ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 19/ मन्त्र 7
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
नि शत्रो॑: सोम॒ वृष्ण्यं॒ नि शुष्मं॒ नि वय॑स्तिर । दू॒रे वा॑ स॒तो अन्ति॑ वा ॥
स्वर सहित पद पाठनि । शत्रोः॑ । सो॒म॒ । वृष्ण्य॑म् । नि । शुष्म॑म् । नि । वयः॑ । ति॒र॒ । दू॒रे । वा॒ । स॒तः । अन्ति॑ । वा॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नि शत्रो: सोम वृष्ण्यं नि शुष्मं नि वयस्तिर । दूरे वा सतो अन्ति वा ॥
स्वर रहित पद पाठनि । शत्रोः । सोम । वृष्ण्यम् । नि । शुष्मम् । नि । वयः । तिर । दूरे । वा । सतः । अन्ति । वा ॥ ९.१९.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 19; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 7
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 7
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे परमात्मन् ! (शत्रोः) तव भक्तस्य रिपोः (वृष्ण्यम्) बलं (नितिर) नाशय तथा (नि शुष्मम्) तेजः तथा (वयः नि) अन्नाद्यैश्वर्यं नाशय यः शत्रुः (दूरे सतः) दूरे विद्यमानः (वा अन्ति) समीपे वा ॥७॥ एकोनविंशतितमं सूक्तं नवमो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे परमात्मन् ! (शत्रोः) शत्रु के (वृष्ण्यम्) बल को (नितिर) नाश करिये और (नि शुष्मम्) तेज को तथा (वयः नि) अन्नादि ऐश्वर्य को नाश करिये, जो शत्रु (दूरे सतः) दूर में विद्यमान है (वा अन्ति) समीप में ॥७॥ इस मन्त्र में परमात्मा ने जीवों के भावद्वारा अन्यायकारी शत्रुओं के नाश करने का उपदेश किया है। जिस देश में अन्यायकारियों के नाश करने का भाव नहीं रहता, वह देश कदापि उन्नतिशील नहीं हो सकता ॥७॥ यह उन्नीसवाँ सूक्त और नवम वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
नीरोग व निर्मल
पदार्थ
[१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (शत्रोः) = काम-क्रोध आदि शत्रुओं के (वृष्णयम्) = बल को (नितिर) = नष्ट कर । सोमरक्षण के द्वारा हम काम-क्रोध आदि शत्रुओं को निर्बल करके इन्हें विनष्ट कर सकें। [२] [शत्रोः] शरीर को विनष्ट करनेवाले रोगकृमिरूप शत्रुओं के (शुष्मम्) = शोषक बल को (नितिर) = नष्ट कर । रोगकृमियों के विनाश से हम स्वस्थ बनें। दूरे (वा सतः) = दूर होनेवाले, रोगकृमि रूप शत्रुओं की (वा) = तथा (अन्ति) = [सतः ] समीप होनेवाले 'मनसिज' काम आदि शत्रुओं की (वयः) = उमर को (नितिर) = नष्ट कर । अथवा (वयः) = [वय् गतौ ] इनकी गति को विनष्ट कर । इन रोगकृमि बाहर से हमारे पर आक्रमण करते हैं, काम-क्रोध आदि अन्दर 'दूरे वा सतः' तथा 'अन्ति वा सतः ' इन शब्दों से स्मरण किया है।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से हम आन्तरिक काम-क्रोध आदि शत्रुओं को तथा बाह्य रोगकृमि रूप शत्रुओं की गति को विनष्ट करके अपने जीवन को नीरोग व निर्मल बना पायें । इसी सोमरक्षण के लाभ को अगले सूक्त में देखिये-
विषय
शत्रुनाश की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (सोम) ऐश्वर्यवन् ! तू (दूरे सतः वा, अन्ति सतः वा) दूर वा पास रहते हुए (शत्रोः वृष्ण्यं नि तिर) शत्रु के बल का नाश कर (शुष्मं नि तिर) शोषणकारी अत्याचार को दूर कर, (वयः नि तिर) उसके आयु वा तेज का नाश कर। इति नवमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
आसतः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १ विराड् गायत्री। २, ५, ७ निचृद् गायत्री। ३, ४ गायत्री। ६ भुरिग्गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, lord of peace, power and purification, negate, overcome and win over the exuberance, power and exploitation, and the spirit of the enemy’s enmity whether he is far or near.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमात्म्याने जीवांकडून अन्यायकारी शत्रूंचा नाश करण्याचा उपदेश केलेला आहे. ज्या देशात अन्यायकारींचा नाश केला जात नाही. तो देश कधीही उन्नतिशील होऊ शकत नाही. ॥७॥
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