ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 36/ मन्त्र 6
आ दि॒वस्पृ॒ष्ठम॑श्व॒युर्ग॑व्य॒युः सो॑म रोहसि । वी॒र॒युः श॑वसस्पते ॥
स्वर सहित पद पाठआ । दि॒वः । पृ॒ष्ठम् । अ॒श्व॒ऽयुः । ग॒व्य॒ऽयुः । सो॒म॒ । रो॒ह॒सि॒ । वी॒र॒ऽयुः । श॒व॒सः॒ । प॒ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ दिवस्पृष्ठमश्वयुर्गव्ययुः सोम रोहसि । वीरयुः शवसस्पते ॥
स्वर रहित पद पाठआ । दिवः । पृष्ठम् । अश्वऽयुः । गव्यऽयुः । सोम । रोहसि । वीरऽयुः । शवसः । पते ॥ ९.३६.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 36; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 6
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम शवसस्पते) हे अन्नाद्यैश्वर्याधिपते परमात्मन् ! भवान् स्वोपासकाय (वीरयुः) वीरस्पृहः (अश्वयुः गव्ययुः) अश्वेभ्यो गोभ्यश्च स्पृहयति (दिवः पृष्ठम् आरोहसि) किञ्च द्युलोकस्यापि पृष्ठे विराजते ॥६॥ इति षट्त्रिंशत्तमं सूक्तं षड्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम शवसस्पते) हे अन्नादि ऐश्वर्यों के स्वामिन् परमात्मन् ! अपने उपासक के लिये (वीरयुः) वीरों की इच्छा करनेवाले तथा (अश्वयुः गव्ययुः) अश्व गौ आदिकों की इच्छा करनेवाले हैं (दिवः पृष्ठम् आरोहसि) और द्युलोक के भी पृष्ठ पर आप विराजमान हैं ॥६॥
भावार्थ
ईश्वर सदाचारी और न्यायकारी लोगों के लिये धीरत्व वीरत्वादि धर्मों को धारण करता है और गो अश्वादि सब प्रकार के धनों से उन्हें सम्पन्न करता है ॥६॥ वह ३६ वाँ सूक्त और २६ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
अश्वयु-गव्ययुः-वीरयु
पदार्थ
[१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (अश्वयुः) = हमारे लिये उत्तम इन्द्रियाश्वों की कामना करता हुआ, (गव्ययुः) = तथा उत्तम ज्ञानेन्द्रियों की कामना करता हुआ (दिवः पृष्ठम्) = शरीरस्थ मस्तिष्क रूप द्युलोक के पृष्ठ पर (आरोहसि) = आरोहण करनेवाला होता है। शरीर में शक्ति की ऊर्ध्वगति होने पर यह मस्तिष्क में ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है। इस प्रकार यह हमारे ज्ञान की वृद्धि का कारण होता है । [२] हे (शवसस्पते) = शक्तियों के स्वामिन् सोम ! तू (वीरयुः) = हमारे साथ वीरता को जोड़नेवाला है।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम 'अश्वयु, गव्यु तथा वीरयु' है । उत्तम इन्द्रियोंवाला व वीरतावाला बनकर हम सब बुराइयों को दूर फेंकनेवाले बनते हैं। बुराइयों को दूर फेंकनेवाला 'रहू' है। इनमें भी गिनने योग्य होने से यह 'गण' है। यह 'रहूगण' कहता है-
विषय
सर्वैश्वर्य-प्राप्ति।
भावार्थ
हे (सोम) शासक ! हे (शवसः पते) बल के स्वामिन् ! तृ (अश्वयुः गव्ययुः वीरयुः) अश्वों, गौवों और वीरों का स्वामी होकर (दिवः पृष्ठम् आ रोहसि) भूमि के पालक के पद पर आकाश में सूर्यवत् उदय होता है। इति षडविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रभूवसुर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १ पादनिचृद्र गायत्री। २, ६ गायत्री। ३-५ निचृद गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, lord of purity, power and life energy, giver of strength and courage, lover of lands, cows and culture, horses, victory and advancement, brave warriors and noble progeny for humanity, you pervade and prevail not only on earth and in the skies, you shine in glory on top of heaven too for the sake of devoted celebrants.
मराठी (1)
भावार्थ
ईश्वर सदाचारी व न्यायकारी लोकांसाठी धीरता, वीरता इत्यादी धर्मांना धारण करतो व करवितो व गाई, अश्व इत्यादी सर्व प्रकारच्या धनाने त्यांना संपन्न करतो. ॥६॥
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