ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 44/ मन्त्र 2
म॒ती जु॒ष्टो धि॒या हि॒तः सोमो॑ हिन्वे परा॒वति॑ । विप्र॑स्य॒ धार॑या क॒विः ॥
स्वर सहित पद पाठम॒ती । जु॒ष्टः । धि॒या । हि॒तः । सोमः॑ । हि॒न्वे॒ । प॒रा॒ऽवति॑ । विप्र॑स्य । धार॑या । क॒विः ॥
स्वर रहित मन्त्र
मती जुष्टो धिया हितः सोमो हिन्वे परावति । विप्रस्य धारया कविः ॥
स्वर रहित पद पाठमती । जुष्टः । धिया । हितः । सोमः । हिन्वे । पराऽवति । विप्रस्य । धारया । कविः ॥ ९.४४.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 44; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(कविः सोमः) वेदरूपकाव्यानां प्रणयिता स परमात्मा (परावति) स्वल्पप्रयत्नेन ध्यानाविषयीभूतः (मती जुष्टः) स्तुतिभिः प्रसीदन् (विप्रस्य धिया हितः) ज्ञानयोगिबुद्ध्या साक्षात्कृतः (धारया हिन्वे) स्वब्रह्मानन्दस्रोतसा प्रीणयति ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(कविः सोमः) वेदरूप काव्यों का निर्माता वह परमात्मा (परावति) अल्प प्रयत्न से ध्यानविषयी न होने के कारण दूरस्थ (मती जुष्टः) स्तुतियों द्वारा प्रसन्न होता हुआ (विप्रस्य धिया हितः) ज्ञानयोगियों की बुद्धि से साक्षात्कार किया गया (धारया हिन्वे) अपने ब्रह्मानन्द धारा से तृप्त करता है ॥२॥
भावार्थ
वेद यद्यपि परमात्मा का ज्ञान है, तथापि उस ज्ञान का आर्विभाव परमात्मा करता है। इसी अभिप्राय से उसे वेदों का निर्माता वा कर्त्ता कथन किया है, वास्तव में वेद नित्य है ॥२॥
विषय
सोम का दूरदेश में प्रेरण
पदार्थ
[१] मती मननपूर्वक की गई स्तुति से (जुष्टः) = प्रीतिपूर्वक सेवन किया हुआ (सोमः) = सोम [= वीर्य] (परावति) = सुदूर देश में, मस्तिष्क रूप द्युलोक में (हिन्वे) = प्रेरित किया जाता है। प्रभु-स्तवन सोमरक्षण का साधन बनता है। सुरक्षित सोम शरीर में ऊर्ध्वगतिवाला होता हुआ मस्तिष्क रूप द्युलोक में प्रेरित होता है, यह सोम वहाँ ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है। यह (धिया हितः) = बुद्धिपूर्वक कर्मों के हेतु से शरीर में स्थापित हुआ है। इसकी शरीर में स्थिति से ही बुद्धि तीव्र बनती है। [२] यह सोम धारया अपनी धारक शक्ति के द्वारा (विप्रस्य) = ज्ञानी पुरुष का (कविः) = [कौति सर्वाः विद्याः] सब विद्याओं का उपदेश देनेवाला होता है। इसी से बुद्धि तीव्र बनती है और सब ज्ञानों का ग्रहण करनेवाली होती है। एवं सोम ज्ञानी पुरुष के लिये 'कवि' बनता है ।
भावार्थ
भावार्थ - मननपूर्वक स्तुति से सोम का रक्षण होता है। सुरक्षित सोम बुद्धि का यह वर्धक होता है और सब ज्ञानों को प्राप्त कराता है।
विषय
मुख्य अयास्य प्राण की उपासना।
भावार्थ
वह (मती जुष्टः) उत्तम बुद्धि और वाणी द्वारा प्रेम से सेवित और (धिया हितः) कर्म से धारित, (कविः सोमः) कान्तदर्शी ऐश्वर्यवान्, सब का उत्पादक और शासक (परावति) दूर रह कर भी (विप्रस्य धारया) विद्वान्, बुद्धिमान् पुरुष की वाणी द्वारा (हिन्वे) स्तुति किया जाता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यास्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः-१ निचृद् गायत्री। २-६ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, omniscient poet creator, whether far or near in human consciousness, invoked by vision and intelligence through concentration of the mind and senses of sagely celebrants in meditation, inspires the devotee with showers of ecstasy.
मराठी (1)
भावार्थ
वेद जरी परमेश्वराचे ज्ञान असले तरी त्या ज्ञानाचा आविर्भाव (प्रकटीकरण) परमेश्वर करतो. या दृष्टीने त्याला वेदांचा निर्माता किंवा कर्ता म्हटलेले आहे. वास्तविक वेद नित्य आहेत. ॥२॥
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