ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 35/ मन्त्र 4
प्र वाज॒मिन्दु॑रिष्यति॒ सिषा॑सन्वाज॒सा ऋषि॑: । व्र॒ता वि॑दा॒न आयु॑धा ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । वाज॑म् । इन्दुः॑ । इ॒ष्य॒ति॒ । सिसा॑सन् । वा॒ज॒ऽसाः । ऋषिः॑ । व्र॒ता । वि॒दा॒नः । आयु॑धा ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र वाजमिन्दुरिष्यति सिषासन्वाजसा ऋषि: । व्रता विदान आयुधा ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । वाजम् । इन्दुः । इष्यति । सिसासन् । वाजऽसाः । ऋषिः । व्रता । विदानः । आयुधा ॥ ९.३५.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 35; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दुः) सर्वैश्वर्यः (सिषासन्) स्वभक्तेभ्यः स्पृहयन् (वाजसाः) अखिलैश्वर्ययुक्तः (ऋषिः) सर्वब्रह्माण्डस्य द्रष्टा (व्रता आयुधा विदानः) सर्वैः कर्मभिः आयुधैश्च सम्पन्नः परमात्मा (वाजम् प्रेष्यति) स्वभक्तेभ्यः सर्वप्रकारमैश्वर्यं ददाति ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दुः) सर्वैश्वर्यवाला (सिषासन्) अपने भक्तों को चाहनेवाला (वाजसाः) अखिल ऐश्वर्यों से युक्त (ऋषिः) सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों का साक्षी (व्रता आयुधा विदानः) सम्पूर्ण कर्मों तथा आयुधों से सम्पन्न परमात्मा (वाजम् प्रेष्यति) अपने भक्तों को सब प्रकार के ऐश्वर्य को देता है ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा सन्मार्गगामी पुरुषों को सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों का प्रदान करता है। जो लोग परमात्मा की आज्ञा मानकर उसका अनुष्ठान करते हैं, वे ही परमात्मा के भक्त व सदाचारी कहलाते हैं, अन्य नहीं ॥४॥
विषय
वाजसा ऋषिः
पदार्थ
[१] (इन्दुः) = हमें शक्तिशाली बनानेवाला सोम (सिषासन्) = [संभक्तुमिच्छन्] हमें शक्ति-सम्पन्न करना चाहता हुआ (वाजम्) = बल को (प्र इष्यति) = हमारे में प्रकर्षेण प्रेरित करता है। यह (वाजसाः) = बल को देनेवाला है और (ऋषिः) = तत्त्वद्रष्टा है, हमें तत्त्वज्ञानी बनाता है । [२] यह सोम (व्रता विदानः) = हमें उत्तम कर्मों को प्राप्त कराता है [विद् लाभे] तथा (आयुधा) = उन कर्मों को पूर्ण करने के लिये 'इन्द्रिय, मन व बुद्धि' रूप आयुधों को प्राप्त कराता है। सोमरक्षण से हमारी 'इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि' सब उत्तम बनते हैं और हम इन आयुधों के द्वारा सदा उत्तम कर्मों को करनेवाले होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें शक्ति देता है, ज्ञान देता है। उत्तम कर्मों में प्रेरित करता हुआ यह सोम हमें उत्तम इन्द्रियों, मन व बुद्धि को प्राप्त कराता है जिससे हम उत्तम कर्मों को कर सकें।
विषय
न्याय शासक के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(इन्दुः) दयार्द्र, (ऋषिः) द्रष्टा (वाजसाः) ज्ञान और धनादि का न्यायानुसार देने वाला, (व्रता आयुधा) व्रतों, कर्मों, अन्नों और शस्त्र-अस्त्रों अथवा दण्डों को (विदानः) जानता और प्राप्त कराता हुआ (वाजं सिषासन्) ऐश्वर्य का विभाग करना चाहता हुआ (प्र इष्यति) सब को सन्मार्ग में चलावे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रभूवसुर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, २, ४–६ गायत्री। ३ विराड् गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indu, lord of soma beauty and grandeur, loves and inspires victory, rousing the devotee with strength, courage and fortitude; He is all watching omniscient guardian; knowing and controlling laws and disciplines of Dharma, is ever awake with protection and dispensation by the arms of justice.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा सन्मार्गगामी पुरुषांना संपूर्ण ऐश्वर्य प्रदान करतो. जे लोक परमेश्वराची आज्ञा मानून त्याचे अनुष्ठान करतात ते परमात्म्याचे भक्त व सदाचारी म्हणवितात, इतर नव्हे. ॥४॥
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