Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 8
ऋषिः - वत्सः काण्वः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
4
आ꣡ ते꣢ व꣣त्सो꣡ मनो꣢꣯ यमत्पर꣣मा꣡च्चि꣢त्स꣣ध꣡स्था꣢त् । अ꣢ग्ने꣣ त्वां꣢ का꣢मये गि꣣रा꣢ ॥८॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । ते꣣ । वत्सः꣢ । म꣡नः꣢꣯ । य꣣मत् । परमा꣢त् । चि꣣त् । सध꣡स्था꣢त् । स꣣ध꣢ । स्था꣣त् । अ꣡ग्ने꣢꣯ । त्वाम् । का꣣मये । गिरा꣢ ॥८॥
स्वर रहित मन्त्र
आ ते वत्सो मनो यमत्परमाच्चित्सधस्थात् । अग्ने त्वां कामये गिरा ॥८॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । ते । वत्सः । मनः । यमत् । परमात् । चित् । सधस्थात् । सध । स्थात् । अग्ने । त्वाम् । कामये । गिरा ॥८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 8
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मैं तुझ परमात्मा में अपना प्रेम बाँधता हूँ, यह कहते हैं।
पदार्थ
हे (अग्ने) जगत्पिता परमात्मन् ! (ते) तेरा (वत्सः) प्रिय पुत्र (परमात् चित्) सुदूरस्थ भी (सधस्थात्) प्रदेश से (मनः) अपने मन को (आयमत्) लाकर तुझ में केन्द्रित कर रहा है। अर्थात् मैं तेरा प्रिय पुत्र तुझमें मन को केन्द्रित कर रहा हूँ। मैं (गिरा) स्तुति-वाणी से (त्वाम्) तुझ परमात्मा की (कामये) कामना कर रहा हूँ, अर्थात् तेरे प्रेम में आबद्ध हो रहा हूँ ॥८॥
भावार्थ
जब मनुष्य सांसारिक विषयों की निःसारता को देख लेता है, तब दूर-से-दूर भू-प्रदेशों में भटकते हुए अपने मन को सभी प्रदेशों से लौटा कर परमात्मा में ही संलग्न कर लेता है और वाणी से परमात्मा के ही गुण-धर्मों का बारम्बार स्तवन करता है और उसके प्रेम से परिप्लुत हृदयवाला होकर सम्पूर्ण पृथिवी के भी राज्य को उसके समक्ष तुच्छ गिनता है ॥८॥
पदार्थ
(अग्ने) हे ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मन्! ( वत्सः) तेरे गुणों का वक्ता—स्तुतिकर्ता “वदः सः” [उणादि॰ ३.६२] (परमात् सधस्थात्-चित्) परमसहस्थान—मोक्षधाम से भी (ते मनः-आ यमत्) तेरे माननीय स्वरूप को स्वात्मा में खींच ले आता है (त्वां गिरा कामये) तुझे स्तुति-द्वारा चाहता हूँ।
भावार्थ
हे परम प्रिय परमात्मन्! यद्यपि तू सर्वव्यापक है, परन्तु कैवल्य दृष्टि से तेरा स्थान परमसधस्थ—मोक्षधाम है जहाँ तेरा मेरा परम सहवास होता है, संसार में रहते हुए तेरा मेरा सहवास होता है मेरे हृदय-सदन वह स्थान अल्प है वह अवम सधस्थ है, पर हाँ इस अपने घर में मैं तेरे मननीय स्वरूप को अवश्य परमसधस्थ—मोक्षधाम से स्तुति बल से खींच लाता हूँ तुझे अपना अङ्गसङ्गी बना लेता हूँ जब तक परमसधस्थ—मोक्षधाम में न पहुचूँ। कारण कि मैं तुझे स्तुति से चाहता हूँ, तुझे तेरी स्तुति चाहिए मुझे तेरा मननीय-स्वरूप चाहिए। जब मैं तेरी स्तुति करते करते अपने आत्मा को पूर्णरूप से झुका देता हूँ तब तू भी अपने मननीय स्वरूप को मेरी ओर नमा देता है। स्तुति तेरे दर्शन का अमोघ साधन है अतः स्तुति द्वारा तुझे चाहता हूँ रिक्त हस्त नहीं स्तुति भेट द्वारा॥८॥
विशेष
ऋषिः—काण्वो वत्सः (मननशील मेधावी का शिष्य या अत्यन्त मेधावी वक्ता—स्तुतिकर्ता जन)॥<br>
विषय
प्रभु का प्यारा क्या चाहता है
पदार्थ
