अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 53/ मन्त्र 6
का॒लो भू॒तिम॑सृजत का॒ले तप॑ति॒ सूर्यः॑। का॒ले ह॒ विश्वा॑ भू॒तानि॑ का॒ले चक्षु॒र्वि प॑श्यति ॥
स्वर सहित पद पाठका॒लः। भू॒तिम्। अ॒सृ॒ज॒त॒। का॒ले। त॒प॒ति॒। सूर्यः॑। का॒ले। ह॒। विश्वा॑। भू॒तानि॑। का॒ले । चक्षुः॑। वि। प॒श्य॒ति॒ ॥५३.६॥
स्वर रहित मन्त्र
कालो भूतिमसृजत काले तपति सूर्यः। काले ह विश्वा भूतानि काले चक्षुर्वि पश्यति ॥
स्वर रहित पद पाठकालः। भूतिम्। असृजत। काले। तपति। सूर्यः। काले। ह। विश्वा। भूतानि। काले । चक्षुः। वि। पश्यति ॥५३.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
काल की महिमा का उपदेश।
पदार्थ
(कालः) काल [समय] ने (भूतिम्) ऐश्वर्य को (असृजत) उत्पन्न किया है, (काले) काल में (सूर्यः) सूर्य (तपति) तपता है। (काले) काल में (ह) ही (विश्वा) सब (भूतानि) सत्ताएँ हैं, (काले) काल में (चक्षुः) आँख (वि) विविध प्रकार (पश्यति) देखती है ॥६॥
भावार्थ
काल ही पाकर सब ऐश्वर्य, प्रकाश और पदार्थ उत्पन्न होते हैं ॥६॥
टिप्पणी
६−(कालः) (भूतिम्) ऐश्वर्यम्। सत्ताम् (असृजत) अजनयत् (काले) (तपति) प्रकाशते (सूर्यः) प्रेरक आदित्यः (काले) (ह) (विश्वा) (भूतानि) सत्तायुक्तानि जगन्ति (काले) (चक्षुः) नेत्रम् (वि) विविधम् (पश्यति) अवलोकयति ॥
भाषार्थ
(कालः) काल ने (भूतिम्) जगत् की सत्ता, समृद्धि, धन, और योगजन्य विभूतियों की (असृजत) सृष्टि की है। (काले) ग्रीष्मकाल में (सूर्यः तपति) सूर्य तपता है। (काले ह) काल में ही (विश्वा भूतानि) सब भूतभौतिक जगत् स्थित है। (काले) काल में (चक्षुः) आँख (वि पश्यति) विविध जगत् को देखती है। [स्वप्नकाल में नहीं देखती, जागरित काल में देखती है।]
विषय
'सब विभूतियों के स्त्रोत' प्रभु
पदार्थ
१. (काल:) = वे काल नामक प्रभु ही (भूतिम्) = इस संसार की विविध विभूतियों को-ऐश्वयों को (असृजत) = उत्पन्न करते हैं। (काले) = उस काल नामक प्रभु के आधार में ही (सूर्यः तपति) = सूर्य दीप्त हो रहा है [तस्य भासा सर्वमिदं विभाति] २. (काले ह) = निश्चय से उस काल में-प्रभु के आधार में ही (विश्वा भूतानि) = सब भूत स्थित हैं-रह रहे हैं। काले-उस प्रभु के आधार में ही (चक्षुः विपश्यति) = आँख आदि इन्द्रियाँ दर्शनादि कर्मों को करती है।
भावार्थ
सम्पूर्ण विभूति को जन्म देनेवाले वे प्रभु ही हैं। प्रभु की दीप्ति से ही सूर्य आदि दीप्त हो रहे हैं। सब भूतों के आधार वे प्रभु हैं। प्रभु ही आँख आदि में दर्शनादि शक्तियों को रखते हैं।
इंग्लिश (4)
Subject
Kala
Meaning
Kala created the plenty and prosperity of existence. In Kala does the sun shine and blaze. In Kala do all existing forms subsist, and the eye sees only in Kala.
Translation
Time has generated the earth; the sun burns in Time. In Time, indeed, are located all the beings in Time the vision discerns.
Translation
This Kala creates whatever does become and the sun sends out its scorching heat in the Kala, All the creatures live in Kala and eye discerns its objects in the Kala.
Translation
The Kala produced the very existence of the creation and the wealth thereof. The sun shines in the Kala. Verily in the Kala alone all the creatures find their existence. The organs like the eyes have their powers of perception due to Him.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(कालः) (भूतिम्) ऐश्वर्यम्। सत्ताम् (असृजत) अजनयत् (काले) (तपति) प्रकाशते (सूर्यः) प्रेरक आदित्यः (काले) (ह) (विश्वा) (भूतानि) सत्तायुक्तानि जगन्ति (काले) (चक्षुः) नेत्रम् (वि) विविधम् (पश्यति) अवलोकयति ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal