ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 30/ मन्त्र 2
इन्दु॑र्हिया॒नः सो॒तृभि॑र्मृ॒ज्यमा॑न॒: कनि॑क्रदत् । इय॑र्ति व॒ग्नुमि॑न्द्रि॒यम् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्दुः॑ । हि॒या॒नः । सो॒तृऽभिः॑ । मृ॒ज्यमा॑नः । कनि॑क्रदत् । इय॑र्ति । व॒ग्नुम् । इ॒न्द्रि॒यम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्दुर्हियानः सोतृभिर्मृज्यमान: कनिक्रदत् । इयर्ति वग्नुमिन्द्रियम् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्दुः । हियानः । सोतृऽभिः । मृज्यमानः । कनिक्रदत् । इयर्ति । वग्नुम् । इन्द्रियम् ॥ ९.३०.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 30; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दुः) दीप्तिमान् शब्दः (सोतृभिः मृज्यमानः हियानः) यो वेदज्ञपुरुषैः शुद्धिविधानपूर्वकं प्रेरितः सः (वग्नुम् इन्द्रियम्) श्रोत्रमिन्द्रियं यदा (कनिक्रदत्) गर्जन् (इयर्ति) अभ्युपैति तदानेकधा बलमुत्पादयति ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दुः) दीप्तिवाला शब्द (सोतृभिः मृज्यमानः हियानः) जो वेदवेत्ता पुरुषों से शुद्ध करके प्रेरित किया गया है, वह (वग्नुम् इन्द्रियम्) श्रोत्रेन्द्रिय को जब (कनिक्रदत्) गर्जत हुआ (इयर्ति) प्राप्त होता है, तो अनेक प्रकार के बल उत्पन्न करता है ॥२॥
भावार्थ
सदुपदेशकों द्वारा जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, वे शब्द बलप्रद होते हैं, इसलिये हे श्रोता लोगो ! तुमको चाहिये कि तुम सदैव सदुपदेशकों से उपदेश सुनकर अपने आपको तेजस्वी और ब्रह्मवर्चस्वी बनाओ ॥२॥
विषय
वग्न+इन्द्रिय (ज्ञान + शक्ति)
पदार्थ
(१) इन्दुः- यह सोम सोतृभिः = सोम का सम्पादन करनेवालों से मृज्यमानः = शुद्ध किया जाता हुआ हियानः- शरीर में ही प्रेयमाण होता है। शरीर में प्रेरित होने पर यह कनिक्रदत्-प्रभु का आह्वान करनेवाला होता है। सुरक्षित सोमवाले पुरुष की प्रवृत्ति प्रभु स्मरण की ओर होती है । (२) यह सोम वग्नम् - ज्ञान की वाणियों को तथा इन्द्रियम् = शक्ति को इयर्ति = हमारे में प्रेरित करता है । सोम के सुरक्षित होने पर ज्ञानाग्नि दीप्त होती है और हम ज्ञान की वाणियों को प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार एक-एक इन्द्रिय इस सोम की शक्ति से शक्ति सम्पन्न बनती है, सुरक्षित सोम ही इन्हें शक्ति सम्पन्न बनाता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से हम ज्ञान व शक्ति को प्राप्त करते हैं।
विषय
शासक के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(सोतृभिः हियानः) अभिषेक करने वालों द्वारा बढ़ाया गया और (मृज्यमानः) स्वच्छ पवित्र किया जाकर (कनिक्रदत्) शासन करे। वह (वग्नुम् इन्द्रियम् इयर्ति) वचन बोलने वाली इन्द्रिय वाग् का प्रयोग करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विन्दुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, ६ गायत्री। ३-५ निचृद् गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The lord of light and bliss, when solicited by seekers and celebrants, feels exalted, and, speaking loud and bold unto the heart and soul of the supplicant, inspires and augments their perception, intuition and eloquence.
मराठी (1)
भावार्थ
सदुपदेशकांद्वारे ज्या शब्दांचा प्रयोग केला जातो ते शब्द बल देणारे असतात. त्यासाठी हे श्रोत्यांनो! तुम्ही सदैव सदुपदेशकांकडून उपदेश ऐकून स्वत:ला तेजस्वी व ब्रह्मवर्चसी बनवा ॥२॥
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