अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 4
ऋषिः - उषा,दुःस्वप्ननासन
देवता - प्राजापत्या अनुष्टुप्
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
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यं द्वि॒ष्मोयश्च॑ नो॒ द्वेष्टि॒ तस्मा॑ एनद्गमयामः ॥
स्वर सहित पद पाठयम् । द्वि॒ष्म: । यत् । च॒ । न॒: । द्वेष्टि॑ । तस्मै॑ । ए॒न॒त् । ग॒म॒या॒म॒: ॥६.४॥
स्वर रहित मन्त्र
यं द्विष्मोयश्च नो द्वेष्टि तस्मा एनद्गमयामः ॥
स्वर रहित पद पाठयम् । द्विष्म: । यत् । च । न: । द्वेष्टि । तस्मै । एनत् । गमयाम: ॥६.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रोगनाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(यम्) जिस [कुपथ्यकारी] से (द्विष्मः) हम [वैद्य लोग] वैर करते हैं, (च) और (यत्=यः) जो (नः) हम से (द्वेष्टि) बैर करता है, (तस्मै) उसको (एनत्) यह [कष्ट] (गमयामः) हमजताते हैं ॥४॥
भावार्थ
वैद्य लोग कह दें किकुपथ्यकारी मनुष्य अवश्य कष्ट भोगेगा ॥४॥
टिप्पणी
४−(यम्) कुपथ्यसेविनम् (द्विष्मः)वैरयामः, वयं वैद्याः (यत्) अव्ययम्। यः (च) (नः) अस्मान् वैद्यान् (द्वेष्टि)वैरयति (तस्मै) कुपथ्यसेविने (एनत्) कष्टम् (गमयामः) ज्ञापयामः ॥
विषय
सर्वाप्रियता
पदार्थ
१. (यम्) = जिस एक समाज-विरोधी पुरुष को हम सब (द्विष्मः) = प्रीति नहीं कर पाते (च) = और (यत्) = जो (नः द्वेष्टि) = हम सबके प्रति अप्रीतिवाला है (तस्मै) = उस सर्वाप्रिय पुरुष के लिए (एनन्) = इस दुष्ट स्वप्नों के कारणभूत 'ग्राही, निर्जति' आदि को (गमयामः) = प्राप्त कराते हैं । २. वस्तुतः समाज में जो सबका अप्रिय बन जाता है, वह सदा द्वेषाग्नि में जलता रहता है और परिणामतः भयंकर रोगों का शिकार हो जाता है। दुष्ट स्वप्नों को देखता हुआ यह अल्पायु हो जाता है।
भावार्थ
हम समाज में इसप्रकार शिष्टता व बुद्धिमत्ता से वर्ते कि सबके द्वेषपात्र न बन जाएँ। यह स्थिति नितान्त अवाञ्छनीय है। यह दुष्ट स्वप्नों व अल्पायुष्य का कारण बनती है।
भाषार्थ
(यत्) जो दुष्वप्न्य अर्थात् दुःष्वप्न का दृश्य (नः) हम प्रजाजनों के प्रति (द्वेष्टि) द्वेष करता है, हमें कष्ट देता है, (च) और इस कारण (यम् = यत्) जिस दुष्वप्न्य को (द्विष्मः) हम अप्रिय जानते हैं, (एनद्) इस दुष्वप्न्य को (तस्मै) उस के लिये अर्थात् द्वेषभावना सम्पन्न तथा शाप देने के स्वभाव वाले व्यक्ति के प्रति ही (गमयामः) हम प्रेषित करते हैं।
टिप्पणी
[द्विष्मः = द्विष् अप्रीतौ, प्रेम का अभाव। द्वेषभावना वालों और क्रोधादि से सम्पन्न व्यक्तियों को दुष्वप्न्य होते हैं, यह स्वाभाविक तथ्य हैं। "गमयामः" पद का प्रयोग आलङ्कारिक है]
विषय
अन्तिम विजय, शान्ति, शत्रुशमन।
भावार्थ
(द्विषते) जो हम से द्वेष करे उसके लिये (तत्) उस दुस्वप्न को (परा वह) परे लेजा। और (शपते) जो हमें बुरा भला कहे उसके लिये (तत् परावह) उस दुस्वप्न को लेजा।
टिप्पणी
(तृ०) ‘यश्च’ इति ह्विटनिकामितः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यम ऋषिः। दुःस्वप्ननाशन उषा च देवता, १-४ प्राजापत्यानुष्टुभः, साम्नीपंक्ति, ६ निचृद् आर्ची बृहती, ७ द्विपदा साम्नी बृहती, ८ आसुरी जगती, ९ आसुरी, १० आर्ची उष्णिक, ११ त्रिपदा यवमध्या गायत्री वार्ष्यनुष्टुप्। एकादशर्चं षष्ठं पर्याय सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Atma-Aditya Devata
Meaning
We send it to him that hates us, to him whom we hate to suffer (because of his curses).
Translation
Whom we hate, and who also hates us, to him we make it go.
Translation
We send that to the evil which abhor us and we send that to it which hates us (i. e; the ignorance).
Translation
To the intemperate whom we abhor, to him who hates us do we send it hence.
Footnote
We, us: The physicians. It: Fear.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(यम्) कुपथ्यसेविनम् (द्विष्मः)वैरयामः, वयं वैद्याः (यत्) अव्ययम्। यः (च) (नः) अस्मान् वैद्यान् (द्वेष्टि)वैरयति (तस्मै) कुपथ्यसेविने (एनत्) कष्टम् (गमयामः) ज्ञापयामः ॥
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