शब्द इत्यादी गुणांनी सर्वथा रहित आहे. उपनिषदांचा हा भाव ही ‘सपर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणम्’ यजु. ४०।८ तो निराकार परमात्मा सर्वत्र व्यापक आहे. इत्यादी वेदमंत्रातून घेतले गेलेले आहे. ॥७॥

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