अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 49/ मन्त्र 5
ऋषिः - गोपथः, भरद्वाजः
देवता - रात्रिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - रात्रि सूक्त
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शि॒वां रात्रि॑मनु॒सूर्यं॑ च हि॒मस्य॑ मा॒ता सु॒हवा॑ नो अस्तु। अ॒स्य स्तोम॑स्य सुभगे॒ नि बो॑ध॒ येन॑ त्वा॒ वन्दे॒ विश्वा॑सु दि॒क्षु ॥
स्वर सहित पद पाठशि॒वाम्। रात्रि॑म्। अ॒नु॒ऽसूर्य॑म्। च॒। हि॒मस्य॑। मा॒ता। सु॒हवा॑। नः॒। अ॒स्तु॒। अ॒स्य। स्तोम॑स्य। सु॒ऽभ॒गे॒। नि। बो॒ध॒। येन॑। त्वा॒। वन्दे॑। विश्वासु। दि॒क्षु ॥४९.५॥
स्वर रहित मन्त्र
शिवां रात्रिमनुसूर्यं च हिमस्य माता सुहवा नो अस्तु। अस्य स्तोमस्य सुभगे नि बोध येन त्वा वन्दे विश्वासु दिक्षु ॥
स्वर रहित पद पाठशिवाम्। रात्रिम्। अनुऽसूर्यम्। च। हिमस्य। माता। सुहवा। नः। अस्तु। अस्य। स्तोमस्य। सुऽभगे। नि। बोध। येन। त्वा। वन्दे। विश्वासु। दिक्षु ॥४९.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
रात्रि में रक्षा का उपदेश।
पदार्थ
(च) और (हिमस्य) हिम [शीतलता] की (माता) माता [आप] (नः) हमारे लिये (सुहवा) सहज में बुलाने योग्य (अस्तु) होवें, (सुभगे) हे बड़े ऐश्वर्यवाली ! तू (अस्य) इस (स्तोमस्य) स्तोत्र का (नि बोध) ज्ञान कर, (येन) जिस [स्तोत्र] से (त्वाम्) तुझ (शिवाम्) कल्याणी (रात्रिम्) रात्रि को (अनुसूर्य्यम्) सूर्य के साथ-साथ (विश्वासु) सब (दिक्षु) दिशाओं में (वन्दे) में वन्दना करता हूँ ॥५॥
भावार्थ
जो मनुष्य कठिनाई को पार करके अन्त में शान्ति और ऐश्वर्य को प्राप्त हों, वे उस कठिनाई को उन्नति का कारण समझकर उसका आदर करें ॥५॥
टिप्पणी
५−(शिवाम्) कल्याणीम् (रात्रिम्) (अनुसूर्यम्) सूर्यमनुसृत्य (च) समुच्चये (हिमस्य) शीतलत्वस्य (माता) निर्मात्री भवतीति शेषः (सुहवा) सुखेन ह्वातव्या (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) (अस्य) क्रियमाणस्य (स्तोमस्य) स्तोत्रस्य (सुभगे) हे बह्वैश्वर्यवति (नि) नितराम् (बोध) ज्ञानं कुरु (येन) स्तोमेन (त्वा) त्वाम् (वन्दे) आदरेण नमामि (विश्वासु) सर्वासु (दिक्षु) ॥
भाषार्थ
(च) और (अनुसूर्यम्) सूर्यास्त होने के पश्चात्, (शिवां रात्रिं वन्दे) सुखदायिनी रात्रि के सदृश वर्तमान कल्याणकारिणी जगन्माता का (वन्दे) मैं अभिवादन करता हूँ। (हिमस्य माता) रात्री के समान शीतल शान्ति की माता, (नः) हमारे लिए (सुहवा) सुगमतया आह्वानयोग्या (अस्तु) होवे। (सुभगे) हे उत्तमोत्तम ऐश्वर्यों, धर्म यश श्री ज्ञान और वैराग्य की स्वामिनि! (अस्य) इस (स्तोमस्य) मेरी स्तुति को (निबोध) पहचानिए। (येन) जिस स्तुति द्वारा (विश्वासु दिक्षु) सब दिशाओं में व्याप्त (त्वा) आपका (वन्दे) मैं अभिवादन करता हूँ।
टिप्पणी
[मन्त्र में रात्री को उपमान और जगन्माता को उपमेय मानकर वर्णन किया गया है। अनुसूर्यम्=सूर्यास्त के पीछे सायं सन्ध्या का वर्णन हुआ है। हिमस्य=उपासना में प्राप्त शान्ति को हिमसदृश कहा है। सुहवा=प्रशान्त रात्रीकाल में निश्चल-ध्यान द्वारा की गई उपासना में, परमेश्वर सम्बन्धी अनुभूति सुगम होती है। विश्वासु दिक्षु=सब दिशाओं में व्याप्त परमेश्वर का “मनसा परिक्रमा” की विधि द्वारा स्तवन करना चाहिए।]
