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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 105 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 105/ मन्त्र 4
    ऋषिः - पुरुन्हमा देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१०५
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    यो राजा॑ चर्षणी॒नां याता॒ रथे॑भि॒रध्रि॑गुः। विश्वा॑सां तरु॒ता पृत॑नानां॒ ज्येष्ठो॒ यो वृ॑त्र॒हा गृ॒णे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । राजा॑ । च॒र्ष॒णी॒नाम् । याता॑ । रथे॑भि: । अध्रि॑ऽगु: ॥ विश्वा॑साम् । त॒रु॒ता । पृत॑नानाम् । ज्येष्ठ॑: । य: । वृ॒त्र॒ऽहा । गृ॒णे ॥१०५.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो राजा चर्षणीनां याता रथेभिरध्रिगुः। विश्वासां तरुता पृतनानां ज्येष्ठो यो वृत्रहा गृणे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । राजा । चर्षणीनाम् । याता । रथेभि: । अध्रिऽगु: ॥ विश्वासाम् । तरुता । पृतनानाम् । ज्येष्ठ: । य: । वृत्रऽहा । गृणे ॥१०५.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 105; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो [परमेश्वर] (चर्षणीनाम्) मनुष्यों का (राजा) राजा (रथेभिः) रथी [के समान रमणीय लोकों] के साथ (अध्रिगुः) बे-रोक (याता) चलनेवाला, और (यः) जो (विश्वासाम्) सब (पृतनानाम्) शत्रु सेनाओं का (तरुता) हरानेवाला, (ज्येष्ठः) अतिश्रेष्ठ, (वृत्रहा) अन्धकारनाशक है, [उसकी] (गृणे) मैं स्तुति करता हूँ ॥४॥

    भावार्थ

    जो परमात्मा सब मनुष्य आदि प्राणियों और सूर्य आदि लोकों का स्वामी है, हम उसके गुणों को ग्रहण करके सब कष्टों से बचें ॥४॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ४। आचुके हैं-अथ० २०।९२।१६, १७ ॥ ४, −व्याख्यातौ-अथ० २०।९२।१६, १७ ॥

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    विषय

    "ज्येष्ठ वृत्रहा' प्रभु

    पदार्थ

    १. मैं उस प्रभु का (गणे) = स्तवन करता हूँ (य:) = जोकि (चर्षणीनां राजा) = श्रमशील मनुष्यों के जीवन को दीप्त बनानेवाला है। (रथेभिः याता) = शरीररूप रथों से प्राप्त होनेवाला है, अर्थात् शरीररूप उत्तम रथों को हमारे लिए देते हैं। (अधिगः) = अधूतगमनवाला है-प्रभु को अपने कार्यों में कोई विहत नहीं कर पाता। २. ये प्रभु ही (विश्वासाम्) = सब (पृतनानाम्) = शत्रुसैन्यों के तरुता तैर जानेवाले है। सब शत्रुओं से वे प्रभु हमें पार करनेवाले हैं। वे प्रभु (ज्येष्ठः) = प्रशस्यतम हैं (यः) = जो (वृत्रहा) = ज्ञान की आवरणभूत वासनाओं को विनष्ट करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    प्रभु ही हमें उत्तम शरीर-रथ प्राप्त कराते हैं और हमारे जीवनों को दीस करते हैं।

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    भाषार्थ

    (यः) जो परमेश्वर (चर्षणीनाम्) सब मनुष्यों का (राजा) राजा है, (अध्रिगुः) जो अप्रतिबद्ध गतिवाला, (रथेभिः) उपासकों के शरीररथों के प्रेरक बनकर मानो उन रथों द्वारा (याता) गतिमान् होता है, उपासकों के व्यवहारों को सिद्ध करता है। जो (विश्वासाम्) सब (पृतनानाम्) काम, क्रोध, लोभ, मोहादि की सेनाओं का (तरुता) विनाश करता है, (ज्येष्ठः) जो सब से बड़ा तथा सर्वश्रेष्ठ है, (यः) जो (वृत्रहा) बुद्धि पर आवरण डाल देनेवाले पापों का हनन करता है, उस परमेश्वर का (गृणे) मैं वर्णन करता हूँ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    I adore Indra, lord supreme, who rules the people, and who is the irresistible and universal mover by waves of cosmic energy, saviour of all humanity, supreme warrior and winner of cosmic battles of the elemental forces and who destroys the evil, darkness and poverty of the world.

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    Translation

    I praise the Almighty God who is the paramount lord of people, who is uninterrupted moving force with His wounderful words, who is pre-emient and quell of all the calamities and slayer of vritra, the cloud.

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    Translation

    I praise the Almighty God who is the Paramount lord of people, who is uninterrupted moving force with His wonderful words, who is pre-eminent and quell of all the calamities and slayer of vritra, the cloud.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ४। आचुके हैं-अथ० २०।९२।१६, १७ ॥ ४, −व्याख्यातौ-अथ० २०।९२।१६, १७ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যঃ) যে/যিনি [পরমেশ্বর] (চর্ষণীনাম্) মনুষ্যগণের (রাজা) রাজা (রথেভিঃ) রথাদির [রথসদৃশ রমণীয় লোক সমূহের] সহিত (অধ্রিগুঃ) অপ্রতিরোধ্য গতিতে (যাতা) গমনশীল এবং (যঃ) যিনি (বিশ্বাসাম্) সকল (পৃতনানাম্) শত্রু সেনা (তরুতা) বিনাশকারী, (জ্যেষ্ঠঃ) অতিশ্রেষ্ঠ (বৃত্রহা) অন্ধকারনাশক, সেই পরমেশ্বরের (গৃণে) আমি স্তুতি করি/করছি ॥৪॥

    भावार्थ

    যে পরমাত্মা সকল মনুষ্য আদি প্রাণী এবং সূর্যাদি লোকের স্বামী, আমরা সেই পরমেশ্বরের গুণ গ্রহণ করে সকল প্রকার কষ্ট থেকে মুক্ত হই ॥৪॥

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    भाषार्थ

    (যঃ) যে পরমেশ্বর (চর্ষণীনাম্) সকল মনুষ্যদের (রাজা) রাজা, (অধ্রিগুঃ) যিনি অপ্রতিবদ্ধ গতিসম্পন্ন, (রথেভিঃ) উপাসকদের শরীররথের প্রেরক হয়ে মানো সেই রথ দ্বারা (যাতা) গতিমান্ হন, উপাসকদের ব্যবহার সিদ্ধ করেন। যিনি (বিশ্বাসাম্) সকল (পৃতনানাম্) কাম, ক্রোধ, লোভ, মোহাদির সেনাদের (তরুতা) বিনাশ করেন, (জ্যেষ্ঠঃ) যিনি সবথেকে বড় তথা সর্বশ্রেষ্ঠ, (যঃ) যিনি (বৃত্রহা) বুদ্ধির ওপর আবরণকারী পাপের হনন করেন, সেই পরমেশ্বরের (গৃণে) আমি বর্ণনা করি।

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