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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 74 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 74/ मन्त्र 7
    ऋषिः - कक्षीवान् देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    श्वे॒तं रू॒पं कृ॑णुते॒ यत्सिषा॑सति॒ सोमो॑ मी॒ढ्वाँ असु॑रो वेद॒ भूम॑नः । धि॒या शमी॑ सचते॒ सेम॒भि प्र॒वद्दि॒वस्कव॑न्ध॒मव॑ दर्षदु॒द्रिण॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श्वे॒तम् । रू॒पम् । कृ॒णु॒ते॒ । यत् । सिसा॑सति । सोमः॑ । मी॒ढ्वान् । असु॑रः । वे॒द॒ । भूम॑नः । धि॒या । शमी॑ । स॒च॒ते॒ । सः । ई॒म् । अ॒भि । प्र॒ऽवत् । दि॒वः । कव॑न्धम् । अव॑ । द॒र्ष॒त् । उ॒द्रिण॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    श्वेतं रूपं कृणुते यत्सिषासति सोमो मीढ्वाँ असुरो वेद भूमनः । धिया शमी सचते सेमभि प्रवद्दिवस्कवन्धमव दर्षदुद्रिणम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    श्वेतम् । रूपम् । कृणुते । यत् । सिसासति । सोमः । मीढ्वान् । असुरः । वेद । भूमनः । धिया । शमी । सचते । सः । ईम् । अभि । प्रऽवत् । दिवः । कवन्धम् । अव । दर्षत् । उद्रिणम् ॥ ९.७४.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 74; मन्त्र » 7
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 32; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यत्) यदा (सिषासति) मनुष्यः सुखप्रदान्यैश्वर्याण्यभि- वाञ्छति तदा परमेश्वरस्तदर्थम् (श्वेतं रूपं कृणुते) ऐश्वर्ययुतं रूपं करोति। (मीढ्वान्) सर्वविधैश्वर्यदः (सोमः) परमात्मा (भूमनः) अखिलस्य लोकस्य (वेद) ज्ञातास्ति। (स ईम्) स परमात्मा एनं (धिया) ब्रह्मविषयिण्या बुद्ध्या (सचते) सङ्गतो भवति। अथ स परमेश्वरः (दिवः) द्युलोकात् (उद्रिणम्) समधिकजलवतीं (कवन्धम्) वृष्टिम् (अवदर्षत्) उत्पादयति। तथा (प्रवत् शमी) रुद्रकर्मवतः (असुरः) राक्षसान् दण्डम् (अभि) अभिददाति। उपसर्गश्रुतेर्योग्यक्रियाध्याहारः ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यत्) जब (सिषासति) मनुष्य सुखप्रद ऐश्वर्य को चाहता है, तब परमात्मा उसके लिये (श्वेतं रूपं कृणुते) ऐश्वर्ययुत रूप करता है। (मीढ्वान्) सब प्रकार के ऐश्वर्यों का देनेवाला (सोमः) परमात्मा (भूमनः) सब लोक-लोकान्तरों का (वेद) ज्ञाता है। (स ईम्) वह परमात्मा इस उपासक को (धिया) ब्रह्मविषयिणी बुद्धि द्वारा (सचते) संगत होता है और वह (दिवः) इस द्युलोक से (उद्रिणम्) बहुत जलवाले (कवन्धम्) वृष्टि को (अवदर्षत्) उत्पन्न करता है और (प्रवत्) रुद्र (शमी) कर्मवाले (असुरः) राक्षसों को दण्ड (अभि) देता है ॥७॥

    भावार्थ

    जो लोग अनन्य भक्ति द्वारा परमात्मपरायण होते हैं, परमात्मा उनको अवश्यमेव तेजस्वी बनाता है और जो दुष्कर्मी बनकर अन्याय करते हैं, परमात्मा उनको अवश्यमेव दण्ड देता है ॥७॥

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    विषय

    जलवृष्टि का रहस्य।

    भावार्थ

    (यत्) जब (सोमः) समस्त ओषधि, वनस्पति आदि का उत्पन्न करने वाला और (मीढ्वान्) जल वर्षाने वाला (असुरः) सब जीवों को प्राण देने, वा जल फेंकने, वा मेघों को चलाने वाला, वायु वा सूर्य (श्वेतं) श्वेत, अति प्रदीप्त (रूपं) प्रकाश (कृणुते) करता है और (सिसासति) जलों को खूब सूक्ष्म कर देता है तब वह (भूमनः वेद) बहुत से जल राशियों को प्राप्त कर लेता है। वह (धिया प्रवत् शमी सचते) अपने धारण शक्ति से नाना उत्तम २ कर्म करता है और (दिवः) तेज से अन्तरिक्ष में (उद्रिणं) जल से युक्त (कवन्धम्) मेघ को (अव दर्षत) विदीर्ण करता, छिन्न भिन्न करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कक्षीवानृषिः। पवमानः सोमो देवता। छन्दः- १, ३ पादनिचृज्जगती। २, ६ विराड् जगती। ४, ७ जगती। ५, ९ निचज्जगती। ८ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    दिवः कवन्धमव दर्षद् उद्रिणाम्

    पदार्थ

    [१] यह (सोमः) = सोम (यत्) = जब (सिषासति) = प्रभु सम्भजन की कामनावाला होता है तो (श्वेतं रूपं कृणुते) = श्वेतरूप को बनाता है। अर्थात् यह सोमरक्षण हमें प्रभु-प्रवण व शुद्ध जीवनवाला बनाता है। यह (मीढ्वान्) = हमारे लिये सुखों का सेचन करनेवाला होता है । (असुर:) = प्राणशक्ति का संचार करनेवाला यह सोम (भूमनः वेद) = बहुत धनों को प्राप्त कराता है [विद् लाभे] । वस्तुतः यह शरीर के सब कोशों को उस-उस ऐश्वर्य से युक्त करता है । [२] (सः) = वह सोम ही (इम्) = निश्चय से (धिया) = बुद्धिपूर्वक (प्रवत्) = उत्कृष्ट (शमी) = कर्मों को (अभिसचते) = हमारे साथ समवेत करता है। यह सोम ही (उद्रिणम्) = ज्ञान जलवाले (दिवः कवन्धम्) = ज्ञान-प्रकाश के मेघ को (अवदर्षत्) = अवदीर्ण करके हमारे जीवनों में ज्ञान - वृष्टि को करता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमारे जीवनों को शुद्ध बनाता है, हमें उत्कृष्ट कर्मों में प्रेरित करता है तथा हमारे जीवनों में ज्ञानवृष्टि को करनेवाला होता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Whenever man desires, Soma, life of life on earth and virile controller of solar energy that pervades vast natural resources, forms shining clouds of vapour, parjanya, then, with its intelligential dynamics, joins with the vapour powers, and, going forward from light to the cloud, breaks the flood of water vapours into rain. (Like the clouds of rain showers of water, also, come the rain showers of knowledge and wisdom for humanity).

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक अनन्य भक्तीद्वारे परमात्म परायण बनतात. परमेश्वर त्यांना अवश्य तेजस्वी बनवितो व जे दुष्कर्मी बनून अन्याय करतात, परमेश्वर त्यांना अवश्य दंड देतो ॥७॥

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