ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 66/ मन्त्र 30
यस्य॑ ते द्यु॒म्नव॒त्पय॒: पव॑मा॒नाभृ॑तं दि॒वः । तेन॑ नो मृळ जी॒वसे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयस्य॑ । ते॒ । द्यु॒म्नऽव॑त् । पयः॑ । पव॑मान । आऽभृ॑तम् । दि॒वः । तेन॑ । नः॒ । मृ॒ळ॒ । जी॒वसे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्य ते द्युम्नवत्पय: पवमानाभृतं दिवः । तेन नो मृळ जीवसे ॥
स्वर रहित पद पाठयस्य । ते । द्युम्नऽवत् । पयः । पवमान । आऽभृतम् । दिवः । तेन । नः । मृळ । जीवसे ॥ ९.६६.३०
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 66; मन्त्र » 30
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमान) सर्वपावक परमात्मन् ! (यस्य) यस्य भवतः (द्युम्नवत्) दीप्तिमत् (पयः) ऐश्वर्यं (दिव आभृतम्) द्युलोकगतो दुग्धमस्ति (तेन) तेनैश्वर्येण (नः) अस्माकं (जीवसे) जीवनं (मृळ) सुखय ॥३०॥ इति षट्षष्टितमं सूक्तं द्वादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (यस्य) जिस आपका (द्युम्नवत्) दीप्तियुक्त ऐश्वर्य जो (पयः) द्युलोक से दुहा गया है, (दिव आभृतम्) उस ऐश्वर्य से (तेन) हम लोगों के (जीवसे) जीवन के लिए (मृळ) सुख दें ॥३०॥
भावार्थ
परमात्मा के ऐश्वर्यरूपी अमृत का जब तक मनुष्य पान नहीं करता, तब तक उसके ऐश्वर्य की वृद्धि कदापि नहीं होती। इसलिए अपने जीवन की वृद्धि के लिए इन्द्रियसंयम द्वारा ईश्वराज्ञा का पालन करता हुआ पुरुष १०० वर्ष जीने की इच्छा करे। इस अभिप्राय से वेद में अन्यत्र भी कहा गया है कि “जीवेम शरदः शतम्, पश्येम शरदः शतम्” इत्यादि। इसी अभिप्राय से मनु-धर्मशास्त्र में कहा है कि “सदाचारेण पुरुषः शतवर्षाणि जीवति” ब्रह्मचर्य आदि व्रतों से मनुष्य सैकड़ों बरस तक जीवित रहता है ॥३०॥ यह छियासठवाँ सूक्त और बारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
द्युम्नवत् पयः
पदार्थ
[१] हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले सोम ! (यस्य) = जिस (ते) = तेरा (द्युम्नवत् पयः) = ज्योतिर्मय ज्ञानदुग्ध (दिवा:) = मस्तिष्करूप द्युलोक से (आभृतम्) = समन्तात् प्राप्त कराया जाता है । (तेन) = उस ज्ञानदुग्ध से (नः) = हमें (जीवसे) = उत्कृष्ट जीवन की प्राप्ति के लिये (मृड) = सुखी कर । [२] सोमरक्षण से मस्तिष्क की ज्ञानाग्नि दीप्त होती है। इसी से जीवन सुखी होता है। ज्ञान ही जीवन को उत्कृष्ट बनाता है। यह ज्ञान सोमरक्षण से प्राप्य है।
भावार्थ
भावार्थ- सोम शरीर में सुरक्षित होता हुआ उस ज्ञान ज्योति को प्राप्त कराता है जो हमारे जीवनों को सुखी करती है। अगला सूक्त भी भिन्न-भिन्न ऋषियों द्वारा सोमस्तवन का प्रतिपादन कर रहा है। प्रारम्भ में शक्ति को अपने में भरनेवाले 'भरद्वाज' कहते हैं-
विषय
प्रभु से जीवन दान की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (पवमान) रक्षा करने हारे ! प्रभो ! (यस्य ते दिवः) जिस तुझ तेजस्वी सूर्यवत् कान्तिमान् का (पयः द्युम्नवत्) तेज, वीर्य और पोषक अन्नादि धन और प्रकाश के समान (आ-भृतम्) सर्वत्र धारित है (तेन नः जीवसे) उससे हमें तू जीवन प्रदान करने के लिये (मृड) दया कर। इति द्वादशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शतं वैखानसा ऋषयः॥ १–१८, २२–३० पवमानः सोमः। १९—२१ अग्निर्देवता ॥ छन्दः- १ पादनिचृद् गायत्री। २, ३, ५—८, १०, ११, १३, १५—१७, १९, २०, २३, २४, २५, २६, ३० गायत्री। ४, १४, २२, २७ विराड् गायत्री। ९, १२,२१,२८, २९ निचृद् गायत्री। १८ पाद-निचृदनुष्टुप् ॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord of light and glory, pure, purifying and radiating with joy, the nectar of light, power and purity that is yours is distilled in showers of the bliss of heaven. Pray bless us and sanctify us with that for the joy of living for the ultimate fulfilment.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराच्या ऐश्वर्यरूपी अमृताचे जोपर्यंत मनुष्य पान करत नाही तोपर्यंत त्याच्या ऐश्वर्याची वृद्धी कधीही होत नाही. त्यासाठी आपल्या जीवनाच्या वृद्धीसाठी इंद्रिय संयमाद्वारे ईश्वराच्या आज्ञा पालन करत पुरुषाने शंभर वर्षे जगण्याची इच्छा धरावी. या अभिप्रायाने वेदात अन्यत्रही म्हटले आहे की ‘जीवेम शरद: शतम् पश्येम शरद: शतम्’ इत्यादी. मनुने ही धर्मशास्त्रात सांगितलेले आहे की ‘‘सदाचारेण पुरुष शतवर्षानि जीवति’’ ब्रह्मचर्य इत्यादी व्रतांनी मनुष्य शेकडो वर्षांपर्यंत जिवन्त राहतो. ॥३०॥
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