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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 124 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 124/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वामदेवः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१२४
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    कस्त्वा॑ स॒त्यो मदा॑नां॒ मंहि॑ष्ठो मत्स॒दन्ध॑सः। दृ॒ढा चि॑दा॒रुजे॒ वसु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क: । त्वा॒ । स॒त्य: । मदा॑नाम् । मंहि॑ष्ठ: । म॒त्स॒त् । अन्ध॑स: ॥ दृ॒ह्ला । चि॒त् । आ॒ऽरुजे॑ । वसु॑ ॥१२४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कस्त्वा सत्यो मदानां मंहिष्ठो मत्सदन्धसः। दृढा चिदारुजे वसु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क: । त्वा । सत्य: । मदानाम् । मंहिष्ठ: । मत्सत् । अन्धस: ॥ दृह्ला । चित् । आऽरुजे । वसु ॥१२४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 124; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (कः) कमनीय वा आगे बढ़ता हुआ, वा सुख देनेवाला (सत्यः) सत्यशीलवाला, (मदानाम्) आनन्दों और (अन्धसः) अन्न का (मंहिष्ठः) महादानी राजा (दृढा) दृढ़ (वसु) धनों को (चित्) अवश्य (आरुजे) खोल देने के लिये (त्वा) तुझे [प्रजा जन] को (मत्सत्) तृप्त करे ॥२॥

    भावार्थ

    सत्यशील राजा सुनीति से प्रजा को प्रसन्न रखकर धन-धान्य को बढ़ावे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(कः) म० १। कमनीयः। क्रमणशीलः। सुखप्रदः (त्वा) त्वां प्रजाजनम् (सत्यः) सत्सु साधुः (मदानाम्) आनन्दानाम् (मंहिष्ठः) अ० २०।१।१। दातृतमः (मत्सत्) आनन्दयेत् (अन्धसः) अन्नस्य (दृढा) दृढानि (चित्) अवश्यम् (आरुजे) दृशे विख्ये च। पा० ३।४।११। आ+रुजो भङ्गे-केन् तुमर्थे। समन्ताद् भङ्क्तुम्। प्रकाशयितुम् (वसु) वसूनि। धनानि ॥

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    विषय

    आसर पुरियों का विध्वंस

    पदार्थ

    १. हे जीव। (त्वा) = तुझे (कः) = आनन्दमय (सत्यः) = सत्यस्वरूप (मदानां मंहिष्ठः) = आनन्दों के सर्वाधिक दाता प्रभु (अन्धसा:) = इस आध्यायनीय सोम के द्वारा (मत्सत्) = आनन्दित करते हैं। इस सोम को वे प्रभु तुझे इसलिए भी प्राप्त कराते हैं कि दृढा (चित्) = बड़े दृढ़ भी (वसु) = लोकों को (आरुजे) = छिन्न-भिन्न करने के लिए तू समर्थ हो सके। २. सोम-रक्षण ही आनन्द-प्राप्ति का साधन है। हम सोम-रक्षण से समर्थ बनकर 'काम, क्रोध, लोभ' आदि असुरों की पुरियों का विदारण करने में समर्थ होते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु ने हमारे शरीर में सोम की उत्पत्ति की है। इसके द्वारा ही प्रभु हमारे जीवनों को आनन्दमय व पवित्र बनाते हैं।

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    भाषार्थ

    (कः) कौन है जो (त्वा) तुझे (अन्धसः) आध्यात्मिक अन्न अर्थात् आनन्दरस से (मत्सत्) मस्ताना बना देता है? और कौन है जो कि तुझे (दृळ्हा चित्) निश्चित ही सुदृढ़ (वसु) आध्यात्मिक-सम्पत्तियाँ प्रदान करता है, ताकि तू (आरुजे) पाप-गढ़ों को तोड़-फोड़ सके?। उत्तर—वह है (मदानाम्) आध्यात्मिक-मस्तियों का (मंहिष्ठः) सर्वश्रेष्ठ प्रदाता (सत्यः) सत्यस्वरूप परमेश्वर।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    What is the truest and highest of joys and foods for body, mind and soul that may please you? What wealth and value of life to help you break through the limitations and settle on the rock-bed foundation of permanence?

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    Translation

    My all-bliss God, true one who is the giver of all delights and most generous for the eternal wealth make you happy O man.

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    Translation

    My all-bliss God, true one who's the giver of all delights and most generous for the eternal wealth make you happy O man.

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    Translation

    O Lord of Protection or king, Thou art an allround Defender and Protector of our friends and worshippers with hundreds of means of protection and defence.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(कः) म० १। कमनीयः। क्रमणशीलः। सुखप्रदः (त्वा) त्वां प्रजाजनम् (सत्यः) सत्सु साधुः (मदानाम्) आनन्दानाम् (मंहिष्ठः) अ० २०।१।१। दातृतमः (मत्सत्) आनन्दयेत् (अन्धसः) अन्नस्य (दृढा) दृढानि (चित्) अवश्यम् (आरुजे) दृशे विख्ये च। पा० ३।४।११। आ+रुजो भङ्गे-केन् तुमर्थे। समन्ताद् भङ्क्तुम्। प्रकाशयितुम् (वसु) वसूनि। धनानि ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (কঃ) কমনীয় বা প্রগতিশীল, বা সুখ দাতা (সত্যঃ) সত্যবাদী, (মদানাম্) আনন্দের এবং (অন্ধসঃ) অন্নের (মংহিষ্ঠঃ) মহান দাতা রাজা (দৃঢা) দৃঢ় (বসু) ধন-সম্পদের (চিৎ) অবশ্যই (আরুজে) উন্মুক্ত/প্রকাশ/প্রকট করার জন্য (ত্বা) তোমাদের [প্রজাদের] (মৎসৎ) তৃপ্ত করুক ॥২॥

    भावार्थ

    সত্যবাদী রাজা সুনীতি দ্বারা প্রজাদের প্রসন্ন রেখে ধন-ধান্য বৃদ্ধি করুক ॥২॥

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    भाषार्थ

    (কঃ) কে যে (ত্বা) তোমাকে (অন্ধসঃ) আধ্যাত্মিক অন্ন অর্থাৎ আনন্দরস দ্বারা (মৎসৎ) আনন্দিত করে? এবং কে যে তোমাকে (দৃল়্হা চিৎ) নিশ্চিতরূপে সুদৃঢ় (বসু) আধ্যাত্মিক-সম্পত্তি প্রদান করে, যাতে তুমি (আরুজে) পাপ-পুরীকে ভঙ্গ করতে পারো?। উত্তর—তিনি হলেন (মদানাম্) আধ্যাত্মিক-আনন্দের (মংহিষ্ঠঃ) সর্বশ্রেষ্ঠ প্রদাতা (সত্যঃ) সত্যস্বরূপ পরমেশ্বর।

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