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यजुर्वेद अध्याय - 20

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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 13
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - अध्यापकोपदेशकौ देवते छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    2

    लोमा॑नि॒ प्रय॑ति॒र्मम॒ त्वङ् म॒ऽआन॑ति॒राग॑तिः। मा॒सं म॒ऽउप॑नति॒र्वस्वस्थि॑ म॒ज्जा म॒ऽआन॑तिः॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    लोमा॑नि। प्रय॑ति॒रिति॒ प्रऽय॑तिः। मम॑। त्वक्। मे॒। आन॑ति॒रि॒त्याऽन॑तिः। आग॑ति॒रित्याऽग॑तिः। मा॒सम्। मे॒। उप॑नति॒रित्युप॑ऽनतिः। वसु॑। अस्थि॑। म॒ज्जा। मे॒। आन॑ति॒रित्याऽन॑तिः ॥१३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    लोमानि प्रयतिर्मम त्वङ्मऽआनतिरागतिः । माँसम्मऽउपनतिर्वस्वस्थि मज्जा मऽआनतिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    लोमानि। प्रयतिरिति प्रऽयतिः। मम। त्वक्। मे। आनतिरित्याऽनतिः। आगतिरित्याऽगतिः। मासम्। मे। उपनतिरित्युपऽनतिः। वसु। अस्िथ। मज्जा। मे। आनतिरित्याऽनतिः॥१३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे अध्यापकोपदेशकाः! यथा मम लोमानि प्रयतिर्मे त्वगानतिर्मांसमागतिर्मे वसूपनतिर्मेऽस्थि मज्जा चानतिः स्यात् तथा यूयं प्रयतध्वम्॥१३॥

    पदार्थः

    (लोमानि) रोमाणि (प्रयतिः) प्रयतन्ते यया सा (मम) (त्वक्) (मे) (आनतिः) आनमन्ति यया सा (आगतिः) आगमनम् (मांसम्) (मे) (उपनतिः) उपनमन्ति यया सा (वसु) द्रव्यम् (अस्थि) (मज्जा) (मे) (आनतिः) समन्तात् नमनम्॥१३॥

    भावार्थः

    अध्यापकोपदेशकैरेवं प्रयतितव्यं यतः सुशिक्षया युक्ताः सर्वे पुरुषाः सर्वाः कन्याश्च सुन्दराङ्गस्वभावा दृढबला धार्मिका विद्यायुक्ताः स्युरिति॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे अध्यापक और उपदेशक लोगो! जैसे (मम) मेरे (लोमानि) रोम वा (प्रयतिः) जिससे प्रयत्न करते हैं वा (मे) मेरी (त्वक्) त्वचा (आनतिः) वा जिससे सब ओर से नम्र होते हैं, (मांसस्) मांस वा (आगतिः) आगमन तथा (मे) मेरा (वसु) द्रव्य (उपनतिः) वा जिससे नम्र होते हैं (मे) मेरे (अस्थि) हाड़ और (मज्जा) हाड़ा के बीच का पदार्थ (आनतिः) वा अच्छे प्रकार नमन होता हो, वैसे तुम लोग प्रयत्न किया करो॥१३॥

    भावार्थ

    अध्यापक, उपदेशक लोगों को इस प्रकार प्रयत्न करना चाहिये कि जिससे सुशिक्षायुक्त सब पुरुष और सब कन्या सुन्दर अङ्ग और स्वभाव वाले दृढ़, बलयुक्त, धार्मिक विद्याओं से युक्त होवें॥१३॥

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    विषय

    राजा के शरीर के अंगों की राजा की शक्तियों या अधिकारों से तुलना ।

    भावार्थ

    राजा के शरीर की राज शक्तियों से तुलना । (प्रयतिः) राष्ट्र में समस्त जनों का प्रयत्न, श्रम या उत्तम शासन (मम) मेरे शरीर के (लोमानि) लोमों के समान, राष्ट्र की रक्षा के साधन हैं । (आनतिः) शत्रुओं और दुष्ट पुरुषों को झुकाने वाली शक्ति और (आगतिः) मेरी आज्ञा पाते ही उनका आना, ये दोनों शक्तियां ( मे त्वक ) मेरी त्वचा के समान राष्ट्र की रक्षा करने वाली हैं । (उपनतिः) लोगों को आदर से झुकाने वाली शक्ति ( मे मांसम् ) मेरे शरीर के मांस के समान राष्ट्र-शरीर को स्वस्थ समृद्ध होने के समान है (वसु अस्थि) मेरी प्रजा को बसाने का सामर्थ्य और ऐश्वर्य मेरे शरीर में अस्थि के समान राष्ट्र-शरीर के दृढ़ आधार के समान है । (मे आनतिः) प्रेम से, लोगों का मेरे गुणों के समक्ष झुकाने वाला बल (मे) मेरे शरीर विद्यमान (मज्जा) मज्जा के समान, राष्ट्र- शरीर में सबको सुख, शान्ति देने वाला है । शत० १२ । ८ । ३ । ३१ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अनुष्टुप् । गांधारः । अध्यापकोपदेशकौ, लोमत्वङ्मांसास्थिमज्जानो लिंगोक्ताः ॥

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    विषय

    प्रयत्न व नम्रता [प्रयतिरानति:]

