Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 6 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 2
    ऋषिः - नारायणः देवता - पुरुषः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - जगद्बीजपुरुष सूक्त
    0

    त्रि॒भिः प॒द्भिर्द्याम॑रोह॒त्पाद॑स्ये॒हाभ॑व॒त्पुनः॑। तथा॒ व्यक्राम॒द्विष्व॑ङ्ङशनानश॒ने अनु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रि॒ऽभिः। प॒त्ऽभिः। द्याम्। अ॒रो॒ह॒त्। पात। अ॒स्य॒। इ॒ह। अ॒भ॒व॒त्। पुनः॑। तथा॑। वि। अ॒क्रा॒म॒त्। विष्व॑ङ्। अ॒श॒ना॒न॒श॒ने इत्य॑शनऽअ॒न॒श॒ने। अनु॑ ॥६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रिभिः पद्भिर्द्यामरोहत्पादस्येहाभवत्पुनः। तथा व्यक्रामद्विष्वङ्ङशनानशने अनु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रिऽभिः। पत्ऽभिः। द्याम्। अरोहत्। पात। अस्य। इह। अभवत्। पुनः। तथा। वि। अक्रामत्। विष्वङ्। अशनानशने इत्यशनऽअनशने। अनु ॥६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सृष्टिविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    वह [पुरुष परमात्मा] (त्रिभिः) तीन (पद्भिः) पादों [अंशों] से (द्याम्) [अपने] प्रकाशस्वरूप में (अरोहत्) प्रकट हुआ, (तस्य) इस [पुरुष] का (पात्) एक पाद [अंश] (इह) यहाँ [जगत् में] (पुनः) बार-बार [सृष्टि और प्रलय के चक्र से] (अभवत्) वर्तमान हुआ। (तथा) फिर (विष्वङ्) सर्वव्यापक वह (अशनानशने अनु) खानेवाले चेतन और न खानेवाले जड़ जगत् में (वि) विविध प्रकार से (अक्रामत्) व्याप्त हुआ ॥२॥

    भावार्थ

    वह परमेश्वर संसार की अपेक्षा तीन चौथाई अर्थात् बहुत ही बड़ा है और इतना बड़ा ब्रह्माण्ड उसके सामर्थ्य का एक चौथायी अर्थात् बहुत थोड़ा अंश है। वह सब चराचर जगत् को उत्पन्न कर के सब में व्याप्त हो रहा है ॥२॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।९०।४, यजुर्वेद ३१।४ और सामवेद पू० ६।१३।४ ॥ २−त्रिभिः (पद्भिः) पादैः। अंशैः (द्याम्) स्वप्रकाशस्वरूपम् (अरोहत्) प्रकटीकृतवान् (पात्) पद गतौ स्थैर्य्ये च−णिचि क्विप्। पादः। चतुर्थांशः (इह) संसारे (अभवत्) (पुनः) वारम्वारम्। सृष्टिप्रलयरूपचक्रेण (तथा) अनन्तरम् (वि) विविधम् (अक्रामत्) व्याप्नोत् (विष्वङ्) सर्वतोऽञ्चनः। विश्वव्यापनः (अशनानशने) कृत्यल्युटो बहुलम्। पा० ३।३।११३। अश भोजने-कर्तरि ल्युट्। भक्षणाभक्षणशीले। चेतनाचेतने द्विप्रकारे जगती (अनु) प्रति ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रभु के एक देश में

