ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 35/ मन्त्र 3
त्वया॑ वी॒रेण॑ वीरवो॒ऽभि ष्या॑म पृतन्य॒तः । क्षरा॑ णो अ॒भि वार्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठत्वया॑ । वी॒रेण॑ । वी॒र॒ऽवः॒ । अ॒भि । स्या॒म॒ । पृ॒त॒न्य॒तः । क्षर॑ । नः॒ । अ॒भि । वार्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वया वीरेण वीरवोऽभि ष्याम पृतन्यतः । क्षरा णो अभि वार्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठत्वया । वीरेण । वीरऽवः । अभि । स्याम । पृतन्यतः । क्षर । नः । अभि । वार्यम् ॥ ९.३५.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 35; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वीरवः) हे वीराणामधिपते परमात्मन् ! (वीरेण त्वया) सर्वोत्तमपराक्रमवता भवता वयं (पृतन्यतः अभिष्याम) सङ्ग्राममिच्छतः शत्रून् पराजयेम (नः वार्यम् अभिक्षर) त्वमस्मभ्यं प्रार्थनीयं पदार्थं देहि ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वीरवः) हे वीरों के अधिपति परमात्मन् ! (वीरेण त्वया) सर्वोपरि पराक्रमवाले आपके द्वारा हम (पृतन्यतः अभिष्याम) संग्राम की इच्छा करनेवाले शत्रुओं को पराजित करें (नः वार्यम् अभिक्षर) आप हमको अभिलषित पदार्थों को दीजिये ॥३॥
भावार्थ
जो लोग अन्यायकारी शत्रुओं के विजय करने का संकल्प रखते हैं, परमात्मा उन्हें अन्यायकारियों के दमन का बल प्रदान करता है, ताकि अन्यायकारियों को मर्दन करके वे संसार में न्याय का प्रचार करें ॥३॥
विषय
अभिष्याम पृतन्यतः
पदार्थ
[१] हे (वीरवः) = वीरोंवाले सोम, वीरता के कार्यों को करनेवाले सोम ! वीरेण सब शत्रुओं को कम्पित करनेवाले (त्वया) = तेरे द्वारा (पृतन्यतः) = हमारे पर आक्रमण करनेवाले रोगों व वासनारूप शत्रुओं को (अभिष्याम) = हम अभिभूत करनेवाले हों । इनको पराजित करके हम शरीर में नीरोग व मन में निर्मल बनें। [२] (नः) = हमारे लिये (वार्यम्) = वरणीय वस्तुओं को (अभिक्षर) = प्राप्त करा । सोम रक्षित होने पर सब अवाञ्छनीय तत्त्वों को विनष्ट करके हमें शरीर में दृढ़ता, मन में निर्मलता व मस्तिष्क में दीप्ति को प्राप्त कराता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम सोम के रक्षण के द्वारा आक्रमण करनेवाले रोगों व वासनारूप शत्रुओं को विनष्ट करें और सब वरणीय धनों को प्राप्त करें ।
विषय
प्रभु से ऐश्वर्य और प्रकाश की प्रार्थना सेनापति के प्रति प्रजाजन की प्रार्थना।
भावार्थ
(त्वया वीरेण) तुझ वीर सहायक से हे (वीरवः) वीरों के स्वामिन् ! हम (पृतन्यतः) सेना से संग्राम करने वाले शत्रुओं को (अभि स्याम) पराजित करें। तू (नः वार्यं अभिक्षर) हमें श्रेष्ठ धन प्राप्त करा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रभूवसुर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, २, ४–६ गायत्री। ३ विराड् गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
By your heroic gift of bravery and fortitude, let us win our rivals, contestants and enemies. Let choice wealth, honour and excellence flow to us.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक अन्यायी शत्रूंवर विजय प्राप्त करण्याचा संकल्प करतात. परमात्मा त्यांना अन्यायी लोकांचे दमन करण्याचे बल प्रदान करतो. त्यामुळे अन्यायी लोकांचे मर्दन करून त्यांनी जगात न्यायाचा प्रचार करावा. ॥३॥
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