अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 4
उ॒रुं नो॑ लो॒कमनु॑ नेषि वि॒द्वान्त्स्वर्यज्ज्योति॒रभ॑यं स्व॒स्ति। उ॒ग्रा त॑ इन्द्र॒ स्थवि॑रस्य बा॒हू उप॑ क्षयेम शर॒णा बृ॒हन्ता॑ ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒रुम्। नः॒। लो॒कम्। अनु॑। ने॒षि॒। वि॒द्वान्। स्वः᳡। यत्। ज्योतिः॑। अभ॑यम्। स्व॒स्ति। उ॒ग्रा। ते॒। इ॒न्द्र॒। स्थवि॑रस्य। बा॒हू इति॑। उप॑। क्ष॒ये॒म॒। श॒र॒णा॒। बृ॒हन्ता॑ ॥१५.४॥
स्वर रहित मन्त्र
उरुं नो लोकमनु नेषि विद्वान्त्स्वर्यज्ज्योतिरभयं स्वस्ति। उग्रा त इन्द्र स्थविरस्य बाहू उप क्षयेम शरणा बृहन्ता ॥
स्वर रहित पद पाठउरुम्। नः। लोकम्। अनु। नेषि। विद्वान्। स्वः। यत्। ज्योतिः। अभयम्। स्वस्ति। उग्रा। ते। इन्द्र। स्थविरस्य। बाहू इति। उप। क्षयेम। शरणा। बृहन्ता ॥१५.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(विद्वान्) जानकार तू (नः) हमें (उरुम्) चौड़े (लोकम्) स्थान में (अनुनेषि) निरन्तर ले चलता है, (यत्) जो (स्वः) सुखप्रद, (ज्योतिः) प्रकाशमान, (अभयम्) निर्भय और (स्वस्ति) मङ्गलदाता [अच्छी सत्तावाला है]। (इन्द्र) हे इन्द्र ! [महाप्रतापी राजन्] (स्थविरस्य ते) तुझ दृढ़ स्वभाववाले के (उग्रा) प्रचण्ड, (शरणा) शरण देनेवाले, (बृहन्ता) विशाल (बाहू) दोनों भुजाओं का (उप) आश्रय लेकर (क्षयेम) हम रहें ॥४॥
भावार्थ
नीतिकुशल राजा प्रजाओं को उन्नत करके बल और पराक्रम से अपनी शरण में रक्खे ॥४॥
टिप्पणी
यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-६।४७।८॥४−(उरुम्) विस्तृतम् (नः) अस्मान् (लोकम्) स्थानम् (अनु) (निरन्तरम्) (नेषि) शपो लुक्। नयसि। प्रापयसि (विद्वान्) जानन् (स्वः) सुखप्रदम् (ज्योतिः) प्रकाशमानम् (अभयम्) निर्भयम् (स्वस्ति) मङ्गलप्रदम्। सुसत्तायुक्तम् (उग्रा) प्रचण्डौ (ते) तव (इन्द्र) हे महाप्रतापिन् राजन् (स्थविरस्य) स्थिरस्वभावस्य (बाहू) भुजौ (उप) उपेत्य। आश्रित्य (क्षयेम) निवसेम (शरणा) शरणौ (बृहन्ता) विशालौ ॥
विषय
'सुख, प्रकाश, निर्भयता व कल्याण' वाला लोक
पदार्थ
१.(विद्वान) = ज्ञानमय प्रभु! (न:) = हमें (उरुं लोकम् अनुनेषि) = क्रमश: विशाललोक में ले-चलते हैं। हमें उत्तम प्रेरणा देते हुए विशाललोक को प्राप्त कराते हैं। (यत्) = जो लोक (स्व:) = सुखवाला है, (ज्योति:) = प्रकाशमय है, (अभयम्) = भयरहित है तथा (स्वस्ति:) = उत्तम कल्याणमयी स्थितिवाला है। २. हे (इन्द्र) = शत्रुविद्रावक प्रभो! (स्थविरस्य) = सनातन पुरुष (ते) = तेरी (बाहु) = भुजाएँ (उग्रा) = अतिशयेन तेजस्विनी हैं। हम इन (बृहन्ता) = विशाल व हमारी वृद्धि की कारणभूत (शरणा) = हमारा आश्रय बननेवाली भुजाओं की छत्रछाया में ही (उपक्षयेम) = निवास करें।
भावार्थ
प्रभु हमें सतत प्रेरणा देते हुए 'विशाल सुख, प्रकाश, निर्भयता व कल्याण' वाले लोक में ले-चलते हैं। हम प्रभु की भुजाओं की छाया में ही निवास करें। ये भुआएँ ही हमारी सर्वमहान् शरण हैं।
