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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 95 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 95/ मन्त्र 3
    ऋषिः - प्रस्कण्वः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒पामि॒वेदू॒र्मय॒स्तर्तु॑राणा॒: प्र म॑नी॒षा ई॑रते॒ सोम॒मच्छ॑ । न॒म॒स्यन्ती॒रुप॑ च॒ यन्ति॒ सं चा च॑ विशन्त्युश॒तीरु॒शन्त॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पाम्ऽइ॑व । इत् । ऊ॒र्मयः॑ । तर्तु॑राणाः । प्र । म॒नी॒षाः । ई॒र॒ते॒ । सोम॑म् । अच्छ॑ । न॒म॒स्यन्तीः॑ । उप॑ । च॒ । यन्ति॑ । सम् । च॒ । आ । च॒ । वि॒श॒न्ति॒ । उ॒श॒तीः । उ॒शन्त॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपामिवेदूर्मयस्तर्तुराणा: प्र मनीषा ईरते सोममच्छ । नमस्यन्तीरुप च यन्ति सं चा च विशन्त्युशतीरुशन्तम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपाम्ऽइव । इत् । ऊर्मयः । तर्तुराणाः । प्र । मनीषाः । ईरते । सोमम् । अच्छ । नमस्यन्तीः । उप । च । यन्ति । सम् । च । आ । च । विशन्ति । उशतीः । उशन्तम् ॥ ९.९५.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 95; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (उशतीः) शोभमानस्तुतयः (उशन्तं) शोभमानं (सं, विशन्ति) प्राप्नुवन्ति यथा (तर्तुराणाः) शीघ्रकारिणां (मनीषा) बुद्धयः (प्र, ईरते) प्रेरयन्ति एवं हि (सोमं) परमात्मानं (अच्छ) सम्यक् प्राप्नुवन्ति (च) तथा (अपां, इव, ऊर्मयः) यथा जलवीचयः जलं भूषयन्ति एवं हि परमात्मविभूतयः परमात्मानं मण्डयन्ति (च) तथा (नमस्यन्ति) ताः परमात्मविभूतयः सत्कुर्वन्ति (च) तथा (उप, यन्ति) तं लभन्ते ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (उशतीः) शोभावाली स्तुतियें (उशन्तम्) शोभावाले को (संविशान्ति) प्राप्त होती हैं, जैसे कि (तर्तुराणाः) शीघ्र करनेवाले लोगों को (मनीषा) बुद्धियें (प्रेरते) प्रेरणा करती हैं, इसी प्रकार (सोमम्) परमात्मा को (अच्छ) भली-भाँति प्राप्त होती हैं (च) और (अपामिवोर्मयः) जैसे कि जलों की लहरें जलों को सुशोभित करती हैं, इसी प्रकार परमात्मा की विभूतियें परमात्मा को सुशोभित करती हैं (च) और (नमस्यन्ति) परमात्मा की विभूतियें सत्कार करती हैं और (उपयन्ति) उसको प्राप्त होती हैं ॥३॥

    भावार्थ

    इसमें परमात्मा की विभूतियों का वर्णन है कि परमात्मा की विभूतियें परमात्मा के भावों को प्रतिक्षण द्योतन करती हैं, जिनसे परमात्मपरायण पुरुष परमात्मा का साक्षात्कार करते हैं ॥३॥

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    विषय

    तरंगों और प्रजाओं के तुल्य गुरु-वाणियों का वर्णन।

    भावार्थ

    (अपाम् ऊर्मयः इव इत्) ठीक जिस प्रकार जलों की तरंगे (तर्तुराणाः) वेगवती होकर (प्र ईरते) किसी पदार्थ को आगे बढ़ाती हैं उसी प्रकार (मनीषाः) मन को सन्मार्ग पर प्रेरित करने वाली गुरुजनों की वाणियां (सोमम् अच्छ) उस सोम्यस्वभाव दीक्षित परिमार्जित, ज्ञान जल में अभिषिक्त या स्नान करनेवाले शिष्य को (प्र ईरते) आगे बढ़ाती और २ भी उत्कृष्ट ज्ञान का उपदेश करती हैं। और समस्त प्रजाएं जिस प्रकार राजा के समक्ष विनय से (उप यन्ति) प्राप्त होती हैं उसी प्रकार वे सब (मनीषाः) ज्ञानवाणियां (नमस्यन्तीः) सोम, शिष्य का मानो आदर करती हुई, उसके आगे नम्र होती हुईं (उप यन्ति) उसे प्राप्त होती हैं, (संयन्ति) उसे मिल जातीं और (उशन्तं) उनकी कामना करने वाले उसको वे (उशन्तीः) चाहती हुईं सी (आविशन्ति च) उस में प्रवेश कर जाती हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रस्कण्व ऋषिः। पवमानः सोमा देवता ॥ छन्द:- १ त्रिष्टुप् २ संस्तार-पंक्तिः। ३ विराट् त्रिष्टुप्। ४ निचृत् त्रिष्टुप्। ५ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    बुद्धि+कर्म+नमन=प्रवेश

    पदार्थ

    (अपां ऊर्मयः इव) = जलों की लहरों की तरह (मनीषा) = बुद्धियाँ (तर्तुराणाः) = कर्मों में (त्वरा) = से प्रेरित करती हुईं (सोमम् अच्छ) = सोम की ओर (इत्) = निश्चय से (प्र ईरते) = प्रकर्षेण गति वाली होती हैं। सोमरक्षक को वे बुद्धियाँ प्राप्त होती हैं, जो उसे यज्ञादि उत्तम कर्मों में प्रेरित करनेवाली होती हैं। (च) = और ये ही बुद्धियाँ (नमस्यन्ती:) = प्रभु नमन को करती हुई (उपयन्ति) = प्रभु के समीप प्राप्त होती हैं । (उशती:) = प्रभु प्राप्ति की कामना वाली होती हुईं ये बुद्धियाँ (उशन्तम्) = उस प्रभु प्राप्ति की कामना वाले पुरुष को (सं विशन्तिः) = सम्यक् प्राप्त होती हैं, (च) = और (आविशन्ति च) = सर्वथा प्रभु को प्राप्त कराती हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से हमें वे बुद्धियाँ प्राप्त होती हैं जो हमें कर्मों में प्रेरित करती हैं और प्रभु नमन करती हुईं प्रभु में प्रवेश करानेवाली होती हैं । वस्तुतः बुद्धि पूर्वक कर्म करने से और उन कर्मों को नतमस्तक हो प्रभु अर्पण करने से ही तो प्रभु प्राप्ति होती है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Like waves of the sea pressing onward with force and speed, the songs of adoration rise and radiate with love to Soma. Expressive of ardent love, faith and reverence, they reach and join the divine presence which too is equally ardent and anxious to receive them.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    येथे परमेश्वराच्या विभूतीचे वर्णन आहे की परमेश्वराच्या विभूती परमेश्वराच्या भावाचे प्रतिक्षणी द्योतन करतात. ज्यांच्याकडून परमात्म परायण पुरुष परमेश्वराचा साक्षात्कार करतात. ॥३॥

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