Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1133
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
अ꣢व्या꣣ वा꣢रे꣣ प꣡रि꣢ प्रि꣣यो꣢꣫ हरि꣣र्व꣡ने꣢षु सीदति । रे꣣भो꣡ व꣢नुष्यते म꣣ती꣢ ॥११३३॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡व्या꣢꣯ । वा꣡रे꣢꣯ । प꣡रि꣢꣯ । प्रि꣣यः꣢ । ह꣡रिः꣢꣯ । व꣡ने꣢꣯षु । सी꣣दति । रेभः꣢ । व꣣नुष्यते । मती꣣ ॥११३३॥
स्वर रहित मन्त्र
अव्या वारे परि प्रियो हरिर्वनेषु सीदति । रेभो वनुष्यते मती ॥११३३॥
स्वर रहित पद पाठ
अव्या । वारे । परि । प्रियः । हरिः । वनेषु । सीदति । रेभः । वनुष्यते । मती ॥११३३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1133
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
आगे पुनः वही विषय है।
पदार्थ
(प्रियः), प्रिय (हरिः) चित्त को हरनेवाला वा दोषों को दूर करनेवाला आचार्य (अव्याः वारे) पृथिवी के चुने हुए स्थान पर (वनेषु) एकान्त जंगलों में (परि सीदति) स्थित होता है। (रेभः) विद्या का उपदेष्टा वह (मती) मति से (वनुष्यते) विद्या के विघ्नों को नष्ट करता है ॥६॥
भावार्थ
विद्यारूप यज्ञ के लिए वन का एकान्त प्रदेश ही चुनना चाहिए, जहाँ विद्या में विघ्न डालनेवाले नगरों के प्रलोभन न हों ॥६॥
पदार्थ
(प्रियः-हरिः) प्रिय दुःखापहर्ता सुखाहर्ता परमात्मा (वनेषु) वनन—सम्भजनस्थलों—मन, बुद्धि, चित्त, अहङ्कार अन्तःस्थलों में (अव्याः-वारे परि) पृथिवी के वारण—पार्थिव शरीर*39 से परे—उसे पार कर (सीदति) प्राप्त होता है, तब (मती रेभः-वनुष्यते) स्तुति से स्तुतिकर्ता सेवन करता है प्राप्त करता है॥६॥
टिप्पणी
[*39. “इयं पृथिवी वा अविः” [श॰ ६.१.२.३३]।]
विशेष
<br>
विषय
प्रभु का आसन-हृदय
पदार्थ
१. गड़रियों को जैसे अपनी भेड़ें प्रिय होती हैं, इसी प्रकार वे प्रभु भी (अव्याः वारे) = भेड़ों = प्राणिमात्र के इस झुण्ड में [अवि=an ewe, वार=flock] (परि प्रियः) = सब ओर प्रेमवाले हैं। प्रभु किस प्राणी से प्रेम नहीं करते ? २. (हरिः) = ये दुःखों को हरनेवाले प्रभु (वनेषु) = उपासकों में – भक्तों में (सीदति) = विराजमान होते हैं । सर्वव्यापकता के नाते सबमें निवास करते हैं, ३. (रेभः) = ये स्तोता ही (मती) = [मत्या] बुद्धि के द्वारा उस प्रभु को (वनुष्यते) प्राप्त करता है । जैसे रूप का ग्रहण आँख से होता है, शब्द का श्रोत्र से, इसी प्रकार प्रभु का ग्रहण बुद्धि से होता है [दृश्यते त्वग्य्रया बुद्ध्या], क्योंकि यह स्तोता भक्त ही प्रभु का ग्रहण करता है, अतः प्रभु इसी के हृदय में विराजमान होते हैं ।
भावार्थ
हम प्रभु की प्रिय भेड़ें हों। हम भक्त बनें, जिससे हमारा हृदय प्रभु का आसन बने।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पुनस्तमेव विषयमाह।
पदार्थः
(प्रियः) प्रीतियोग्यः, (हरिः) चित्ताकर्षको दोषाणामपहर्ता च आचार्यः (अव्याः वारे) पृथिव्याः वृते स्थाने (वनेषु) अरण्यस्य एकान्तप्रदेशेषु (परि सीदति) तिष्ठति। (रेभः)विद्योपदेशकः सः। [रेभते इति रेभः, रेभृ शब्दे भ्वादिः।] (मती) मत्या (वनुष्यते) विद्याविघ्नान् विनाशयति। [वनुष्यतिः हन्तिकर्माऽनवगतसंस्कारो भवति। निरु० ५।२।] ॥६॥
भावार्थः
विद्यायज्ञाय वनस्यैकान्तप्रदेश एव वरणीयो यत्र विघ्नकराणि नागरिकाणि प्रलोभनानि न भवेयुः ॥६॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।७।६, ‘अव्यो वारे’ इति पाठः.।
इंग्लिश (2)
Meaning
Dearest soul, the queller of afflictions, crossing mental coverings, dwells in our bodies. The praise worthy soul is realised through reflection.
Meaning
Over the regions of light, dear, loved and destroyer of suffering, Soma, Spirit of purity and energy, resides in the heart of happy celebrants and, eloquent and inspiring, illuminates and beatifies their heart and intellect. (Rg. 9-7-6)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (प्रियः हरिः) પ્રિય દુઃખહર્તા, સુખદાતા પરમાત્મા (वनेषु) વનન-સંભજન સ્થાનો મન, બુદ્ધિ, ચિત્ત, અહંકાર અન્તઃસ્થાનોમાં (अव्याः वारे परि) પૃથિવીનું વારણ-પાર્થિવ શરીરથી પર-તેની સામે પાર (सीदति) પ્રાપ્ત થાય છે, ત્યારે (मती रेभः वनुष्यते) સ્તુતિ દ્વારા સ્તુતિકર્તા સેવન કરે છે-પ્રાપ્ત કરે છે. (૬)
मराठी (1)
भावार्थ
विद्यारूपी यज्ञासाठी वनाचा एकांत प्रदेशच निवडला पाहिजे, ज्या स्थानी विद्येत विघ्न आणणाऱ्या नगरांचे प्रलोभन नसावे. ॥६॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal