ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 26/ मन्त्र 3
ऋषिः - इध्मवाहो दाळर्हच्युतः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
तं वे॒धां मे॒धया॑ह्य॒न्पव॑मान॒मधि॒ द्यवि॑ । ध॒र्ण॒सिं भूरि॑धायसम् ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । वे॒धाम् । मे॒धया॑ । अ॒ह्य॒न् । पव॑मानम् । अधि॑ । द्यवि॑ । ध॒र्ण॒सिम् । भूरि॑ऽधायसम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं वेधां मेधयाह्यन्पवमानमधि द्यवि । धर्णसिं भूरिधायसम् ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । वेधाम् । मेधया । अह्यन् । पवमानम् । अधि । द्यवि । धर्णसिम् । भूरिऽधायसम् ॥ ९.२६.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 26; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(तम् वेधाम्) तं स्रष्टारं परमात्मानं (मेधया अह्यन्) विद्वांसः स्वबुद्धिविषयीकुर्वन्ति (पवमानम्) यः सर्वपविता (अधि द्यवि) द्युलोकमधिष्ठानरूपेण अधिष्ठाता (धर्णसिम्) सर्वाधारः (भूरिधायसम्) अनेकवस्तूनामुत्पादकश्चास्ति ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(तम् वेधाम्) उस सृष्टिकर्ता परमात्मा को (मेधया अह्यन्) विद्वान् लोग अपनी बुद्धि का विषय बनाते हैं, जो (पवमानम्) सबको पवित्र करनेवाला है और (अधि द्यवि) जो द्युलोक में अधिष्ठातारूप से स्थित है (धर्णसिम्) सबको धारण करनेवाला तथा (भूरिधायसम्) अनेक वस्तुओं का रचयिता है ॥३॥
भावार्थ
उक्त परमात्मा जो सब लोक-लोकान्तरों का आधार है, उसको योगादि साधनों द्वारा संस्कृत बुद्धि से योगीजन विषय करते हैं। इस मन्त्र में जो परमात्मा को वेधा अर्थात् “विधति लोकान् विदधातीति वा वेधाः” विधातारूप से वर्णन किया है, इसका तात्पर्य यह है कि परमात्मा सब वस्तुओं का निर्माणकर्ता है, इसी अभिप्राय से “सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्” ऋ. सू. १९ में यह कथन किया है कि सूर्य चन्द्रमा आदि ज्योतिर्मय पदार्थों का निर्माण एकमात्र परमात्मा ने ही किया है। सूर्य चन्द्रमा यहाँ उपलक्षण है, वस्तुतः सब ब्रह्माण्डों का निर्माता एक परमात्मा ही है, कोई अन्य नहीं ॥३॥
विषय
धर्णसिं भूरिधायसम्
पदार्थ
[१] (तम्) = उस (वेधाम्) = हमारे जीवन में सब शक्तियों के विधाता [निर्माता] (पवमानम्) = पवित्र करनेवाले सोम को (मेधया) = मेधा बुद्धि की प्राप्ति के हेतु से (अधि द्यवि) = मस्तिष्करूप द्युलोक में (अह्यन्) = प्रेरित करते हैं। जब सोम की शरीर में ऊर्ध्वगति होती है, तो यह मस्तिष्क में ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है । इस प्रकार यह सोम बुद्धि की सूक्ष्मता का कारण बनता है। [२] (धर्णसिम्) = यह सोम धारक हैं। शरीर में व्याप्त होने पर अंग-प्रत्यंग की शक्ति को दृढ़ करता है। (भूरिधायसम्) = यह सोम खूब ही ज्ञानदुग्ध का पान करानेवाला है [ धेट् पाने] । बुद्धि को तीव्र करके यह सोम ज्ञानदुग्ध का पान करानेवाला होता है।
भावार्थ
भावार्थ-रक्षित हुआ हुआ सोम हमारी सब शक्तियों का निर्माण करनेवाला व बुद्धि को दीप्त करनेवाला है। इस प्रकार यह धारक व ज्ञानदुग्ध का पिलानेवाला होता है।
विषय
धारणावती बुद्धि द्वारा भगवान् की प्राप्ति।
भावार्थ
(तं) उस (वेधाम्) जगत् के विधाता, (द्यवि अधि पवमानम्) तेजोयुक्त समस्त ब्रह्माण्ड में व्यापक (धर्णसिं) सब के आश्रय, (भूरि-धायसम्) बहुत से अनेक जीवों और लोकों के पोषक प्रभु को लोग (मेधया) बुद्धि से (अह्यन्) प्राप्त करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इध्मवाहो दार्ढच्युत ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३–५ निचृद गायत्री। २, ६ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
That divine and all sustaining, pure and purifying, foundation of existence, wielder and sustainer of infinite forms, stars and galaxies, the sages with their thought, imagination and vision visualise, contemplate and realise unto the heights of heaven.
मराठी (1)
भावार्थ
जो परमात्मा सर्व लोक लोकांतराचा आधार आहे. त्याला योग इत्यादी साधनांद्वारे सुसंस्कृत बुद्धीने योगी लोक पाहतात, या मंत्रात ज्या परमात्म्याला वेधा अर्थात् ‘‘विधति लोकान् विदधातीति वा वेधा:’’ विधातारूपाने वर्णन केलेले आहे. परमात्मा सर्व वस्तूंचा निर्माणकर्ता आहे याच दृष्टीने ‘‘सूर्याचन्द्रमसो धाता यथा पूर्वमकल्पयत’’ ऋ. सू. १९ मध्ये हे कथन केलेले आहे की सूर्य-चंद्र इत्यादी ज्योतीर्मय पदार्थांची निर्मिती एकमात्र परमात्मानेच केलेली आहे. सूर्यचंद्र येथे उपलक्षण आहेत. वास्तविक सर्व ब्रह्मांडाचा निर्माता एक परमात्माच आहे, दुसरा कोणी नाही. ॥३॥
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