हे प्रभो!( ते वत्सः)= तेरा यह प्यारा व सदा सत्य व्यवहार करनेवाला पुत्र (परमात्)= सबसे उत्कृष्ट (सधस्थात्)= प्रभु के साथ रहने के लोक अर्थात् मोक्षलोक से (चित्=) भी (मनः)= अपने मन को (आ यमत्)= काबू करता है, अर्थात् अपने मन में मोक्षलोक की भी कामना नहीं करता। इसकी कामना होती है कि (अग्ने)= हे प्रभो ! (गिरा)= वाणी से (त्वाम्) = तुम्हें (कामये)= चाहूँ, अर्थात् संसार में रहते मैं सदा सत्य का पालन करता रहूँ। आप सत्यस्वरूप हैं। मेरी वाणी भी सत्य को ही चाहे ।
अपने सुखों को तिलाञ्जलि देकर सर्वहित-साधन में प्रवृत्त होने के कारण ये प्रभु के ‘वत्स' [प्यारे] बनते हैं। 'वत्स' ही इस मन्त्र का ऋषि है।
भावार्थ
भावार्थ-सर्वदा सत्य विचारना, सत्य बोलना और सत्य का आचरण करना मोक्ष के आनन्द के समान है।
विषय
परमेश्वर की स्तुति
भावार्थ
भा० = ( वत्सः१ ) = तेरे पुत्र के समान स्तुतिकर्ता उपासक ( ते मन:२ ) = तेरे मनन करने योग्य सत्यज्ञान को ( परमात् चित् सधस्थात् ) = परम उत्कृष्ट स्थान से ( आ यमत् ) = वश करता, प्राप्त करता है । हे ( अग्ने ) = अग्ने ! परमेश्वर ! ( त्वां कामये ) = मैं तुझे ही चाहता हूं ।
अन्तरात्मा में साक्षात् ब्रह्म से मनन करने योग्य सत्य ज्ञान को प्राप्त करता है और ईश्वर के प्रति प्रेम प्रकट करता और उसे चाहता है ।
टिप्पणी
१. वदेरौणादिकः सः । उपा० ३ । ६२ ।
२. मन ज्ञाने ( भ्वादिः ) ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषि: - वत्स काण्व :
छन्दः - गायत्री
संस्कृत (1)
विषयः
अहं परमात्मनि त्वयि प्रेम बध्नामीत्याह।
पदार्थः
हे (अग्ने) जगत्पितः परमात्मन् ! (ते) तव (वत्सः२) प्रियः पुत्रोऽयम् (परमात् चित्) सुदूरादपि सधस्थात् प्रदेशात्। सह तिष्ठन्ति जनाः पदार्था वा यत्र स सधस्थः सहस्थानं तस्मात्। सधमादस्थयोश्छन्दसि अ० ६।३।९६ इति सहस्य सधादेशः। (मनः) मानसम् (आ यमत्) आयच्छति, आसमन्तादानीय त्वयि केन्द्रितं करोति। अहं तव वत्सस्त्वयि मनः केन्द्रयामीति भावः। यमद् इति यमु उपरमे धातोर्लेटि रूपम्। बहुलं छन्दसि अ० २।४।७३ इति शपो लुकि धातोर्यच्छादेशो न। ततश्च त्वयि केन्द्रितमानसोऽहम् (गिरा) स्तुतिवाचा (त्वाम्) परमात्मानम् (कामये) अभिलषामि, त्वत्प्रेमबद्धो भवामीति भावः ॥८॥
भावार्थः
यदा मानवः सांसारिकविषयाणां निःसारतां पश्यति तदा दूरात् सुदूरेषु भूप्रदेशेषु लोक-लोकान्तरेषु च भ्राम्यत् स्वकीयं मनः सर्वेभ्योऽपि प्रदेशेभ्यः प्रतिनिवर्त्य परमात्मन्येव संलगयति, गिरा च परमात्मन एव गुणधर्मान् मुहुर्मुहुः स्तौति, तत्प्रेमपरिप्लुतहृदयश्च सकलाया धरित्र्या राज्यमपि तत्समक्षं तुच्छं गणयति ॥८॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ८।११।७, कामये इत्यस्य स्थाने कामया इति पाठः। य० १२।११५। साम० ११६६। यजुर्भाष्ये दयानन्दर्षिर्मन्त्रमिमं मनुष्यैः सदैव मनः स्ववशं विधेयं वाणी च इति विषये व्याख्यातवान्। २. ऋचोऽस्या द्रष्टा ऋषिरपि वत्स एव। तत्तु तस्य न वास्तविकं नाम, किन्तु मन्त्रवर्णनसौन्दर्याकृष्टः स स्वकीयम् उपनाम वत्स इति चक्रे। तेनैव नाम्ना स प्रसिद्धिं गत इति बोध्यम्।
इंग्लिश (4)
Meaning
O God, like a devoted son, I receive Thy true knowledge in my highly exalted soul. I long for Thee through praise.
