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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 58 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 58/ मन्त्र 4
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - यज्ञः, मन्त्रोक्ताः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - यज्ञ सूक्त
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    व्र॒जं कृ॑णुध्वं॒ स हि वो॑ नृ॒पाणो॒ वर्मा॑ सीव्यध्वं बहु॒ला पृ॒थूनि॑। पुरः॑ कृणुध्व॒माय॑सी॒रधृ॑ष्टा॒ मा वः॑ सुस्रोच्चम॒सो दृं॑हता॒ तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व्र॒जम्। कृ॒णु॒ध्व॒म्। सः। हि। वः॒। नृ॒ऽपानः॑। वर्म॑। सी॒व्य॒ध्व॒म्। ब॒हु॒ला। पृ॒थूनि॑। पुरः॑। कृ॒णु॒ध्व॒म्। आय॑सीः। अधृ॑ष्टाः। मा। वः॒। सु॒स्रो॒त्। च॒म॒सः। दृं॒ह॒त॒। तम् ॥५८.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    व्रजं कृणुध्वं स हि वो नृपाणो वर्मा सीव्यध्वं बहुला पृथूनि। पुरः कृणुध्वमायसीरधृष्टा मा वः सुस्रोच्चमसो दृंहता तम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    व्रजम्। कृणुध्वम्। सः। हि। वः। नृऽपानः। वर्म। सीव्यध्वम्। बहुला। पृथूनि। पुरः। कृणुध्वम्। आयसीः। अधृष्टाः। मा। वः। सुस्रोत्। चमसः। दृंहत। तम् ॥५८.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 58; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    आत्मा की उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (व्रजम्) घेर [गोस्थान] को (कृणुध्वम्) तुम बनाओ, (हि) क्योंकि (सः) वह [स्थान] (वः) तुम्हारे लिये (नृपाणः) नेताओं की रक्षा करनेवाला है, (बहुला) बहुत से (पृथूनि) चौड़े-चौड़े (वर्म) कवचों को (सीव्यध्वम्) सींओ। (पुरः) दुर्गों को (आयसीः) लोहे का (अधृष्टाः) अटूट (कृणुध्वम्) बनाओ, (वः) तुम्हारा (चमसः) चमचा [भोजनपात्र] (मा सुस्रोत्) न टपक जावे, (तम्) उसको (दृंहत) दृढ़ करो ॥४॥

    भावार्थ

    जैसे गोशाला में गौ आदि पशु सुरक्षित रहते हैं, और जैसे राजा सैनिकों की रक्षा के लिये दृढ़ दुर्ग बनाकर अस्त्र-शस्त्र आदि से भरपूर करता है, वैसे ही मनुष्य अपने रक्षासाधनों का संग्रह करता रहे ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(व्रजम्) गोस्थानम् (कृणुध्वम्) कुरुत (सः) व्रजः (हि) यस्मात् कारणात् (वः) युष्मभ्यम् (नृपाणः) नृणां नेतॄणां रक्षकः (वर्म) वर्माणि। कवचानि (सीव्यध्वम्) षिवु तन्तुसन्ताने। संबध्नीत (बहुला) बहुलानि। बहूनि (पृथूनि) विस्तृतानि (पुरः) नगरान्। दुर्गाणि (कृणुध्वम्) (आयसीः) अयस्मयाः। अस्त्रशस्त्रयुक्ताः (अधृष्टाः) अधृष्यमाणाः। अविनाशनीयाः (वः) युष्माकम् (मा सुस्रोत्) स्रवतेर्लङि शपः श्लुः। मा स्रवतु। मा विनश्यतु (चमसः) भोजनपात्रम् (दृंहत्) दृढीकुरुत (तम्) चमसम् ॥ अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० २।३५।५ ॥

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    भाषार्थ

    (व्रजम्) गोशाला (कृणुध्वम्) बनाओ, (सः) वह गोशाला (हि) निश्चय से (वः नृपाणः) तुम मनुष्यों के दुग्धपान तथा रक्षा का साधन है। (बहुला=बहुलानि) बहुत तथा (पृथूनि) शरीर-विस्तारी (वर्मा=वर्माणि) कवचों या वस्त्रों को (सीव्यध्वम्) निर्मित करो, या सीओ। (आयसीः) लोहसमान मजबूत, अथवा लोहे के अस्त्रशस्त्रों से भरपूर, (अधृष्टाः) शत्रुओं द्वारा अपराभवनीय (पुरः) नगरों तथा दुर्गों का (कृणुध्वम्) निर्माण करो। (वः) तुम्हारे (चमसः) खानपान का पात्र (मा सुस्रोत्) न टपके, इसलिए (तम्) उसे (दृंहता) सुदृढ़ बनाओ।

