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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 124 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 124/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वामदेवः देवता - इन्द्रः छन्दः - पादनिचृद्गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१२४
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    अ॒भी षु णः॒ सखी॑नामवि॒ता ज॑रितॄ॒णाम्। श॒तं भ॑वास्यू॒तिभिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । सु । न॒: । सखी॑नाम् । अ॒वि॒ता । ज॒रि॒तॄ॒णाम् ॥ श॒तम् । भ॒वा॒सि॒ । ऊ॒तिऽभि॑: ॥१२४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभी षु णः सखीनामविता जरितॄणाम्। शतं भवास्यूतिभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । सु । न: । सखीनाम् । अविता । जरितॄणाम् ॥ शतम् । भवासि । ऊतिऽभि: ॥१२४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 124; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे राजन् !] (सखीनाम्) [अपने] सखाओं और (जरितॄणाम्) स्तुति करनेवाले (नः) हम लोगों का (सु) उत्तम (अविता) रक्षक होकर तू (शतम्) सौ प्रकार से (ऊतिभिः) रक्षाओं के साथ (अभि) सामने (भवासि) होवे ॥३॥

    भावार्थ

    जिस प्रकार प्रजागण राजा के हित के लिये प्रयत्न करें, वैसे ही राजा भी उनका हित करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(अभि) अभिमुखम् (सु) (नः) अस्माकम् (सखीनाम्) सुहृदाम् (अविता) रक्षकः (जरितॄणाम्) स्तोतॄणाम्। सद्गुणविदाम् (शतम्) बहुप्रकारेण (भवासि) लेटि रूपम्। भवेः (ऊतिभिः) रक्षाभिः ॥

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    विषय

    सखा+जरिता

    पदार्थ

    १.हे प्रभो! आप (अभि) = दोनों ओर (स) = उत्तमता से (न:) = हम (सखीनाम्) = सखा [मित्र] (जरितृणाम्) = स्तोताओं को (शतम्) = सौ वर्षपर्यन्त (ऊतिभिः) = रक्षणों के द्वारा (अविता भवसि) = रक्षक होते हैं। प्रभु मातृ-गर्भ में भी व बाहर आने पर भी हमारे रक्षक होते हैं। उन्होंने सर्वत्र हामरे रक्षण की व्यवस्था की है। सम्पूर्ण संसार चक्राकार गति में चलता हुआ हमारा रक्षण करनेवाला होता है। २. यह रक्षण सखाओं को प्राप्त होता है। जो भी व्यक्ति समान ख्यान-[ज्ञान]-वाले बनते हैं वे ही संसार के इन पदार्थों से कल्याण प्राप्त कर पाते हैं। इसी प्रकार प्रभु-स्तवन करते हुए वे भटकते नहीं और कल्याण के भागी होते हैं। ३. 'ऊतिभि:'-शब्द का अर्थ 'कर्मों से' [गति से] भी है। प्रभु क्रियाशील का ही कल्याण करते हैं। इसप्रकार अपने जीवन में 'ज्ञान, उपासना व कर्म' का समन्वय करनेवाला व्यक्ति प्रभु-कृपा का पात्र बनता है।

    भावार्थ

    हम प्रभु के सखा व स्तोता बनकर प्रभु-कृपा के पात्र हों। प्रभु सबके रक्षक हैं।

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! आप (नः) हम (सखीनाम्) सखाओं, और (जरितॄणाम्) स्तोताओं के (सु) अच्छी प्रकार से (अविता) रक्षक हैं, और (ऊतिभिः) रक्षाओं की दृष्टि से (शतम्) आप सैकड़ों प्रकार से हमारे रक्षक (अभि भवासि) हो जाते हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Friend of friends and protector of celebrants you are, come and bless us too with a hundred modes of protection and advancement. Be ours, O lord!

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    Translation

    O Mighty God, you become the protective of our devotees with your hundreds of protective means and power.

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    Translation

    O Mighty Go. I, you become the protective of our devotees with your hundreds of protective means and power.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(अभि) अभिमुखम् (सु) (नः) अस्माकम् (सखीनाम्) सुहृदाम् (अविता) रक्षकः (जरितॄणाम्) स्तोतॄणाम्। सद्गुणविदाम् (शतम्) बहुप्रकारेण (भवासि) लेटि रूपम्। भवेः (ऊतिभिः) रक्षाभिः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে রাজন!] (সখীনাম্) [নিজের] সখাদের এবং (জরিতৄণাম্) স্তুতিকারী (নঃ) আমাদের (সু) উত্তম (অবিতা) রক্ষক হয়ে তুমি (শতম্) শত উপায়ে (ঊতিভিঃ) সুরক্ষার সাথে (অভি) সামনে/অভিমুখে (ভবাসি) হও/থাকো॥৩॥

    भावार्थ

    যেভাবে রাজার হিতের জন্য প্রজারা প্রচেষ্টা করে, তেমনই রাজাও তাঁদের হিত করুক ॥৩॥

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    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর! আপনি (নঃ) আমাদের (সখীনাম্) সখাদের, এবং (জরিতৃণাম্) স্তোতাদের (সু) উত্তম (অবিতা) রক্ষক, এবং (ঊতিভিঃ) রক্ষার দৃষ্টিতে (শতম্) আপনি শত প্রকারে আমাদের রক্ষক (অভি ভবাসি) হন।

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