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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 106 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 106/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-१०६
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    तव॒ द्यौरि॑न्द्र॒ पौंस्यं॑ पृथि॒वी व॑र्धति॒ श्रवः॑। त्वामापः॒ पर्व॑तासश्च हिन्विरे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तव॑ । द्यौ: । इ॒न्द्र॒ । पौंस्य॑म् । पृ॒थि॒वी । व॒र्ध॒ति॒ । श्रव॑: ॥ त्वाम् । आप॑: । पर्व॑तास: । च॒ । हि॒न्वि॒रे॒ ॥१०६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तव द्यौरिन्द्र पौंस्यं पृथिवी वर्धति श्रवः। त्वामापः पर्वतासश्च हिन्विरे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तव । द्यौ: । इन्द्र । पौंस्यम् । पृथिवी । वर्धति । श्रव: ॥ त्वाम् । आप: । पर्वतास: । च । हिन्विरे ॥१०६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 106; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (तव) तेरे (पौंस्यम्) पुरुषार्थ और (श्रवः) यश को (द्यौः) आकाश और (पृथिवी) पृथिवी (वर्धति) बढ़ाती हैं। (त्वाम्) तुझको (आपः) जलों ने (च) और (पर्वतासः) पहाड़ों ने (हिन्विरे) प्रसन्न किया है ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर को उसके बड़े-बड़े कर्मों से जानकर पुरुषार्थ करें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(तव) (द्यौः) आकाशः (इन्द्र) हे परमेश्वर (पौंस्यम्) पौरुषम् (पृथिवी) (वर्धति) वर्धयति (श्रवः) यशः (त्वाम्) (आपः) जलानि (पर्वतास) शैलाः (च) (हिन्विरे) प्रीणयन्ति स्म ॥

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    विषय

    'द्युलोक, पृथिवी, समुद्र व पर्वतों द्वारा प्रभु-स्तवन

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो! (द्यौः) = यह द्युलोक (तव) = आपके (पौंस्यम्) = बल को (वर्धति) = बढ़ाता है। यह द्युलोक आपकी शक्ति की सूचना देता है। (पृथिवी) = यह पृथिवी भी (श्रव:) = आपके यश को बढ़ाती है। यह आपकी महिमा का स्तवन करती है। २. (आप:) = ये जल (पर्वतासः च) = और -पर्वत (त्वाम् हिन्विरे) = आपको ही प्राप्त करते हैं। इन समुद्रस्थ अनन्त-से जलों को व गगनचुम्बी पर्वतशिखरों को देखकर आपकी महिमा का ही स्मरण होता है।

    भावार्थ

    यह 'आकाश, पृथिवी, समुद्र, जल व पर्वत' सभी प्रभु की महिमा का प्रकाश - कर रहे हैं।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (द्यौः) द्युलोक (तव) आपके (पौंस्यम्) बल की महिमा (वर्धति) बढ़ाता है, और (पृथिवी श्रवः वर्धति) पृथिवी आपकी कीर्त्ति बढ़ाती है। (आपः) सामुद्रिक जल, वर्षा के तथा नदी-नालों के जल, (च पर्वतासः) और पर्वत (त्वाम्) आपको (हिन्विरे) प्रसन्न कर रहे हैं।

    टिप्पणी

    [हिन्विरे=हिवि प्रीणनार्थः।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    The light of heaven glorifies your blazing power, the earth augments your honour and fame, and the rolling floods of water and mighty mountains of majesty do awesome homage to you.

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    Translation

    O Almighty God, the heaven and earth magnify your perseverance and fame. The waters and mountains please you.

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    Translation

    O Almighty God, the heaven and earth magnify your perseverance and fame. The waters and mountains please you.

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    Translation

    The big sun, the earth, the fire, the water and the high power of thewind all revel after Thee.

    Footnote

    ‘Vishnu’- the Sun, क्षय- the earth, the above of all creatures, मित्रः-fire, having synthetic power, वरुण- water, having selective quality.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(तव) (द्यौः) आकाशः (इन्द्र) हे परमेश्वर (पौंस्यम्) पौरुषम् (पृथिवी) (वर्धति) वर्धयति (श्रवः) यशः (त्वाम्) (आपः) जलानि (पर्वतास) शैलाः (च) (हिन्विरे) प्रीणयन्ति स्म ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র! [পরম্ ঐশ্বর্যবান্ পরমাত্মা] (তব) তোমার (পৌংস্যম্) পুরুষার্থ এবং (শ্রবঃ) যশকে (দ্যৌঃ) আকাশ এবং (পৃথিবী) পৃথিবী (বর্ধতি) বর্ধিত করে। (ত্বাম্) তোমাকে (আপঃ) জল (চ) এবং (পর্বতাসঃ) পর্বত (হিন্বিরে) প্রসন্ন করে/করেছে ॥২॥

    भावार्थ

    পরমেশ্বরের মহৎ কর্ম জানার মাধ্যমে মনুষ্য পুরুষার্থ করুক ॥২॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (দ্যৌঃ) দ্যুলোক (তব) আপনার (পৌংস্যম্) বলের মহিমা (বর্ধতি) বৃদ্ধি করে, এবং (পৃথিবী শ্রবঃ বর্ধতি) পৃথিবী আপনার কীর্ত্তি বর্ধিত করে। (আপঃ) সামুদ্রিক জল, বর্ষা তথা নদী-নালার জল, (চ পর্বতাসঃ) এবং পর্বত (ত্বাম্) আপনাকে (হিন্বিরে) প্রসন্ন করছে।

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