अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 58/ मन्त्र 1
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - यज्ञः, मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - यज्ञ सूक्त
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घृ॒तस्य॑ जू॒तिः सम॑ना सदे॑वा संवत्स॒रं ह॒विषा॑ व॒र्धय॑न्ती। श्रोत्रं॒ चक्षुः॑ प्रा॒णोऽच्छि॑न्नो नो अ॒स्त्वच्छि॑न्ना व॒यमायु॑षो॒ वर्च॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठघृ॒तस्य॑। जू॒तिः। सम॑ना। सऽदे॑वा। स॒म्ऽव॒त्स॒रम्। ह॒विषा॑। व॒र्धय॑न्ती। श्रोत्र॑म्। चक्षुः॑। प्रा॒णः। अच्छि॑न्नः। न॒। अ॒स्तु॒। अच्छि॑न्नाः। व॒यम्। आयु॑षः। वर्च॑सः ॥५८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
घृतस्य जूतिः समना सदेवा संवत्सरं हविषा वर्धयन्ती। श्रोत्रं चक्षुः प्राणोऽच्छिन्नो नो अस्त्वच्छिन्ना वयमायुषो वर्चसः ॥
स्वर रहित पद पाठघृतस्य। जूतिः। समना। सऽदेवा। सम्ऽवत्सरम्। हविषा। वर्धयन्ती। श्रोत्रम्। चक्षुः। प्राणः। अच्छिन्नः। न। अस्तु। अच्छिन्नाः। वयम्। आयुषः। वर्चसः ॥५८.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
आत्मा की उन्नति का उपदेश।
पदार्थ
(घृतस्य) प्रकाश की (समना) मनोहर, (सदेवा) इन्द्रियों के साथ रहनेवाली (जूतिः) वेग गति (हविषा) दान से (संवत्सरम्) वर्ष [जीवनकाल] को (वर्धयन्ती) बढ़ाती हुई [रहे]। (नः) हमारा (श्रोत्रम्) कान, (चक्षुः) आँख और (प्राणः) प्राण (अच्छिन्नः) निर्हानि (अस्तु) होवे, (वयम्) हम (आयुषः) जीवन से और (वर्चसः) तेज से (अच्छिन्नाः) निर्हानि [होवें] ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य को चाहिये कि विद्या आदि से शीघ्र प्रतापी होकर अपने आत्मा और शरीर की उन्नति करे ॥१॥
टिप्पणी
१−(घृतस्य) प्रकाशस्य (जूतिः) वेगगतिः (समना) मन ज्ञाने-अच्, टाप्। मनोहरा (सदेवा) इन्द्रियैः सह वर्तमाना (संवत्सरम्) वर्षं जीवनकालम् (हविषा) दानेन (वर्धयन्ती) समर्धयन्ती (श्रोत्रम्) श्रवणम् (चक्षुः) नेत्रम् (प्राणः) शरीरधारकः पञ्चवृत्तिको वायुः (अच्छिन्नः) अभिन्नः। निर्हानिः (नः) अस्माकम् (अस्तु) (अच्छिन्नाः) निर्हानयः (वयम्) (आयुषः) जीवनात् (वर्चसः) प्रतापात् ॥
भाषार्थ
(समना) मननपूर्वक, तथा (सदेवाः) यज्ञवेत्ता विद्वानों के सहयोगपूर्वक (संवत्सरम्) वर्षभर सम्पादित (हविषा) हविः समेत (घृतस्य) घृत [की आहुतियों] का (जूतिः) वेग (संवत्सरम्) वर्षभर (वर्धयन्ती) वृद्धि करता रहता है। इस से (नः) हमारा (श्रोत्रम्) श्रवणसामर्थ्य (चक्षुः) चक्षुःसामर्थ्य (प्राणः) प्राण (अच्छिन्नः अस्तु) निरन्तर बना रहता है; और (वयम्) हम (आयुषः) आयु से (वर्चसः) तेज से (अच्छिन्नाः) वियुक्त नहीं होते।
टिप्पणी
[बड़े-बड़े यज्ञों में वर्षभर दी गई आहुतियाँ, वेग से ऊंचे अन्तरिक्ष में पहुंच कर, चारों ओर फैल कर, सब के लिए सुखदायक होतीं, और दीर्घ आयु करती हैं।]
विषय
'घृतस्य जूतिः समना सदेवा'
पदार्थ
