अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 5
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - चतुष्पदा जगती
सूक्तम् - अभय सूक्त
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अभ॑यं नः करत्य॒न्तरि॑क्ष॒मभ॑यं॒ द्यावा॑पृथि॒वी उ॒भे इ॒मे। अभ॑यं प॒श्चादभ॑यं पु॒रस्ता॑दुत्त॒राद॑ध॒रादभ॑यं नो अस्तु ॥
स्वर सहित पद पाठअभ॑यम्। नः॒। क॒र॒ति॒। अ॒न्तरि॑क्षम्। अभ॑यम्। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। उ॒भे इति॑। इ॒मे इति॑। अभ॑यम्। प॒श्चात्। अभ॑यम्। पु॒रस्ता॑त्। उ॒त्ऽत॒रात्। अ॒ध॒रात्। अभ॑यम्। नः॒। अ॒स्तु॒ ॥१५.५॥
स्वर रहित मन्त्र
अभयं नः करत्यन्तरिक्षमभयं द्यावापृथिवी उभे इमे। अभयं पश्चादभयं पुरस्तादुत्तरादधरादभयं नो अस्तु ॥
स्वर रहित पद पाठअभयम्। नः। करति। अन्तरिक्षम्। अभयम्। द्यावापृथिवी इति। उभे इति। इमे इति। अभयम्। पश्चात्। अभयम्। पुरस्तात्। उत्ऽतरात्। अधरात्। अभयम्। नः। अस्तु ॥१५.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(नः) हमें (अन्तरिक्षम्) मध्यलोक (अभयम्) अभय (करति) करे, (इमे) यह (उभे) दोनों (द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी (अभयम्) अभय [करें]। (पश्चात्) पश्चिम में वा पीछे से (अभयम्) अभय हो, (पुरस्तात्) पूर्व में वा आगे से (अभयम्) अभय हो, (उत्तरात्) उत्तर में वा ऊपर से और (अधरात्) दक्षिण वा नीचे से (अभयम्) अभय (नः) हमारे लिये (अस्तु) हो ॥५॥
भावार्थ
जो राजा, विमान, अस्त्र-शस्त्र द्वारा आकाश से प्रजा की रक्षा करता है और सूर्य द्वारा हुई वृष्टि के प्रवाह का प्रबन्ध करके पृथिवी को उपजाऊ बनाता है, वह प्रजा को सुख पहुँचाकर बली होता है। आध्यात्मिक पक्ष में यह भावार्थ है कि हम सब पुरुषार्थ करके परमात्मा के अनुग्रह से सब कालों और सब स्थानों में निर्भय रहें ॥५॥
टिप्पणी
५−(अभयम्) भयराहित्यम् (नः) अस्मभ्यम् (करति) लेटि अडागमः। कुर्यात् (अन्तरिक्षम्) मध्यलोकः (अभयम्) कुर्यातामिति शेषः (द्यावापृथिवी) सूर्यपृथिव्यौ (उभे) (इमे) (अभयम्) (पश्चात्) पश्चिमस्यां दिशि पृष्ठदेशे वा (अभयम्) (पुरस्तात्) पूर्वस्यां दिशि, अग्रदेशे वा (अभयम्) (उत्तरात्) उत्तरस्यां दिशि, उपरिदेशे वा (अधरात्) दक्षिणस्यां दिशि, अधोदेशे वा (अभयम्) (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) ॥
पदार्थ
शब्दार्थ = ( अन्तरिक्षम् नः अभयम् करति ) = मध्य लोक हमारे लिए भय राहित्य करे ( इमे उभे द्यावापृथिवी अभयम् ) = सब प्राणियों के निवास स्थान, यह दोनों द्युलोक पृथिवी लोक भय राहित्य को करें । ( पश्चात् अभयम् ) = पश्चिम दिशा में हमको अभय हो । ( पुरस्तात् अभयम् ) = पूर्व दिशा में अभय ( उत्तरात् ) = उत्तर दिशा में ( अधरात् ) = उत्तर दिशा से उलटी दक्षिण दिशा में ( नः अभयम् अस्तु ) = हमें अभय हो ।
भावार्थ
भावार्थ = हे जगदीश्वर ! अन्तरिक्ष, द्युलोक, पृथिवी, पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण दिशा आदि यह सब आपकी कृपा से सदा भय-राहित्य को करनेवाले हों। हम सब निर्भय होकर आपकी प्रेम भक्ति में लग जाएँ ।
विषय
'त्रिलोकी व चारों दिशाओं से अभय
पदार्थ
१. (न:) = हमारे लिए (अन्तरिक्षम्) = अन्तरिक्ष (अभयं करति) = निर्भयता करता है। (इमे ये उभे) = दोनों द्यावापृथिवी-द्युलोक व पृथिवीलोक (अभयम्) = निर्भयता करते हैं। २. (न:) = हमारे लिए (पश्चात्) = पीछे से (अभयम्) = निर्भयता हो। (पुरस्तात्) = आगे से (अभयम्) = अभय हो तथा (उत्तरात्) = ऊपर से व (अधरात्) = नीचे से (अभयम् अस्तु)=- निभर्यता हो । पश्चिम व पूर्व तथा उत्तर व दक्षिण सर्व दिशाओं से हमें अभय हो।
भावार्थ
हमें त्रिलोकी व दिक्चतुष्टय सभी निर्भयता प्राप्त कराएँ।
भाषार्थ
हे परमेश्वरीय ज्योति! (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष (नः) हमें (अभयम्) निर्भय (करति) कर दे। (इमे) ये (उभे) दोनों (द्यावापृथिवी) द्युलोक और पृथिवीलोक (अभयम्) हमें निर्भय कर दें। (पश्चात्) पश्चिम से (नः) हमें (अभयम्) अभय (अस्तु) हो। (पुरस्तात्) पूर्व से (अभयम्) अभय हो। (उत्तरात्) उत्तर से, और (अधरात्) दक्षिण से (अभयम्) अभय हो।
इंग्लिश (4)
Subject
Fearlessness
Meaning
May the middle regions of the sky be free from fear for us, both these heaven and earth be free from fear, let there be fearlessness from behind, fearlessness from the front, and may there be fearlessness from above and from below for all of us.
Translation
May the midspace make us freé from fear; free from fear, may both these heaven and earth be (for us). May there be no fear to us from behind, from the front, from above as well as from below.
Translation
May the atmosphere give us peace and safety and may both these heaven and the earth be secure for us, may we be free from danger from west and east and may there be no fear for us from north and south.
Translation
May the atmosphere be free from fear for us. May both these firmament and the earth be free from danger for us. Let there be freedom from dl fear and danger for us, from behind, in front, from above and from below.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(अभयम्) भयराहित्यम् (नः) अस्मभ्यम् (करति) लेटि अडागमः। कुर्यात् (अन्तरिक्षम्) मध्यलोकः (अभयम्) कुर्यातामिति शेषः (द्यावापृथिवी) सूर्यपृथिव्यौ (उभे) (इमे) (अभयम्) (पश्चात्) पश्चिमस्यां दिशि पृष्ठदेशे वा (अभयम्) (पुरस्तात्) पूर्वस्यां दिशि, अग्रदेशे वा (अभयम्) (उत्तरात्) उत्तरस्यां दिशि, उपरिदेशे वा (अधरात्) दक्षिणस्यां दिशि, अधोदेशे वा (अभयम्) (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) ॥
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