    टिप्पणी

    [यज्ञों द्वारा स्वस्थ दीर्घायु वर्चस्वी तथा अन्नादि से सुरक्षित हो जाने पर, यत्न करो कि शत्रु तुम पर आक्रमण न कर सके। अतः शस्त्रास्त्रों कवचों, सुदृढ़ नगरों तथा दुर्गों का निर्माण भी करो।]

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    विषय

    व्रजं कृणुध्वम्, वर्म सीव्यध्वम्

    पदार्थ

    १. हे इन्द्रियो! (व्रजं कृणुध्वम्) = मानसयज्ञ [प्रभु-ध्यान] के अधिष्ठानभूत इस शरीर में संघात को करो-तुम यहाँ ही संघीभूत होकर स्थित होओ। (सः हि) = वह देह ही (वः नृपाण:) = अपने अपने विषय में प्रवर्तमान [नेतृभूत] तुम्हारा रक्षक है। (बहुला) = बहुत तथा (पृथूनि) = विस्तृत वर्मा सीव्यध्वम्-कवचों को सीओ। ज्ञानरूप कवचों को सीकर तुम अपना रक्षण करो। यह ज्ञानकवच ही वासनाओं के आक्रमण से सुरक्षित करता है। २. पुरः-इन शरीर-नगरियों को आयसी: लोहे की बनी हुइयों को अधृष्टाः कृणुध्वम्-रोगरूप शत्रुओं से अधर्षणीय बना डालो। व:-तुम्हारा यह चमस:-शरीररूप पात्र मा सुत्रोत्-सवित न हो। इसमें वीर्यरूप जल स्थिर होकर रहे। दहता तम्-उस शरीररूप पात्र को दृढ़ बनाओ।

    भावार्थ

    हम मानस यज्ञ में प्रवृत्त हों, जिससे इन्द्रियों इधर-उधर न भटककर अन्दर ही स्थित हों। हम ज्ञानकवच को धारण करके वासनारूप शत्रुओं का शिकार न हो पाएँ। हमारे शरीर मानो लोहे के बने हों। शक्ति शरीर में ही सुरक्षित रहे।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Yajna

    Meaning

    Establish and develop dairy farms, that is the way for your growth and national health. Design and manufacture many broad and thick armours of defence. Build strong unbreakable forts of steel. And see that your ladle of the yajna of social order, i.e. economy of the nation, does not leak anywhere. Keep it strong and increase its capacity.

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    Translation

    Construct the cow-stall, for that is the drinking place of your leaders (of your men) fabricate armour, manifold and ample. Make cities of iron Strong and impregnable: let not your ladle leak: make it strong and unbreakable.

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    Translation

    The heaven and earth are the two gatherers of vigorous power, so let us gathering up vigor walk freely on the earth. The cows returning to home stand beside the master who has corn and fame let us gathering corn and fame freely walk on this earth.

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    Translation

    Make big cow-sheds. These would truly be a great source of the nourishment of the people. Prepare many, vast armours for protection of the body. Erect invulnerable cities of iron for safety against the enemies’ attack. Let not the water-tanks and the granaries of yours be leaky. Make them strong enough to keep all your supplies intact.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(व्रजम्) गोस्थानम् (कृणुध्वम्) कुरुत (सः) व्रजः (हि) यस्मात् कारणात् (वः) युष्मभ्यम् (नृपाणः) नृणां नेतॄणां रक्षकः (वर्म) वर्माणि। कवचानि (सीव्यध्वम्) षिवु तन्तुसन्ताने। संबध्नीत (बहुला) बहुलानि। बहूनि (पृथूनि) विस्तृतानि (पुरः) नगरान्। दुर्गाणि (कृणुध्वम्) (आयसीः) अयस्मयाः। अस्त्रशस्त्रयुक्ताः (अधृष्टाः) अधृष्यमाणाः। अविनाशनीयाः (वः) युष्माकम् (मा सुस्रोत्) स्रवतेर्लङि शपः श्लुः। मा स्रवतु। मा विनश्यतु (चमसः) भोजनपात्रम् (दृंहत्) दृढीकुरुत (तम्) चमसम् ॥ अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० २।३५।५ ॥

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