१. (घृतस्य) = [ दीप्ती] उस दीस सर्वोत्कृष्ट तेज परमात्मा का (जूतिः) = ज्ञान [मतिर्मनीषा जूतिः स्मृति: संकल्पः क्रतुरसुः कामो वश इति सर्वाण्येवैतानि प्रज्ञानस्य नामधेयानि भवन्ति ऐ० आ० २.६.१] (समना) = [सम् अना] हमें सम्यक् प्राणित करनेवाला है। (सदेवा:) = यह ज्ञान दिव्यगुणों से युक्त है-हमें दिव्यगुणसम्पन्न बनानेवाला है। यह ज्ञान (संवत्सरम्) = हमारे जीवनकाल को (हविषा) = दानपूर्वक अदन से व यज्ञों से (वर्धयन्ती) = बढ़ाता है। प्रभु का ज्ञान हमें यज्ञमय जीवनवाला बनाता है। २. इस ज्ञान के द्वारा (न:) = हमारा (प्रोत्रं चक्षुः प्राण:) = श्रोत्र, चक्षु व प्राण (अच्छिन्नः अस्तु) = अच्छिन्न हो। (वयम्) = हम (आयुष:) = आयु से (वर्चसः) = वर्चस् से (अच्छिन्न:) = अच्छिन्न हों, अर्थात् दीर्घजीवनवाले व वर्चस्वी बनें।
भावार्थ
प्रभु का ज्ञान हमें उत्तम प्राणशक्तिबाला व दिव्यगुणोंवाला बनाता है। यह हमें यज्ञशील बनाता हुआ दीर्घजीवी करता है। इससे हमें इन्द्रियों की शक्ति, प्राणशक्ति, दीर्घजीवन व वर्चस् प्राप्त हो।
इंग्लिश (4)
Subject
Yajna
Meaning
Let the flow and flame of ghrta with heartfelt love, divine inspiration and havi augment and beautify the yearly session of yajna. May our ear, eyes, prana be whole and unhurt. Let us be whole and unhurt by health and full age with honour and excellence.
Subject
To Various, Gods for Blessings
Translation
May there be always (sadaiva) a constant (samana) flow of clarified butter, augmenting the year with sacrificial oblations. May our audition, vision and vital breath unimpaired; may we remain unsevered from long life.
Translation
Let the malignancy which is not our own thing, which troubles the organs and which is trouble-some bind this bad dream round the neck like gold jewel. Let the bad dream flee away at nine cubits distance from us and let us make all the bad dream return to malignancy which maligns us.
Translation
Let the continuous flow of clarified butter, along with the learned or the natural forces, of the same accord, enhance the utility of the year, with the oblations all the year round. Let our hearing, sight and vital breath be uninjured. Let us be not separated from our life and vigor.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(घृतस्य) प्रकाशस्य (जूतिः) वेगगतिः (समना) मन ज्ञाने-अच्, टाप्। मनोहरा (सदेवा) इन्द्रियैः सह वर्तमाना (संवत्सरम्) वर्षं जीवनकालम् (हविषा) दानेन (वर्धयन्ती) समर्धयन्ती (श्रोत्रम्) श्रवणम् (चक्षुः) नेत्रम् (प्राणः) शरीरधारकः पञ्चवृत्तिको वायुः (अच्छिन्नः) अभिन्नः। निर्हानिः (नः) अस्माकम् (अस्तु) (अच्छिन्नाः) निर्हानयः (वयम्) (आयुषः) जीवनात् (वर्चसः) प्रतापात् ॥
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