Meaning
The dear dedicated sage adores you, Agni, and with words of love and faith prays for your attention from the highest heaven of light. (Rg. 8-11-7)
Translation
I am Thy Child 0 God,
I will draw Thy mind Most High.
Only Thee I want O Lord,
Thou art far away and nigh.
Comments
अथर्वावी-हिंसा चांचल्यरहितः स्थितप्रज्ञोयोगी थर्वतिश्चरतिकमी निघ. ११.६. तद्रहितः थर्वे-हिंसायां काश० घा० तद्रहितोऽहिंसान्रतः
Translation
O adorable Lord, may the dear young devotee draw your kind attention through his song, yearning to meet you even at your loftiest dwelling place. (Cf. S. 1166; Rv VIII.11.7)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (अग्ने) હે જ્ઞાન-પ્રકાશસ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! (वत्सः) તારા ગુણોનો વક્તા-સ્તુતિકર્તા હું (परमात् सधस्थात् चित्) પરમ સહસ્થાન - મોક્ષ ધામથી પણ (ते मनः आ यमत्) તારા માનનીય સ્વરૂપને સ્વ આત્મામાં ખેંચીને લઈ આવું છું (त्वां गिरा कामये) તને સ્તુતિ દ્વારા ચાહું છું - ઇચ્છું છું કે પ્રેમ કરું છું.
भावार्थ
ભાવાર્થ : હે મારા પરમ પ્રિય પરમાત્મન્ ! જો કે તું સર્વવ્યાપક છે, પરંતુ કૈવલ્ય = મોક્ષની દૃષ્ટિએ તારું સ્થાન પરમ સધસ્થ - મોક્ષધામ છે, જ્યાં તારો અને મારો પરમ સહવાસ થાય છે, સંસારમાં રહેતા તારો અને મારો સહવાસ મારા હૃદય-ગૃહમાં થાય છે, પરંતુ તે સ્થાન અલ્પ છે, અવમ સધસ્થ છે, જેથી જ્યાં સુધી પરમ સધસ્થ - મોક્ષધામમાં ન પહોંચું, ત્યાં સુધી હાં, એ મારા અલ્પ હૃદય ગૃહમાં તારા મનનીયસ્વરૂપને અવશ્ય પરમ સધસ્થ-મોક્ષધામની સ્તુતિ બળથી ખેંચીને લાવું છું. તથા તને અંગ સંગી બનાવું છું. કારણ કે હું તને સ્તુતિ દ્વારા ચાહું છું, તને તારી સ્તુતિ જોઈએ. મને તારું મનનીય સ્વરૂપ જોઈએ. જ્યારે હું સ્તુતિ કરતાં-કરતાં મારા આત્માને પૂર્ણ રૂપથી ઝુકાવી દઉં છું, ત્યારે તું પણ પોતાના મનનીય સ્વરૂપને મારી તરફ નમાવી દે છે. સ્તુતિ તારા દર્શનનું અમોઘ સાધન છે, તેથી સ્તુતિ દ્વારા તને ચાહું છું. ખાલી હાથે નહિ, પરંતુ સ્તુતિની ભેટ દ્વારા મળું છું. (૮)
उर्दू (1)
Mazmoon
ایک ہی کامنا
Lafzi Maana
ہے پربُھو! (تے وتس) آپ کا پُتر یہ اُپاسک (عابد) (پرمات چِت) دُور دُور کے (سدھستھات) دُور دُور ستھانوں میں بھٹکنے والے (من) من کو وہاں سے بٹاکر (تے) تجھ میں (آیمت) سمیٹ لیتا ہے، رما دیتا ہے۔ اِس لئے کہ میں تیرا پیارا سُپتر اُپاسک (گِرا) سُتتی پرارتھنا کی بانی دوارہ (تُوام) آپ کے درشنوں کی (کامئے) کامنا کرتا رہتا ہوں۔
Tashree
میں اپنے پربُھو کا وتس ارتھات پیارا پُتر ہی بن کے سدا رہنا چاہتا ہوں، مجھے موکھش یا مُکتی سے بھی زیادہ اپنے سچے پیار سے سدا ساتھ رہنے والے پِتا پرمیشور کا ہی پیار چاہئیے، یہی کامنا ہے، یہی اِچھا ہے اور یہی دیرینہ خواہش اُس کے درشنوں کی اور اُس کے حضور میں سدا رہنے کی۔
बंगाली (1)
পদার্থ
