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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 53/ मन्त्र 7
    ऋषिः - भृगुः देवता - कालः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - काल सूक्त
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    का॒ले मनः॑ का॒ले प्रा॒णः का॒ले नाम॑ स॒माहि॑तम्। का॒लेन॒ सर्वा॑ नन्द॒न्त्याग॑तेन प्र॒जा इ॒माः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    का॒ले। मनः॑। का॒ले। प्रा॒णः। का॒ले। नाम॑। स॒म्ऽआहि॑तम्। का॒लेन॑। सर्वाः॑। न॒न्द॒न्ति॒। आऽग॑तेन। प्र॒ऽजाः। इ॒माः ॥५३.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    काले मनः काले प्राणः काले नाम समाहितम्। कालेन सर्वा नन्दन्त्यागतेन प्रजा इमाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    काले। मनः। काले। प्राणः। काले। नाम। सम्ऽआहितम्। कालेन। सर्वाः। नन्दन्ति। आऽगतेन। प्रऽजाः। इमाः ॥५३.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 53; मन्त्र » 7
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    हिन्दी (3)

    विषय

    काल की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (काले) काल में (मनः) मन, (काले) काल में (प्राणः) प्राण, (काले) काल में (नाम) नाम (समाहितम्) संग्रह किया गया है। (आगतेन) आये हुए (कालेन) काल के साथ (इमाः) यह (सर्वाः) सब (प्रजाः) प्रजाएँ (नन्दन्ति) आनन्द पाती हैं ॥७॥

    भावार्थ

    काल के उत्तम उपयोग से मन और प्राण अर्थात् सब इन्द्रियों का स्वास्थ्य और यश बढ़ता है, तब ही सब प्राणी सुख पाते हैं ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(काले) (मनः) अन्तःकरणम् (काले) (प्राणः) श्वासः (काले) (नाम) नामधेयम्। यशः (समाहितम्) संगृहीतं वर्तते (कालेन) (सर्वाः) समस्ताः (नन्दति) संतुष्यन्ति (आगतेन) प्राप्तेन (प्रजाः) विविधसृष्टि-पदार्थाः (इमाः) दृश्यमानाः ॥

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    भाषार्थ

    (काले) काल में (मनः) मननशक्ति, (काले) काल में (प्राणः) प्राणशक्ति, और (काले) काल में (नाम) नाम (समाहितम्) रखा जाता है। (आगतेन कालेन) आए काल द्वारा (इमाः) ये (सर्वाः) सब (प्रजाः) प्रजाएँ (नन्दन्ति) प्रसन्न तथा समृद्ध होती हैं।

    टिप्पणी

    [मनः= सृष्टि के सर्जन के निमित्त परमेश्वरनिष्ठ मनन। प्राणः=प्राणवायु की उत्पत्ति। नाम=वैदिक शब्दावलि, अर्थात् वेदों१ का आविर्भाव। अथवा—शिशु की उत्पत्ति के निश्चित काल में ही उसमें मननशक्ति, गर्भावस्था में प्राणशक्ति, तथा निश्चित काल में ही उसका नामकरण होता है। नन्दन्ति=आए शुभ अवसरों पर प्रजाजन प्रसन्न तथा समृद्ध होते हैं।] [१. ऋग्वेद में वेदों को "नामधेयम" कहा है। नामदेय और नाम— एकार्थक हैं। यथा— बृहस्पते प्रथमं अग्रं यत्प्रैरत नामधेयं दधानाः" (१०.७१.१)]

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    विषय

    'मन-प्राण-नाम-समृद्धि'

    पदार्थ

    १. उस काल नामक प्रभु में (मनः) = सब प्राणियों के मन (समाहितम्) = आश्रित हैं। काले 'काल' प्रभु में ही (प्राण:) = पञ्चवृत्तिक प्राण समाहित हैं। (काले) = उस काल प्रभु में ही (नाम) = सब संज्ञाएँ (समाहितम्) = समाहित हैं। सब वस्तुओं के रूपों का निर्माण करके उनके नामों को भी प्रभु ही व्यवहत करते हैं। २. (आगतेन) = आये हुए-'वसन्त' आदि के रूप में प्राप्त हुए-हुए काल से ही (इमाः सर्वाः प्रजा:) = ये सब प्रजाएँ (नन्दन्ति) = अपने-अपने कार्य की सिद्धि के द्वारा समृद्ध होती हैं-आनन्द का अनुभव करती है।

    भावार्थ

    उस काल नामक प्रभु से हमें 'मन-प्राण-नाम तथा सब समृद्धियाँ' प्राप्त होती है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kala

    Meaning

    The mind is concentred in Time. Prana is controlled in Time. The name with substance is contained in Time. And all these living beings rejoice with the passage of time.

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    Translation

    In Time mind, in Time life, in Timé name is well set. By Time, when it comes, all these creations rejoice.

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    Translation

    The mind is held in Kala, the vital breath is held in Kala and names and forms are held in kala. AIL these subjects feel happy and delighted with the Kala accordant.

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    Translation

    In the very Kala, are well placed, the mind, the vital breath and the name. All these subjects enjoy themselves at His very approach.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(काले) (मनः) अन्तःकरणम् (काले) (प्राणः) श्वासः (काले) (नाम) नामधेयम्। यशः (समाहितम्) संगृहीतं वर्तते (कालेन) (सर्वाः) समस्ताः (नन्दति) संतुष्यन्ति (आगतेन) प्राप्तेन (प्रजाः) विविधसृष्टि-पदार्थाः (इमाः) दृश्यमानाः ॥

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