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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1294
ऋषिः - राहूगण आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
स꣢ वा꣣जी꣡ रो꣢च꣣नं꣢ दि꣣वः꣡ पव꣢꣯मानो꣣ वि꣡ धा꣢वति । र꣣क्षोहा꣡ वार꣢꣯म꣣व्य꣡य꣢म् ॥१२९४॥
स्वर सहित पद पाठसः । वा꣣जी꣢ । रो꣣चन꣢म् । दि꣣वः꣢ । प꣡व꣢꣯मानः । वि । धा꣣वति । रक्षोहा꣢ । र꣣क्षः । हा꣢ । वा꣡र꣢꣯म् । अ꣣व्य꣡य꣢म् ॥१२९४॥
स्वर रहित मन्त्र
स वाजी रोचनं दिवः पवमानो वि धावति । रक्षोहा वारमव्ययम् ॥१२९४॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । वाजी । रोचनम् । दिवः । पवमानः । वि । धावति । रक्षोहा । रक्षः । हा । वारम् । अव्ययम् ॥१२९४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1294
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में यह कहा गया है कि परमेश्वर किसे शुद्ध करता है।
पदार्थ
(सः) वह (वाजी) बलवान्, (रक्षोहा) पापनाशक (पवमानः) पवित्रता देनेवाला सोम परमेश्वर (दिवः) द्युलोक के (रोचनम्) दीप्त पिण्ड सूर्य को और (अव्ययम्) अविनश्वर (वारम्) दोषनिवारक जीवात्मा को (विधावति) विविध रूप से शुद्ध करता है ॥३॥
भावार्थ
परमेश्वर यदि शुद्धिकर्ता न हो तो सब जगह मलिनता का साम्राज्य छा जाए ॥३॥
पदार्थ
(सः-वाजी) वह अमृत अन्नभोग वाला (दिवः-रोचनम्) मोक्षधाम का प्रकाशक (रक्षोहा) विघ्न दोष विनाशक (वारम्-अव्ययम् विधावति) वरने—चाहने वाले अविनाशी आत्मा को विशेषरूप से प्राप्त होता है॥३॥
विशेष
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विषय
वाजी बनकर ' अव्यय वार' की ओर
पदार्थ
(सः) = वह राहूगण १. (वाजी) = शक्तिशाली व गतिशील २. (दिवः) = ज्ञान की (रोचनम्) = दीप्ति को (विधावति) = विशेषरूप से प्राप्त होता है। जैसे शक्ति व गति ज्ञान की प्राप्ति में सहायक हैं उसी प्रकार यह ज्ञान (पवित्रता) = प्राप्ति में सहायक होता है, अत: वह राहूगण ज्ञान को प्राप्त करके ३. (पवमानः) = 1अपने जीवन को पवित्र करनेवाला होता है। ('नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते') ज्ञान के समान कोई पवित्र करनेवाली वस्तु नहीं है। पवित्रता का स्वरूप यह है कि ये ५. (रक्षोहा) = सब राक्षसी वृत्तियों का संहार करता है, अपने रमण के लिए यह कभी औरों का क्षय नहीं करता । ६. इस प्रकार का जीवन बनाकर यह (अव्ययम्) = कभी नष्ट न होनेवाले उस (वारम्) = वरणीय, आपत्तियों के निवारण करनेवाले प्रभु की ओर विधावति विशेषरूप से जाता है ।
भावार्थ
मैं शक्तिशाली बनकर उस अविनाशी प्रभु की ओर गतिवाला होऊँ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमेश्वरः कं शोधयतीत्याह।
पदार्थः
(सः) असौ (वाजी) बलवान्, (रक्षोहा) पापहन्ता (पवमानः) पुनानः सोमः परमेश्वरः (दिवः) द्युलोकस्य (रोचनम्) दीप्तं पिण्डं सूर्यम्, (अव्ययम्) अविनश्वरम् (वारम्) दोषनिवारकं जीवात्मानं च (वि धावति) विविधं शोधयति। [धावु गतिशुद्ध्योः, भ्वादिः] ॥३॥
भावार्थः
परमेश्वरो यदि शुद्धिकरो न स्यात् तर्हि सर्वत्र मलिनतायाः साम्राज्यं भवेत् ॥३॥
इंग्लिश (2)
Meaning
That God, Powerful, the Illuminator of the Sun, the Purifier of all, the Slayer of sins, manifested Himself in-the recesses of the heart.
Meaning
This dynamic omnipotent Spirit, light of heaven, pure and purifying, vibrates universally and rushes to the chosen imperishable soul of the devotee, destroying negativities, sin and evil. (Rg. 9-37-3)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सः वाजी) તે અમૃત અન્નભોગવાળો (दिवः रोचनम्) મોક્ષધામનો પ્રકાશક (रक्षोहा) વિઘ્ન દોષ વિનાશક (वारम् अव्ययम् विधावति) વરણ-ચાહનાર અવિનાશી આત્માને વિશેષરૂપથી પ્રાપ્ત થાય છે. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर जर शुद्धी-कर्ता नसता तर सर्व स्थानी मलिनतेचे साम्राज्य पसरले असते. ॥३॥
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