    पदार्थ

    १. (मम लोमानि प्रयतिः) = मेरे बाल प्रकृष्ट यत्नवाले हैं। [मम लोमस्वपि प्रयत्नः] मेरे एक-एक लोम में प्रयत्न की भावना है। २. (मे त्वक्) = मेरी त्वचा (आनतिः) = नम्रता है तथा (आगतिः) = क्रियाशीलता है। (नतिः) = नम्रता (आनतिः) = सब दृष्टिकोणों से नम्रता । (आ-गतिः) = सदा क्रियाशीलता। 'त्वचा' जैसे संवरण करती हुई शरीर को सुरक्षित रखती है, इसी प्रकार नम्रता और क्रियाशीलता मुझे वासनाओं के आक्रमण से बचाती हैं, एवं ये मेरी त्वचा हैं। ३. (उपनतिः) = विद्वानों के समीप नम्रता से उपस्थान ही (मे) = मेरा (मांसम्) = मांस है, मुझे बलवान् बनानेवाला है [बलवान्- मांसल :] ४. (वसु) = धन, राष्ट्रकोश ही, (अस्थि) = राष्ट्र- शरीर के ढाँचे को ठीक रखनेवाली हड्डी है। धन के बिना राष्ट्र-शरीर खड़ा नहीं रह सकता । ५. (आनतिः) = शत्रुओं को झुकाना (मे) = मेरी (मज्जा) = मज्जा [Marrow] है। शत्रुओं को नतमस्तक करना मेरे जीवन का अङ्ग बन गया है, यह मेरा स्वभाव हो गया है।

    भावार्थ

    भावार्थ- मेरे जीवन में प्रयत्न [प्रयति], नम्रता [ आनति], क्रियाशीलता [ आगति ] आचार्यों के समीप नम्रता से उपस्थान [उपनति ] – ये सब बातें हैं। परिणामतः मैं वसुओं को प्राप्त कर पाया हूँ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    अध्यापक व उपदेशक यांनी याप्रकारे प्रयत्न करावा की, ज्यामुळे सर्व पुरुष सुशिक्षित, मुली सुंदर अंगाच्या, स्वभावाने दृढ, बलवान व धार्मिक विद्यांनीयुक्त व्हाव्यात.

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    विषय

    पुनश्च, तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (साधक म्हणत आहे) हे अध्यापक आणि ज्याद्वारे यत्न वा कार्य केले जाते, ती (मे) माझी (त्वक्‌) त्वचा (नम्र वा कार्यक्षम राहील, असे करा) (आनतिः) सर्वतः नम्र वा कोमल (मांसम्‌) मांस (कार्यरत राहील, असे करा) (आनतिः) नम्र होण्याचे कारण व्हावेत. (धनामुळे मला मदज्वर होऊ नये) (मे) माझे (अस्थि) हाडें आणि (मज्जा) हाडातील पदार्थ (आनतिः) नम्र, कोमल व कार्यक्षम राहतील, असे तुम्ही यत्न करा (माझे शरीर सत्कर्म करण्यासाठी स्वस्थ राहील, असा तुम्ही मला उपदेश करा) ॥13॥

    भावार्थ

    भावार्थ - समाजातील अध्यापक आणि उपदेशक लोकांनी असे यत्न करावेत की ज्यायोगे सर्व युवक, सर्व कन्या सुशिक्षित होतील, त्यांचे शरीर नीरोग राहील आणि त्यांचा स्वभाव शीलयुक्त राहील. तसेच ते युवक-युवती दृढ. बलवान आणि धार्मिक विद्यासंपन्न होतील, असे यत्न उपदेशकांनी व अध्यापकांनी करावेत. ॥13॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O teachers and preachers exert so that my hair be effort and attempt, my skin be reverence, my flesh be approach, wealth my inclination, my bone and marrow reverence.

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    Meaning

    The hair on my body, my effort and action, my skin, my humility, my coming and income, my flesh, my courtesy, my wealth, bones, marrow and my humility and reverence be all for the teachers and preceptors. Ji are:

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    Translation

    Effort is my hair; reverence to me and assemblage of people around me is my skin; gifts are my flesh; wealth is my bone; and humility towards me is my marrow. (1)

    Notes

    Ānatiḥ, reverence to me. Agatiḥ, assemblage of people near me. Upanatiḥ, presents; gifts.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেহ বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে অধ্যাপক ও উপদেশকগণ ! যেমন (মম) আমার (লোমানি) লোম বা (প্রয়তিঃ) যাহা দ্বারা প্রযত্ন করি অথবা (মে) আমার (ত্বক্) ত্বক্ (আনতিঃ) বা যদ্দ্বারা সব দিক দিয়া নম্র হয় (মাংসম্) মাংস বা (আগতিঃ) আগমন তথা (মে) আমার (বসু) দ্রব্য (উপনতিঃ) বা যদ্দ্বারা নম্র হয়, (মে) আমার (অস্থি) হাড় ও (মজ্জা) মজ্জা (আনতিঃ) বা উত্তম প্রকারে নমন হয় সেইরূপ তোমরাও প্রযত্ন করিতে থাক ॥ ১৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- অধ্যাপক, উপদেশকগণকে এই রকম প্রযত্ন করা উচিত যে, যাহা দ্বারা সুশিক্ষাযুক্ত সব পুরুষ এবং সব কন্যা সুন্দর অঙ্গ ও স্বভাব যুক্ত দৃঢ়, বলযুক্ত, ধার্মিক বিদ্যা দ্বারা যুক্ত হউক ॥ ১৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    লোমা॑নি॒ প্রয়॑তি॒র্মম॒ ত্বঙ্ ম॒ऽআন॑তি॒রাগ॑তিঃ ।
    মা॒ᳬंসং ম॒ऽউপ॑নতি॒র্বস্বস্থি॑ ম॒জ্জা ম॒ऽআন॑তিঃ ॥ ১৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    লোমানীত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । অধ্যাপকোপদেশকৌ দেবতে । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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