    पदार्थ

    १. वह सहस्रबाहू पुरुष त्रिभिः पद्भिः तीन पादों से [अंशों से] (द्याम् अरोहत्) = अपने प्रकाशमय स्वरूप में प्रकट हुआ है। प्रभु के तीन अंशों में जगत् की उत्पत्ति, स्थिति व प्रलय का चक्र नहीं है। पुनः फिर (अस्य) = इस प्रभु का (पात्) = एक अंश ही (इह अभवत्) = इस ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो रहा है। यह सारा ब्रह्माण्ड का खेल प्रभु के एक देश में ही होता है। २. (तथा) = उस प्रकार (विष्वङ्) = [विसु अञ्च] सर्वत्र गति व व्याप्तिवाला वह प्रभु (अशनानशने) = खानेवाले चेतन जगत् में व न खानेवाले जड़ जगत् में (अनु) = अनुकूलता से (वि अक्रामत्) = विविध गतियाँ कर जगत् में व न खानेवाले जड़ जगत् में अनु-अनुकूलता से वि अक्रामत्-विविध गतियाँ कर रहा है। सर्वत्र गति देनेवाला वह प्रभु ही है।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु के एक देश में इस सारे जड़-चेतनरूप जगत् का खेल चल रहा है। प्रभु के तीन अंश तो अपने प्रकाशमय रूप में प्रकट हो रहे हैं प्रभु की अनन्तता में यह ब्रह्माण्ड अत्यन्त तुच्छ से परिमाणवाला है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (त्रिभिः पद्भिः) तीन पादों की दृष्टि से परमेश्वर (द्याम्) निज दिव्य प्रकाश में (अरोहत्) प्रादुर्भूत है। और (अस्य) इस परमेश्वर का (पाद्) एक पाद (इह) इस ब्रह्माण्ड में (पुनः) बार-बार (अभवत्) प्रकट होता रहता है। (तथा) और (विष्वङ्) सर्वत्र विद्यमान परमेश्वर (अशनानशने अनु) भोजन करने वाले चेतन, तथा न भोजन करने वाले जड़ जगत् पर (अनु) निरन्तर (व्यक्रामत्) अपना विक्रम किये हुए हैं।

    टिप्पणी

    [अरोहत्= रुह् प्रादुर्भावे। द्याम्= द्यौः द्योततेः दीप्तिकर्मणः।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Purusha, the Cosmic Seed

    Meaning

    By three steps of evolutionary existence the Purusha ascends to the heavens (over earth and the firmament), while its presence manifests again and again in the world of existence (with each creation), pervading all the material and biological world.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    With His three quarters, He ascends to the heave; and one of His quarters still remains here. Thus He pervades all that eats as well as that does not eat. (Yv. XXXI.4. Vari.)

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The Divinity with His three steps, the powers ascended the state of enlightenment and happiness. His one step, the power works out in this universe the creation and dissolution etc. of the objects again and again. In that way He is pervading whole of the universe and the creatures who eat (animate) and who do not eat (inanimate).

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    God, the Emancipator rises far above in the well-lit state of emancipation beyond this creation, by three quarters. By one quarter he creates this universe again and again. Thus pervading the animate and inanimate world He stays there.

    Footnote

    The ‘Akhand Brahma’ has no parts. The verse describes His immensity in a figurative language. In the case of the soul, the ‘sthul-sharira’ is one part, whereas sukhsham sharira is three-fourth of it in importance.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।९०।४, यजुर्वेद ३१।४ और सामवेद पू० ६।१३।४ ॥ २−त्रिभिः (पद्भिः) पादैः। अंशैः (द्याम्) स्वप्रकाशस्वरूपम् (अरोहत्) प्रकटीकृतवान् (पात्) पद गतौ स्थैर्य्ये च−णिचि क्विप्। पादः। चतुर्थांशः (इह) संसारे (अभवत्) (पुनः) वारम्वारम्। सृष्टिप्रलयरूपचक्रेण (तथा) अनन्तरम् (वि) विविधम् (अक्रामत्) व्याप्नोत् (विष्वङ्) सर्वतोऽञ्चनः। विश्वव्यापनः (अशनानशने) कृत्यल्युटो बहुलम्। पा० ३।३।११३। अश भोजने-कर्तरि ल्युट्। भक्षणाभक्षणशीले। चेतनाचेतने द्विप्रकारे जगती (अनु) प्रति ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top