विषय
रात्रि के प्रारम्भ व अन्त में प्रभु-वन्दन
पदार्थ
१. मैं (शिवां रात्रिम्) = इस कल्याणकारिणी रात्रि को (च) = और (अनु सूर्यम्) = रात्रि की समाप्ति पर उदित होनेवाले सूर्य को (वन्दे) = नमस्कार करता हूँ-इनका स्तवन करता है-इनके गुणों का स्मरण करता हूँ। यह (हिमस्य माता) = तुहिन [अवश्याय-ओस] का निर्माण करनेवाली रात्रि (न:) = हमारे लिए (सुहवा अस्तु) = सुगमता से पुकारने योग्य हो। २. हे (सुभगे) = उत्तम शक्तिरूप ऐश्वर्य को प्राप्त करानेवाली रात्रि! तू हमारे (अस्य स्तोमस्य) = इस स्तोम को निबोध जाननेवाली हो, (येन) = जिस स्तोम से (विश्वास दिक्ष) = सब दिशाओं में (व्यास त्वा) = तुमको वन्दे मैं नमस्कार करता हैं।
भावार्थ
हम रात्रि के गुणों का स्तवन करते हुए और उचित व्यवहार करते हुए रात्रि से पूर्ण लाभ उठानेवाले हों। रात्रि के प्रारम्भ में हम प्रभु-वन्दन करके सोएँ। रात्रि समाप्ति पर सूर्योदय के समय पुनः प्रभु-वन्दन करनेवाले हों।
इंग्लिश (4)
Subject
Ratri
Meaning
O mother of peace and cool, be kind and gracious to us. O Spirit of abundance and splendour, know and acknowledge this song of adoration with which, like the sun, I celebrate you, blissful night, pervading in all quarters of space.
Translation
I pay my homage to the benign nighr ane the “ome - ter ; sunrise Mother i! snow, may she be casy of irvevate, for., us. O brunteous one, may yuu nouce this jr; e song vk _ which I greet vou in^all the quarters
Comments / Notes
Text is not clear in the book. If someone has a clearer copy, please edit this translation
Translation
Let this night which is the mother of forest be praiseworthy ‘for us. Let this beautiful night be the source of making me aware of the song of praise by which I praise the auspicious night together with sun in all the regions.
Translation
O fortunate one, knowest thou full well this praise, with which I bow to thee, the blissful like the effulgent God in all directions. Letest thou, the mother of coolness of snow, be easy to be called in for help.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(शिवाम्) कल्याणीम् (रात्रिम्) (अनुसूर्यम्) सूर्यमनुसृत्य (च) समुच्चये (हिमस्य) शीतलत्वस्य (माता) निर्मात्री भवतीति शेषः (सुहवा) सुखेन ह्वातव्या (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) (अस्य) क्रियमाणस्य (स्तोमस्य) स्तोत्रस्य (सुभगे) हे बह्वैश्वर्यवति (नि) नितराम् (बोध) ज्ञानं कुरु (येन) स्तोमेन (त्वा) त्वाम् (वन्दे) आदरेण नमामि (विश्वासु) सर्वासु (दिक्षु) ॥
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