यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 21
ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः
देवता - यज्ञो देवता
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
2
घर्मै॒तत्ते॒ पुरी॑षं॒ तेन॒ वर्द्ध॑स्व॒ चा च॑ प्यायस्व।व॒र्द्धि॒षी॒महि॑ च॒ व॒यमा च॑ प्यासिषीमहि॥२१॥
स्वर सहित पद पाठघर्म॑। ए॒तत्। ते॒। पुरी॑षम्। तेन॑। वर्द्ध॑स्व। च॒। आ। च॒। प्या॒य॒स्व॒ ॥ व॒र्द्धि॒षी॒महि॑। च॒। व॒यम्। आ। च॒। प्या॒सि॒षी॒म॒हि॒ ॥२१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
घर्मैतत्ते पुरीषन्तेन वर्धस्व चा च प्यायस्व । वर्धिषीमहि च वयमा च प्यासिषीमहि ॥
स्वर रहित पद पाठ
घर्म। एतत्। ते। पुरीषम्। तेन। वर्द्धस्व। च। आ। च। प्यायस्व॥ वर्द्धिषीमहि। च। वयम्। आ। च। प्यासिषीमहि॥२१॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे घर्म! सर्वतः प्रकाशमय जगदीश्वर विद्वन्! वा यदेतत्ते पुरीषमस्ति, तेन त्वं वर्द्धस्व चाऽन्यान् वर्द्धय, स्वयमाप्यायस्वाऽन्यांश्च पोषय। तव कृपया शिक्षया वा यथा वयं वर्द्धिषीमहि, तथा चाऽन्यान् वयं वर्द्धयेम। यथा च वयमाप्यासिषीमहि तथाऽन्यान् समन्ततः पोषयेम तथा यूयमपि कुरुत॥२१॥
पदार्थः
(घर्म) पूजनीयतम! (एतत्) (ते) तव (पुरीषम्) व्यापनं पालनं वा (तेन) (वर्द्धस्व) (च) (आ) (च) (प्यायस्व) पुषाण (वर्द्धिषीमहि) पूर्णां वृद्धिं प्राप्नुयाम (च) (वयम्) (आ) (च) (प्यासिषीमहि) सर्वतो वर्द्धेम॥२१॥
भावार्थः
अत्र श्लेषवाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे मनुष्याः! यथेश्वरेण सर्वत्राभिव्याप्तेन सर्वं रक्ष्यते पोष्यते च, तथैव वर्द्धमानैः पुष्टैरस्माभिः सर्वे जीवा वर्द्धनीयाः पोषणीयाश्च॥२१॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (घर्म) अत्यन्त पूजनीय सब ओर से प्रकाशमय जगदीश्वर वा विद्वन्! जो (एतत्) यह (ते) आपका (पुरीषम्) व्याप्ति वा पालन है (तेन) उससे आप (वर्द्धस्व) बुद्धि को प्राप्त हूजिये (च) और दूसरों को बढ़ाइये। आप स्वयं (आ, प्यायस्व) पुष्ट हूजिये (च) और दूसरों को पुष्ट कीजिये, आपकी कृपा वा शिक्षा से जैसे (वयम्) हम लोग (वर्द्धिषीमहि) पूर्ण वृद्धि को पावें (च) और वैसे ही दूसरों को बढ़ावें (च) और जैसे हम लोग (आ, प्यासिषीमहि) सब ओर से बढ़ें, वैसे दूसरों को निरन्तर पुष्ट करें, वैसे तुम लोग भी करो॥२१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में श्लेष और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे मनुष्यो! जैसे सर्वत्र अभिव्याप्त ईश्वर ने सबकी रक्षा वा पुष्टि की है, वैसे ही बढ़े हुए पुष्ट हम लोगों को चाहिये कि सब जीवों को बढ़ावें और पुष्ट करें॥२१॥
विषय
सार पदार्थ ग्रहण करने का उपदेश ।
भावार्थ
हे (धर्म) मेघ के समान प्रजा पर सुख समृद्धि के वर्षक और सूर्य के समान तेजस्विन्! (ते) तेरा ( एतत् ) यह इतना बड़ा ( पुरीषम् ) ऐश्वर्य और राज्यपालन करने का सामर्थ्य है । तू (तेन ) उससे (वर्धस्व) बढ़ और (अध्यायस्व च ) खूब समृद्ध हो और प्रजा को भी पुष्ट कर । ( वयम् च ) हम भी (वर्धिषीमहि) बढ़े और (आ प्यासि - षीमहि) खूब लक्ष्मी से समृद्ध और तृप्त हों ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यज्ञः। अनुष्टुप् । गान्धारः ॥
विषय
वर्धन व आप्यायन
पदार्थ
१. हे (घर्म) = तेज ! (एतत्) = यह जो (ते) = तेरा (पुरीषम्) = [ पृ पालनपूरणयोः] पालनात्मक व पूरणात्मक कर्म है (तेन) = उससे (वर्द्धस्व) = हमें बढ़ा (च) = और (प्यायस्व) = सब अङ्गों का आप्यायन करनेवाले हो । शरीर में सोम [घर्म] सुरक्षित होता है तब वह शरीर में होनेवाली प्रत्येक कमी को दूर करता है। इसी प्रकार यह हमारे वर्धन का कारण बनता है और हमारा एक-एक अङ्ग आप्यायित रहता है। २. हे (घर्म) = सोम ! तेरे इस पालन पूरणात्मक कर्म से (वयम्) = हम (वर्द्धिषीमहि) = सब दृष्टिकोणों से वृद्धि को प्राप्त करें, (च) = और (प्यासिषीमहि) = औरों के भी आप्यायन का कारण बनें। जिस व्यक्ति के जीवन में कमी होती है वह कभी भी औरों की वृद्धि नहीं चाहता। 'वह औरों की वृद्धि का कारण बनेगा' इस बात का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता । 'स्वस्थ शरीर, मन व मस्तिष्क' वाला व्यक्ति औरों के भी हित की कामनावाला होता है और उनकी उन्नति में यथाशक्ति सहायक होता है। इस उत्तम मनोवृत्ति को अपने में लाने के लिए हम 'धर्म' की रक्षा करें। सुरक्षित घर्मवाला ही उदारवृत्ति को अपना पाता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम शरीर में सोम की रक्षा करें। इससे अपना वर्धन व आप्यायन करके हम औरों का वर्धन करनेवाले बनें।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात श्लेष व वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! सर्वत्र व्याप्त असलेल्या ईश्वराने सर्वांचे रक्षण किंवा पोषण केलेले आहे, तसेच आम्हीही सर्व जीवांना वाढवावे व बलवान करावे.
विषय
पुन्हा, तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (घर्म) अत्यंत पूजनीय आणि सर्वतः प्रकाशमान जगदीश्वर, अथवा विद्वान महोदय, (एतत्) हे जे (ते) आपले (पुरीषम्) व्यापकत्व अथवा पालनधर्म आहे (परमेश्वर व्यापक व पालक आहे आणि विद्वान ज्ञानदाता आहे) (तेन) त्या धर्माद्वारे आपण (वर्द्धस्व) वृद्धिंगत व्हा (आपले पालकत्व वाढावे) (च) आणि त्याद्वारे आपण इतरांना वाढवा. आपण स्वतःही (आ, प्यायस्व) पुष्ट व्हा (च) इतरांनाही पुष्ट करा. आपल्या कृपेने जसे आम्ही (वर्द्धिषीमहि) पूर्ण वृद्धी पावावी (च) तसे आम्ही इतरांचाही उत्कर्ष करावा. (च) याशिवाय जसे आम्ही (आ, प्यासिषीमहि) सर्वतः उत्कर्ष पावावा, तसे आम्ही सदा इतरांचीही उन्नती घडवावी. ॥२१॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात श्लेष आणि वाचकलुप्तोपमा हे दोन अलंकार आहेत. (पुरीषम्) या शब्दात श्लेष आहे, म्हणजे त्याचे दोन अर्थ निघतात) हे मनुष्यांनो, ज्याप्रमाणे सर्वव्यापी ईश्वर सर्वांचे रक्षण-पोषण केले आहे, तद्वत उन्नतीप्राप्त लोकांनी समाजातील (दुर्बळ दीन) जनांची उन्नती घडविली पाहिजे. ॥२१॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O most Adorable God, this is Thy nourishing power. Be great thereby and make others also great. Be strong, make others strong. Through your compassion, just as we advance, let us make others advance. Just as we grow great, let us make others great.
Meaning
Dharma, brilliant ruler and high-priest of this blazing yajna, this nation and this yajna is the measure of your power and potential. Grow by it and attain to your full stature. And may we too grow by it and rise to our full national honour and glory.
Translation
O sacrifice, here is your fuel; flourish and expand thereby. May we also flourish and expand. (1)
Notes
Gharma, O sacrifice. Also, O enlightened one. Also, O cauldron. Purīşam, fuel. Also, store of food. Apyāyasva, may you expand. Vardhasva, grow; flourish.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (ঘর্ম) অত্যন্ত পূজনীয় সব দিক দিয়া প্রকাশমান জগদীশ্বর বা বিদ্বান্ যিনি (এতৎ) এই (তে) আপনার (পুরীষম্) ব্যাপ্তি বা পালন, (তেন) তদ্দ্বারা আপনি (বর্দ্ধস্ব) বৃদ্ধি প্রাপ্ত হউন (চ) এবং অন্যকেও বৃদ্ধি করুন । আপনি স্বয়ং (আ, প্যায়স্ব) পুষ্ট হউন (চ) এবং অন্যকেও পুষ্ট করুন, আপনার কৃপা ও শিক্ষা বলে যেমন (বয়ম্) আমরা (বর্দ্ধিষীমহি) পূর্ণ বৃদ্ধি প্রাপ্ত হই (চ) এবং তদ্রূপ অন্যকে বৃদ্ধি করাই (চ) এবং যেমন আমরা (আ, প্যাসিষীমহি) সবদিক দিয়া বৃদ্ধি লাভ করি তদ্রূপ অন্যকে নিরন্তর পুষ্ট করি সেইরূপ তোমরাও কর ॥ ২১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে শ্লেষ ও বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে মনুষ্যগণ ! যেমন সর্বত্র অভিব্যাপ্ত ঈশ্বরের সকলের রক্ষা বা পুষ্টি করিয়াছেন সেইরূপ বৃদ্ধি প্রাপ্ত আমরা পুষ্টলোকদের উচিত যে, সকল জীবদেরকে বৃদ্ধি ও পুষ্ট করিব ॥ ২১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ঘর্মৈ॒তত্তে॒ পুরী॑ষং॒ তেন॒ বর্দ্ধ॑স্ব॒ চা চ॑ প্যায়স্ব ।
ব॒র্দ্ধি॒ষী॒মহি॑ চ॒ ব॒য়মা চ॑ প্যাসিষীমহি ॥ ২১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ঘর্মৈতদিত্যস্য দীর্ঘতমা ঋষিঃ । য়জ্ঞো দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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