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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 7
    ऋषिः - हिरण्यस्तूपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒भ्य॑र्ष स्वायुध॒ सोम॑ द्वि॒बर्ह॑सं र॒यिम् । अथा॑ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । अ॒र्ष॒ । सु॒ऽआ॒यु॒ध॒ । सोम॑ । द्वि॒ऽबर्ह॑सम् । र॒यिम् । अथ॑ । नः॒ । वस्य॑सः । कृ॒धि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभ्यर्ष स्वायुध सोम द्विबर्हसं रयिम् । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । अर्ष । सुऽआयुध । सोम । द्विऽबर्हसम् । रयिम् । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥ ९.४.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 7
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे जगदुत्पादक परमात्मन् ! भवान् (रयिम्) ऐश्वर्यम् (अभ्यर्ष) अस्मभ्यं प्रयच्छ, यदैश्वर्यं (द्विबर्हसम्) द्यावापृथिव्योर्मध्ये सर्वोत्कृष्टमस्ति (स्वायुध) भवान् सर्वविधाज्ञानस्य नाशकः, अत एव (नः) अस्माकमपि अज्ञानं नाशय (वस्यसः कृधि) आनन्दं च विधेहि ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) “सुते चराचरं जगदिति सोमः परमात्मा=जो चराचर जगत् को उत्पन्न करे, उसका नाम यहाँ सोम है। हे जगदुत्पादक परमात्मन् ! आप (रयिम्) हमको ऐश्वर्य्य (अभ्यर्ष) प्रदान करें, जो ऐश्वर्य्य (द्विबर्हसम्) द्युलोक और पृथिवीलोक के मध्य में सर्वोपरि है। (स्वायुध) आप सब प्रकार से अज्ञान के दूर करनेवाले हैं, इसलिये (नः) हमारे अज्ञान का नाश करके हमको (वस्यसः कृधि) आनन्द प्रदान करें ॥७॥

    भावार्थ

    स्वप्रकाश परमात्मा अज्ञान को निवृत्त करके सदैव सुख का प्रकाश करता है ॥७॥

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    विषय

    'स्वायुध' सोम

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (स्वायुध) = उत्तम आयुधोंवाले, जिसके द्वारा इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि आदि सब आयुध उत्तम बनते हैं, तू (द्विबर्हसम्) = द्यावापृथिवी इन दोनों स्थानों में बढ़े हुए [द्वयो: स्थानयोः परिवृढं] (रयिम्) = धन को (अभ्यर्ष) = [ अभिगमय] हमें प्राप्त करा । मस्तिष्क रूप द्युलोक का धन 'प्रज्ञान' है तथा शरीर रूप पृथिवीलोक का धन 'बल' हे । सोम हमारे लिये प्रज्ञान व बल दोनों को प्राप्त करानेवाला हो। [२] (अथा) = और अब, प्रज्ञान और बल को प्राप्त कराके (नः) = हमें (वस्यसः) = उत्तम निवासवाला (कृधि) = करिये । सोम के रक्षण से हमारे इन्द्रिय, मन व बुद्धि रूप आयुध उत्तम बन जाते हैं। इनके द्वारा हम जीवन संग्राम को अच्छी तरह लड़ पाते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमारे बल व ज्ञान को बढ़ाकर हमारे इन्द्रियाँ, मन व बुद्धिरूप आयुधों को उत्तम बनाता है।

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    विषय

    राजा को ऐश्वर्य प्राप्ति का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे (सोम) उत्तम शासक ! हे (स्वायुध) उत्तम युद्धोपकरणों वाले ! उत्तम शस्त्र-अस्त्रों के स्वामिन् ! तू (द्वि-बर्हसं) प्रजा राजा दोनों लोकों को बढ़ाने वाला (रयिम् अभि-अर्ष) ऐश्वर्य प्राप्त कर (अथ नः० इत्यादि पूर्ववत्)

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    हिरण्यस्तूप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, ३, ४, १० गायत्री। २, ५, ८, ९ निचृद् गायत्री। ६, ७ विराड् गायत्री ॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, creative and inspiring spirit of the world, noble wielder and controller of the dynamics of life, bless us with wealth and vision good enough for both this life and the life beyond, and thus make us happy and prosperous for the life divine for ever.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    स्वप्रकाशरूपी परमात्मा अज्ञानाचा नाश करून सदैव सुखाचा प्रकाश करतो. ॥७॥

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