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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 18/ मन्त्र 5
    ऋषिः - चातनः देवता - अग्निः छन्दः - द्विपदा साम्नीबृहती सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
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    स॑दान्वा॒क्षय॑णमसि सदान्वा॒चात॑नं मे दाः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒दा॒न्वा॒ऽक्षय॑णम् । अ॒सि॒ । स॒दा॒न्वा॒ऽचात॑नम् । मे॒ । दा॒: । स्वाहा॑ ॥१८.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सदान्वाक्षयणमसि सदान्वाचातनं मे दाः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सदान्वाऽक्षयणम् । असि । सदान्वाऽचातनम् । मे । दा: । स्वाहा ॥१८.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 18; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं से रक्षा करनी चाहिये–इसका उपदेश।

    पदार्थ

    [हे ईश्वर !] तू (सदान्वाक्षयणम्) सदा चिल्लानेवाली वा दानवों के साथ रहनेवाली (निर्धनता वा दुर्भिक्षता) की नाशशक्ति (असि) है, (मे) मुझे (सदान्वाचातनम्) सदा चिल्लानेवाली वा दानवों के साथ रहनेवाली [निर्धनता वा दुर्भिक्षता] के मिटाने का बल (दाः) दे, (स्वाहा) यही सुन्दर आशीर्वाद हो ॥५॥

    भावार्थ

    निर्धनता और दुर्भिक्षता [अकाल] आदि विपत्तियों के मारे सब प्राणी महादुःखी होकर आर्तध्वनि करते और चोर आदि उन्हें सताते हैं। परमेश्वर की दयालुता और पूर्णता पर ध्यान करके मनुष्य प्रयत्नपूर्वक प्रभूत धन और अन्न का संचय करके आनन्द से रहें ॥५॥

    टिप्पणी

    ५–सदान्वाक्षयणम्। अ० २।१४।१। सदानोनुवानां सर्वदा शब्दकारिकानां वा दानवै राक्षसैः सह वर्त्तमानानां दरिद्रतादिविपत्तीनां नाशनम् ॥

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    विषय

    'हित-मित-मधुर'

    पदार्थ

    १. ('सदा नोनूयमानाः सदान्वा')-हर समय चीखते-चिल्लाते रहने व अपशब्द बोलने की वृत्ति 'सदान्वा' है। यह वृत्ति 'वचो गुप्ति' से ठीक विपरीत है। यह सब उन्नति का ध्वंस कर देती हैं। हे प्रभो! आप (सदान्वाक्षयणम् असि) = आक्रोशकारिणी वृत्ति का ध्वंस करनेवाले हैं, (मे) = मेरे लिए (सदान्वाचातनम्) = इस आक्रोशकारिणी वृत्ति को नष्ट करने की शक्ति (दा:) = दीजिए। २. मैं सदा संयत वाक् बनूं। कभी कोई व्यर्थ का शब्द व अपशब्द मेरे मुख से न निकले। (स्वाहा) = कितनी सुन्दर है यह प्रार्थना ! हे प्रभो! आपकी कृपा से मेरी वाणी सुगुस हो और यह 'हित-मित-मधुर' भाषण करनेवाली हो।

    भावार्थ

    मैं अपशब्द न बोलूँ। मेरी वाणी सूनुता हो।

    विशेष

    सूक्त का भाव यही है कि मैं उन्नति के विरोधी तत्त्वों को नष्ट करके आगे बढ़नेवाला बनूं। ये ही भाव अगले सूक्त में कुछ विस्तार से हैं। उनका ऋषि 'अथर्वां' है न डाँवाडोल होनेवाला [अ-थर्व] अथवा आत्मनिरीक्षण करनेवाला [अथ अर्वा] । यह प्रार्थना करता है

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    भाषार्थ

    (सदान्वाक्षयणम् असि) सदा कष्ट की आवाजों का उच्चारण कराने वाली स्त्री जातिक रोग कीटाणुओं का क्षय करनेवाला तू है, (सदान्वाचातनम्) सदान्वाओं के विनाश का सामर्थ्य (मे दा:) मुझे दे, (स्वाहा) सु आह ।

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    विषय

    शत्रुओं के नाशक बल की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे परमात्मन् ! (सदान्वाक्षयणम् असि) आप निरन्तर रुलाने और कष्ट देने वाली आपत्तियों के विनाशक हो, अतः (मे) मुझे भी (सदान्वाचातनं) ऐसी परपीड़क आपत्तियों के नाश करने का सामर्थ्य (दाः) दीजिये । (स्वाहा) यह मेरी प्रार्थना स्वीकार करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सम्पत्कामश्चातन ऋषिः। अग्निर्देवता। साम्नी बृहती। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prayer for Self-Protection

    Meaning

    You are the power that destroys the mean and the negatives. Give me the power to destroy meanness, want and negativity. This is the voice of truth in faith with surrender.

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    Translation

    You are the destroyer of perpetual wailers. Grant me that I may drive away the perpetual wailers. Svaha.

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    Translation

    O Agni, the Self-effulgent God; Thou art the power of destruction for the demnable calamities; kindly give me the power of destroying demnable calamities. What a beautiful utterance.

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    Translation

    O God, Thou, art the Averter of misfortunes; grant me the strength to avert misfortunes! This is my humble request.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५–सदान्वाक्षयणम्। अ० २।१४।१। सदानोनुवानां सर्वदा शब्दकारिकानां वा दानवै राक्षसैः सह वर्त्तमानानां दरिद्रतादिविपत्तीनां नाशनम् ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (সদান্বাক্ষয়ণম্ অসি) সর্বদা দুঃখদায়ক শব্দের উচ্চারণে প্রবৃত্তকারী স্ত্রী জাতিক রোগ জীবাণুর ক্ষয়কারী তুমি হও, (সদান্বা চাতনম্) সদান্বাসমূহের বিনাশের সামর্থ্য (মে দাঃ) আমাকে প্রদান করো, (স্বাহা) সু আহ ।

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    मन्त्र विषय

    শত্রুভ্যো রক্ষা কর্তব্যেত্যুপদিশ্যতে

    भाषार्थ

    [হে ঈশ্বর !] তুমি (সদান্বাক্ষয়ণম্) সদা উল্লাসকারী বা দানবদের সাথে অবস্থানকারী (নির্ধনতা বা দুর্ভিক্ষতা) এর বিনাশকারী শক্তি (অসি) হও, (মে) আমাকে (সদান্বাচাতনম্) সদা উল্লাসকারী বা দানবদের সাথে অবস্থানকারী [নির্ধনতা বা দুর্ভিক্ষতা] বিনাশের/নিবারণের শক্তি (দাঃ) প্রদান করো, (স্বাহা) এই সুন্দর আশীর্বাদ হোক ॥৫॥

    भावार्थ

    নির্ধনতা ও দুর্ভিক্ষতা [অকাল] আদি বিপত্তির জন্য সব প্রাণী মহাদুঃখী হয়ে আর্তধ্বনি করে এবং চোর আদি তাঁদের উদ্বিগ্ন করে। পরমেশ্বরের দয়ালুতা ও পূর্ণতার প্রতি বিচার করে মনুষ্য চেষ্টাপূর্বক প্রভূত ধন ও অন্নের সঞ্চয় করে আনন্দে থাকুক ॥৫॥

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