भाषार्थ
(इन्द्र) हे सेनाधीश! (विद्वान्) विद्वान् आप (यत्) जो (नः) हम प्रजाजनों को (उरुम्) महान् (लोकम्) आलोक, अर्थात् ज्ञान-प्रकाश की (अनु) ओर (नेषि) ले चलते हैं, तथा (स्वः) स्वर्गीय (ज्योतिः) ज्योति (अभयम्) निर्भयता, और (स्वस्ति) कल्याणमार्ग की (अनुनेषि) ओर ले चलते हैं, इसलिये (स्थविरस्य) वयोवृद्ध तथा ज्ञानवृद्ध (ते) आप के (उग्रा) प्रभावशाली (बाहू) बाहुरूप (बृहन्ता शरणा) महान् आश्रयों में (उपक्षयेम) हम निवास करते रहें।
टिप्पणी
[लोकम्= आलोकम्= लोकृ दर्शने। स्वः ज्योतिः= सुखमयी ज्योति, परमेश्वरीय ज्योति। यह ज्योति निर्भयता देनेवाली तथा कल्याणमयी है।]
इंग्लिश (4)
Subject
Fearlessness
Meaning
Indra, lord of knowledge and wisdom, you lead us to that vast world of life where there is bliss, peace and heavenly light, fearlessness and all round well being. Lord inviolable and adorable, mighty are your arms of protection, a boundless haven of safety, where, we pray, we may abide secure at peace.
Translation
Knowing well, may you lead us to the spacious region, where there is heavenly light, freedom, fear and weal. May we take shelter, O resplendent Lord, mighty in battle, under your formidable arms, the great refuges. (Rg. VI.47.8. Variation)
Translation
O Almighty God, you the omnipresent, led us to the state where reigns light, security and happiness. O Lord (the powers of preservation and protection the Bahus) of mighty you and May we live happily taking them as our great shelters.
Translation
O Glorious God, Thou leadest us to the vast state of prosperity and well-being knowing full well that there is all bliss, light of knowledge freedom from fear and perfect peace. Strong and stout are the arms of Thee, Who is Steadfast and Firm. May we find ample refuge there.
Footnote
cf. Rig, 4.47.8. This sukta may also be applied to seek protection and help from the king, as has been interpreted by Pt. Khem Karan Das Trivedi and Pt. Jaidev Vidyalankar.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-६।४७।८॥४−(उरुम्) विस्तृतम् (नः) अस्मान् (लोकम्) स्थानम् (अनु) (निरन्तरम्) (नेषि) शपो लुक्। नयसि। प्रापयसि (विद्वान्) जानन् (स्वः) सुखप्रदम् (ज्योतिः) प्रकाशमानम् (अभयम्) निर्भयम् (स्वस्ति) मङ्गलप्रदम्। सुसत्तायुक्तम् (उग्रा) प्रचण्डौ (ते) तव (इन्द्र) हे महाप्रतापिन् राजन् (स्थविरस्य) स्थिरस्वभावस्य (बाहू) भुजौ (उप) उपेत्य। आश्रित्य (क्षयेम) निवसेम (शरणा) शरणौ (बृहन्ता) विशालौ ॥
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