अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 13
ऋषिः - नारायणः
देवता - पुरुषः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - जगद्बीजपुरुष सूक्त
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तस्मा॑द्य॒ज्ञात्स॑र्व॒हुत॒ ऋचः॒ सामा॑नि जज्ञिरे। छन्दो॑ ह जज्ञिरे॒ तस्मा॒द्यजु॒स्तस्मा॑दजायत ॥
स्वर सहित पद पाठतस्मा॑त्। य॒ज्ञात्। स॒र्व॒ऽहुतः॑। ऋचः॑। सामा॑नि। ज॒ज्ञि॒रे॒। छन्दः॑। ह॒। ज॒ज्ञि॒रे॒। तस्मा॑त्। यजुः॑। तस्मा॑त्। अ॒जा॒य॒त॒ ॥६.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे। छन्दो ह जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ॥
स्वर रहित पद पाठतस्मात्। यज्ञात्। सर्वऽहुतः। ऋचः। सामानि। जज्ञिरे। छन्दः। ह। जज्ञिरे। तस्मात्। यजुः। तस्मात्। अजायत ॥६.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सृष्टिविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(तस्मात्) उस (यज्ञात्) पूजनीय (सर्वहुतः) सब के दाता [अन्न आदि देनेहारे] [पुरुष परमात्मा] से (ऋचः) ऋग्वेद [पदार्थों की गुणप्रकाशक विद्या] के मन्त्र और (सामानि) सामवेद [मोक्षविद्या] के मन्त्र (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए। (तस्मात्) उससे (ह) ही (छन्दः) अथर्ववेद [आनन्ददायक विद्या] के मन्त्र (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए, और (तस्मात्) उस से (यजुः) यजुर्वेद [सत्कर्मों का ज्ञान] (अजायत) उत्पन्न हुआ ॥१३॥
भावार्थ
जिस परमात्मा ने संसार के हित के लिये ऋग्वेदादि चार वेद प्रकाशित किये हैं, सब मनुष्य उन वेदों के अनुकूल चलकर उसकी भक्ति करें ॥१३॥
टिप्पणी
यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।९०।९ और यजुर्वेद ३१।७ ॥ १३−(तस्मात्) पूर्वोक्तात् पुरुषात् (यज्ञात्) पूजनीयात् (सर्वहुतः) हु दानादानादनेषु-क्विप्। सर्वेभ्योऽन्नादिदातुः सकाशात् (ऋचः) ऋग्वेदस्य पदार्थगुणप्रकाशिकाया विद्याया मन्त्राः (सामानि) सामवेदस्य मोक्षज्ञानस्य मन्त्राः (जज्ञिरे) उत्पन्नाः (छन्दः) जसः सुः। छन्दांसि। अथर्ववेदस्य आह्लादकज्ञानस्य मन्त्राः (ह) निश्चयेन (जज्ञिरे) (तस्मात्) (यजुः) यजुर्वेदः। सत्कर्मणां ज्ञानम् (अजायत) ॥
विषय
वेदों का प्रादुर्भाव
पदार्थ
१. (तस्मात्) = उस (यज्ञात्) = पूजनीय (सर्वहुत:) = सब आवश्यक पदार्थों को देनेवाले प्रभु से (ऋच:) = ऋचाएँ व (सामानि) = साममन्त्र जज्ञिरे-प्रादुर्भूत हुए। (तस्मात्) = उसी से (ह) = निश्चय से (छन्दः) = रोगों व युद्धों से हमारा छादन [बचाव] करनेवाले, अथर्वमन्त्र उत्पन्न हुए। (तस्मात) = उसी से (यजुः) = यजुर्मन्त्रों का (अजायत) = प्रादुर्भाव हुआ।
भावार्थ
प्रभु ने ऋग्वेद द्वारा हमें प्रकृति के सब पदार्थों के गुणधर्मों का ज्ञान दिया। यजुर्मन्त्रों द्वारा हमारे पारस्परिक कर्तव्यों का उपदेश दिया। साममन्त्रों द्वारा हमें प्रभु की उपासना के योग्य बनाया और अथर्वमन्त्रों द्वारा रोगों व युद्धों से सुरक्षा का मार्ग दर्शाया।
भाषार्थ
(तस्मात्) उस (यज्ञात्) अत्यन्त पूजनीय, (सर्वहुतः) जिस के लिए सब लोग समस्त पदार्थों को देते वा समर्पण करते, उस परमात्मा से (ऋचः) ऋग्वेद (सामानि) सामवेद (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए। (तस्मात्) उस परमात्मा से (ह) निश्चय से (छन्दः) अथर्ववेद के मन्त्र (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए। और (तस्मात्) उससे (यजुः) यजुर्वेद (अजायत) उत्पन्न हुआ है।
टिप्पणी
[सर्वहुतः=सर्व+हु (दाने)+क्विप्, तुक्।]
इंग्लिश (4)
Subject
Purusha, the Cosmic Seed
Meaning
From that yajna of cosmic dimensions initiated by Purusha and from His will and voice were born the Rks and the Samans. From that were born the Chhandas, i.e., the Atharva-veda and the Yajus.
Translation
From that cosmic sacrifice, in which everything has been offered as oblations, the Rks, and the Samans are born. The Chandas of the Atharva, and the Yajuh is also born from that sacrifice. (Yv. XXXI.7. Vari.)
Translation
From that all-worshipped Yajna-purusha came into existence the Riks and Saman verses. The Atharva Veda was born from Him and from Him emerges out the Yajurveda.
Translation
From that Adorable God, whom all people pay their homage or Who consumes all (at the time of Pralaya) were revealed the Rigveda, the Samaveda. Chhandas i.e., Atharvaveda appeared from Him. Yajurveda came to light from Him.
Footnote
cf. Rig, 10.90.9, Yajur, 31.7. The verse is quite clear about the revealing of all the four Vedas at the time of the creation of the universe. It is a pity that the Western scholars and their coup-followers, eastern scholars ignore such forceful evidence provided internally by the Vedas themselves and bases their various theories about the age of the Vedas on mere conjectures and prjudicial whims.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।९०।९ और यजुर्वेद ३१।७ ॥ १३−(तस्मात्) पूर्वोक्तात् पुरुषात् (यज्ञात्) पूजनीयात् (सर्वहुतः) हु दानादानादनेषु-क्विप्। सर्वेभ्योऽन्नादिदातुः सकाशात् (ऋचः) ऋग्वेदस्य पदार्थगुणप्रकाशिकाया विद्याया मन्त्राः (सामानि) सामवेदस्य मोक्षज्ञानस्य मन्त्राः (जज्ञिरे) उत्पन्नाः (छन्दः) जसः सुः। छन्दांसि। अथर्ववेदस्य आह्लादकज्ञानस्य मन्त्राः (ह) निश्चयेन (जज्ञिरे) (तस्मात्) (यजुः) यजुर्वेदः। सत्कर्मणां ज्ञानम् (अजायत) ॥
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