আ তে বৎসো মনো যমৎ পরমাচ্চিৎ সধস্থাৎ।
অগ্নে ত্বাং কাময়ে গিরা।।৪।।
(সাম ৮)
পদার্থঃ হে (অগ্নে) জগৎপিতা পরমাত্মা! (তে) তোমার (বৎসঃ) এই প্রিয় সন্তান (পরমাৎ চিৎ) অতিদূরবর্তী (সধস্থাৎ) স্থান থেকে (মনঃ) নিজের মনকে (আ য়মৎ) নিয়ে এসে তোমাতে কেন্দ্রীভূত করে। আমি (গিরা) শ্রদ্ধাময় স্তুতি-বাণীর দ্বারা (ত্বাম্) তোমার (কাময়ে) কামনা করছি অর্থাৎ তোমার প্রেমে আবদ্ধ হচ্ছি।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ যখন মনুষ্য সাংসারিক বিষয়ের সারহীনতাকে অনুভব করে, তখন দূর-অতিদূর স্থান থেকেও দোদুল্যমান নিজের মনকে সব বিষয় থেকে ফিরিয়ে নিয়ে এসে পরমাত্মায় সংলগ্ন করে এবং বাণী দ্বারা পরমাত্মারই গুণ-ধর্মের বারবার স্তব করতে থাকে। তেমনি পরমাত্মার প্রিয় সন্তান অর্থাৎ আমি আমার মনকে শ্রদ্ধা ও ভক্তি রস দ্বারা পূর্ণ করে পার্থিব বিষয় থেকে স্থানান্তরিত করে পরমেশ্বরে স্থাপিত করছি। আমি পরমেশ্বরের কাছে ভক্তি সহকারে স্তুতি বাণীর দ্বারা প্রার্থনা করছি, যেন তাঁর ভক্তি ও প্রেমে আমার হৃদয় এতটাই আপ্লুত হয়ে ওঠে যাতে সম্পূর্ণ পৃথিবীর রাজ্যকেও তাঁর সামনে আমার কাছে তুচ্ছ মনে হয়।।৪।।
मराठी (2)
भावार्थ
जेव्हा माणूस सांसारिक विषयांची नि:सारता पाहतो, तेव्हा दूर दूर प्रदेशामध्ये भटकणाऱ्या आपल्या मनाला सर्व प्रदेशातून परत आणून परमात्म्यामध्ये संलग्न करतो व वाणीने परमात्म्याच्या गुणांचे वारंवार स्तवन करतो व त्याच्या प्रेमात अखंड बुडाल्यामुळे पृथ्वीचे राज्यही त्याच्यासमोर तुच्छ मानतो ॥८॥
विषय
मी तुझ्याशी माझा प्रेमभाव दृढ करीत आहे. -
शब्दार्थ
हे (अग्ने) जगन्नियन्ता परमात्मन् (ते) तुझा हा (वत्सः) प्रिय पुत्र (तुझे लाडके वासरू) (परमात्चत्) दूर असलेल्या (सधस्थात्) प्रदेशात असला तरीही (मनः) आपल्या मनाला (आयमत्) तेथून आणून तुझ्यात (तुझ्या ध्यानात) केंद्रित करीत आहे., (मी तुझा प्रिय पुत्र, उपासक तुझे ध्यान करीत आहे.) (गिरा) हृदयातील ध्यानाव्यतिरिक्त मी (गिरा) स्तुति वाणीद्वारे (त्वाम् ) तुझ ईश्वराची (कामये) कामना करीत आहे. म्हणजे तुझ्या प्रेमभावात आबद्ध होत आहे. ।।८।।
भावार्थ
जेव्हा मनुष्य सांसारिक, ऐहिक विषयांत व्यर्थत्व ओळखतो तेव्हा दूर दूरच्या प्रदेशात भरकटलेल्या आपल्या मनाला सर्व प्रदेशापासून परत आणून त्याला परमेश्वराशी संलग्न करतो. वाणीने वारंवार त्याच्याच गुण धर्माचे स्तवन करतो आणि त्याच्या प्रेमाने परिप्लुत झालेल्या हृदयामुळे समस्त भूमंडळाच्या राज्यालाही तुच्छ लेखतो. ॥८॥
विशेष
त्या परमेश्वराची मी स्तुती करतो, हे सांगतात. -
तमिल (1)
Word Meaning
(அக்னியே) ! [1] வரவும். இந்த (சோமதுளி)களால் வளர்ச்சியாகவும். (அக்னியே!) [2] வத்சன் பெரிய நிலயத்தினின்று உன் மனத்தை வசீகரித்து மொழியால் உன்னை (விரும்புகிறேன்).
FootNotes
[1] வரவும் - நீ வருவதற்கு - விளங்குவதற்கு - நான் அருகதையாகிறேன். [2] வத்சன் - உன் மகன் போலுள்ள நான்
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal