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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 3
    ऋषिः - उषा,दुःस्वप्ननासन देवता - प्राजापत्या अनुष्टुप् छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
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    द्वि॑ष॒तेतत्परा॑ वह॒ शप॑ते॒ तत्परा॑ वह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्वि॒ष॒ते । तत् । परा॑ । व॒ह॒ । शप॑ते । तत् । परा॑ । व॒ह॒ ॥६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्विषतेतत्परा वह शपते तत्परा वह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्विषते । तत् । परा । वह । शपते । तत् । परा । वह ॥६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (4)

    विषय

    रोगनाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे उषा !] तू (तत्)वह [कष्ट] (द्विषते) [वैद्यों से] वैर करनेवाले के लिये (परा वह) पहुँचा दे, (तत्) वह (शपते) [उन्हें] कोसनेवाले के लिये (परा वह) पहुँचा दे ॥३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य वैद्यों केशासन पर नहीं चलते, वे शीघ्र दुःख भोगते हैं ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(द्विषते) वैद्येभ्यःकुप्रीतिकारिणे (तत्) कष्टम् (परा वह) दूरे गमय (शपते) शापं कुर्वते। अन्यत्पूर्ववत् ॥

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    विषय

    द्विषते-शपते

    पदार्थ

    १. हे उषः । दुष्ट स्वप्नों के कारणभूत जितने भी रोग, दुर्गति आदि तत्व हैं (तत्) = उनको द्विषते-द्वेष की वृत्तिवाले पुरुष के लिए, सबके साथ प्रीति न करनेवाले पुरुष के लिए, (परावह) सुदूर ले-जानेवाली हो। (तत्) = उन दुष्ट स्वप्नों के कारणभूत पदार्थों को (शपते) = आक्रोश करनेवाले क्रोधी स्वभाववाले पुरुष के लिए (परावह) सुदूर ले-जा।

    भावार्थ

    दुष्ट स्वप्नों के कारणभूत दुर्गति आदि तत्त्व द्वेष की वृत्तिवाले आक्रोशी पुरुष के लिए प्राप्त हों। न हम द्वेष करें, न शाप दें। इसप्रकार दु:ष्वप्नों से बचे रहें।

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    भाषार्थ

    हे प्राकृतिक तथा आध्यात्मिक उषा ! (तद्) उस दुःष्वप्न्य को, (द्विषते) द्वेषभावना सम्पन्न व्यक्ति के प्रति, (परा वह) प्राप्त करा, (तत्) उसे (शपते) शाप देने के स्वभाव वाले व्यक्ति के प्रति, (परावह) प्राप्त करा ।

    टिप्पणी

    [अभिप्राय यह कि जिन व्यक्तियों के चित्त द्वेष भावनाओं द्वारा कलुषित हैं, तथा जो क्रोध के कारण शाप देने के स्वभाव वाले हैं-दुष्वप्न्य उन पर निज प्रभाव प्रदर्शित करता है, सात्त्विक भावनाओं वालों पर नहीं]

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    विषय

    अन्तिम विजय, शान्ति, शत्रुशमन।

    भावार्थ

    (द्विषते) जो हम से द्वेष करे उसके लिये (तत्) उस दुस्वप्न को (परा वह) परे लेजा। और (शपते) जो हमें बुरा भला कहे उसके लिये (तत् परावह) उस दुस्वप्न को लेजा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यम ऋषिः। दुःस्वप्ननाशन उषा च देवता, १-४ प्राजापत्यानुष्टुभः, साम्नीपंक्ति, ६ निचृद् आर्ची बृहती, ७ द्विपदा साम्नी बृहती, ८ आसुरी जगती, ९ आसुरी, १० आर्ची उष्णिक, ११ त्रिपदा यवमध्या गायत्री वार्ष्यनुष्टुप्। एकादशर्चं षष्ठं पर्याय सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Atma-Aditya Devata

    Meaning

    Take the evil dream to him that hates, to him that execrates.

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    Translation

    May you carry it away to him, who hates; may you carry it away to him, who curses.

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    Translation

    Let that (evil dream) be made away to him who hates us (i.e. the evil dream and aversion etc) and let that be driven away to him who has a curse with us (i.e. our internal evil).

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    Translation

    Bear that away to him who hates, away to him who curses us.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(द्विषते) वैद्येभ्यःकुप्रीतिकारिणे (तत्) कष्टम् (परा वह) दूरे गमय (शपते) शापं कुर्वते। अन्यत्पूर्ववत् ॥

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