ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 36/ मन्त्र 5
स विश्वा॑ दा॒शुषे॒ वसु॒ सोमो॑ दि॒व्यानि॒ पार्थि॑वा । पव॑ता॒मान्तरि॑क्ष्या ॥
स्वर सहित पद पाठसः । विश्वा॑ । दा॒शुषे॑ । वसु॑ । सोमः॑ । दि॒व्यानि॑ । पार्थि॑वा । पव॑ताम् । आ । अ॒न्तरि॑क्ष्या ॥
स्वर रहित मन्त्र
स विश्वा दाशुषे वसु सोमो दिव्यानि पार्थिवा । पवतामान्तरिक्ष्या ॥
स्वर रहित पद पाठसः । विश्वा । दाशुषे । वसु । सोमः । दिव्यानि । पार्थिवा । पवताम् । आ । अन्तरिक्ष्या ॥ ९.३६.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 36; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सः सोमः) स सौम्यो भवान् (दाशुषे) स्वभक्ताय (दिव्यानि) दिव्यानि (अन्तरिक्ष्या) अन्तरिक्षोद्भवानि तथा (पार्थिवानि) भौमानि (विश्वा वसु) सर्वाणि रत्नाद्यैश्वर्याणि (आपवताम्) ददातु ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सः सोमः) वह सौम्यस्वभाववाले आप (दाशुषे) अपने उपासक के लिये (दिव्यानि) दिव्य (अन्तरिक्ष्या) अन्तरिक्ष में होनेवाले तथा (पार्थिवानि) पृथ्वीलोक में होनेवाले (विश्वा वसु) सम्पूर्ण रत्नादि ऐश्वर्यों को (आपवताम्) दीजिये ॥५॥
भावार्थ
जो लोग अपने स्वभाव को सौम्य बनाते हैं अर्थात् ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव को लक्ष्य रखकर अपने गुण-कर्म-स्वभाव को भी उसी प्रकार का पवित्र बानाते हैं, वे सब ऐश्वर्यों को प्राप्त होते हैं ॥५॥
विषय
'दिव्य, पार्थिव आन्तरिक्ष्य' वसु
पदार्थ
[१] (सः सोमः) = वह सोम [वीर्य] (दाशुषे) = दाश्वान् पुरुष के लिये, सोम के लिये अपना अर्पण करनेवाले पुरुष के लिये, सब प्रकार से सोमरक्षण में प्रवृत्त पुरुष के लिये, (विश्वा) = सब (दिव्यानि) = द्युलोक के साथ सम्बद्ध, (पार्थिवा) = पृथिवीलोक के साथ सम्बद्ध तथा (आन्तरिक्ष्या) = अन्तरिक्षलोक के साथ सम्बद्ध (वसु) = वसुओं को (पवताम्) = प्राप्त कराये। [२] शरीर में मस्तिष्क ही द्युलोक है । द्युलोक सम्बद्ध वसु 'ज्ञान' है । अन्तरिक्ष 'हृदय' है। हृदय सम्बद्ध वसु 'पवित्रता व भक्ति' है। यह शरीर ही पृथिवी है। इसके साथ सम्बद्ध वसु 'शक्ति' है। सुरक्षित हुआ-हुआ सोम हमें 'ज्ञान, पवित्रता व शक्ति' सब वसुओं को प्राप्त कराता है ।
भावार्थ
भावार्थ - यदि हम पूर्ण प्रयत्न से सोम का रक्षण करते हैं तो यह हमें ज्ञानदीप्त मस्तिष्कवाला, पवित्र व भक्ति-सम्पन्न हृदयवाला तथा शक्ति सम्पन्न शरीरवाला बनाता है।
विषय
सर्वैश्वर्य-प्राप्ति।
भावार्थ
(सः) वह (दाशुषे) आत्मसमर्पक जन के लोभ के लिये (दिव्यानि पार्थिवा आन्तरिक्ष्या) आकाश, पृथिवी और अन्तरिक्ष तीनों लोकों में उत्पन्न (विश्वा वसु पवताम्) समस्त धन और बसने योग्य साधनों को स्वच्छ करे, प्राप्त करे और सुखदायी बनावे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रभूवसुर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १ पादनिचृद्र गायत्री। २, ६ गायत्री। ३-५ निचृद गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May Soma, we pray, purify and set aflow all wealth, honour and excellence of the world, earthly, heavenly and of the middle regions for the generous yajamana and all.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक आपला स्वभाव सौम्य बनवितात अर्थात ईश्वराच्या गुणकर्म स्वभावाला लक्षात ठेवून आपले गुणकर्म स्वभावही त्याच प्रकारे पवित्र बनवितात, त्यांना सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य मिळते. ॥५॥
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