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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1509
    ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
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    ए꣢न्दु꣣मि꣡न्द्रा꣢य सिञ्चत꣣ पि꣡बा꣢ति सो꣣म्यं꣡ मधु꣢꣯ । प्र꣡ राधा꣢꣯ꣳसि चोदयते महित्व꣣ना꣢ ॥१५०९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ꣢ । इ꣡न्दु꣢꣯म् । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । सि꣣ञ्चत । पि꣡बा꣢꣯ति । सो꣣म्य꣢म् । म꣡धु꣢꣯ । प्र । रा꣡धा꣢꣯ꣳसि । चो꣣दयते । महित्वना꣢ ॥१५०९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एन्दुमिन्द्राय सिञ्चत पिबाति सोम्यं मधु । प्र राधाꣳसि चोदयते महित्वना ॥१५०९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ । इन्दुम् । इन्द्राय । सिञ्चत । पिबाति । सोम्यम् । मधु । प्र । राधाꣳसि । चोदयते । महित्वना ॥१५०९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1509
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    प्रथम ऋचा में पूर्वार्चिक के ३८६ क्रमाङ्क पर इन्द्र शब्द से परमात्मा का ग्रहण किया गया था। यहाँ जीवात्मा का ग्रहण करते हैं।

    पदार्थ

    हे साथियो ! तुम (इन्द्राय) अपने अन्तरात्मा के लिए (इन्द्रम्) सराबोर करनेवाले ब्रह्मानन्द-रस को (आ सिञ्चत) प्रवाहित करो। वह अन्तरात्मा (सोम्यम्) शान्तिकारी (मधु) उस मधुर ब्रह्मानन्द-रस को (पिबाति) पिये। पिया हुआ वह ब्रह्मानन्द-रस (महित्वना) अपनी महिमा से (राधांसि) ऐश्वर्यों को (प्रचोदयते) प्रेरित करे ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा के पास से बहता हुआ आनन्द-रस जीवात्मा से पान किये जाने पर बहुत कल्याणकारी होता है ॥१॥

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    टिप्पणी

    (देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या ३८६)

    विशेष

    ऋषिः—विश्वमना वैयश्वा (विश्व संस्कृत इन्द्रिय घोड़ों को रखने में समर्थ सब में समान मनोभाव रखने वाला)॥ देवता—इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥ छन्दः—उष्णिक्॥<br>

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    विषय

    इहलोक व परलोक साधन

    पदार्थ

    प्रस्तुत मन्त्र का अर्थ ३८६ संख्या पर इस प्रकार है (इन्दुम्) = सोम को (इन्द्राय) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु की प्राप्ति के लिए (आसिञ्चत) = अपने अन्दर सींचो। ‘सोमपान करने से प्रभु प्राप्त होते हैं ' यह सोचकर मन्त्र का ऋषि ‘विश्वमनाः' (सोम्यं मधु) = सोम-सम्बन्धी मधु का (पिबाति) = पान करता है। पिया हुआ यह सोम (महित्वना) = महिमा की प्राप्ति के द्वारा (राधांसि) = सफलताओं को (प्रचोदयते) = प्रकर्षेण प्रेरित करता है ।

    भावार्थ

    सोमपान द्वारा हम प्रभु को प्राप्त करनेवाले हों और संसार में सब कार्यों में सफलता का सम्पादन करनेवाले बनें। 'इहलोक में सफल हों, परलोक में प्रभुदर्शन हो', इस बुद्धि से 'सोम्य मधु' को पीएँ ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्र प्रथमायामृचि पूर्वार्चिके ३८६ क्रमाङ्के इन्द्रशब्देन परमात्मा गृहीतः। अत्र जीवात्मा गृह्यते।

    पदार्थः

    हे सखायः ! यूयम् (इन्द्राय) स्वकीयाय अन्तरात्मने (इन्दुम्) क्लेदकं ब्रह्मानन्दरसम् (आ सिञ्चत) क्षारयत। सः (सोम्यम्) शान्तिकरम् (मधु) मधुरं तं ब्रह्मानन्दरसम् (पिबाति) पिबतु। पीतः स ब्रह्मानन्दरसः (महित्वना) स्वमहिम्ना (राधांसि) ऐश्वर्याणि (प्र चोदयते) प्रेरयतु ॥१॥

    भावार्थः

    परमात्मनः सकाशात् प्रवहन्नानन्दरसः जीवात्मना पीतो बहुकल्याणकरो जायते ॥१॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O priests, perform Homa with the juice of Soma, for the lightning, which dries the Soma juice and through its majesty send s forth its bounteous gifts!

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    Meaning

    Prepare, offer and regale Indra with the nectar drink of faith and performance. He values, enjoys and promotes the honey sweets of peace, pleasure and progress and, with his power and grandeur, inspires the people with will and competence and ambition for progress and excellence. (Rg. 8-24-13)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (इन्द्राय) ઐશ્વર્યવાન પરમાત્માને માટે (इन्दुम् आसिञ्चत) ઉપાસકો ! રસીલા સોમ-ઉપાસના — રસને સિંચો-પ્રસારિત કરો (सोम्यं मधु पिबाति) તે સોમના મધનું પાન કરે અથવા પીવે છે. (महित्वना) પોતાના મહત્ત્વથી (राधांसि) ઉપાસકોને માટે સિદ્ધ ધનોને (प्रचोदयते) પ્રેરિત કરે છે. (૬)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याकडून प्रवाहित झालेला आनंदरस जीवात्म्याने प्राशन केल्यास अत्यंत कल्याणकारी ठरतो. ॥१॥

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