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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 124 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 124/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वामदेवः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१२४
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    इ॒मा नु कं॒ भुव॑ना सीषधा॒मेन्द्र॑श्च॒ विश्वे॑ च दे॒वाः। य॒ज्ञं च॑ नस्त॒न्वं च प्र॒जां चा॑दि॒त्यैरिन्द्रः॑ स॒ह ची॑क्लृपाति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मा । नु । क॒म् । भुव॑ना । सी॒स॒धा॒म॒ । इन्द्र॑: । च॒ । विश्वे॑ । च॒ । दे॒वा: ॥ य॒ज्ञम् । च॒ । न॒: । त॒न्व॑म् । च॒ । प्र॒ऽजाम् । च॒ । आ॒दि॒त्यै: । इन्द्र॑: । स॒ह । ची॒क्लृ॒पा॒ति॒ ॥१२४.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमा नु कं भुवना सीषधामेन्द्रश्च विश्वे च देवाः। यज्ञं च नस्तन्वं च प्रजां चादित्यैरिन्द्रः सह चीक्लृपाति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमा । नु । कम् । भुवना । सीसधाम । इन्द्र: । च । विश्वे । च । देवा: ॥ यज्ञम् । च । न: । तन्वम् । च । प्रऽजाम् । च । आदित्यै: । इन्द्र: । सह । चीक्लृपाति ॥१२४.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 124; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (इमा) यह (भुवना) उत्पन्न पदार्थ, (च) और (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला सभापति] (च) और (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोग हम (नु) शीघ्र (कम्) सुख को (सीषधाम) सिद्ध करें। (आदित्यैः सह) अखण्ड व्रतधारी विद्वानों के साथ (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला सभापति] (नः) हमारे (यज्ञम्) यज्ञ [मेल-मिलाप आदि] को (च) और (तत्त्वम्) शरीर (च) और (प्रजाम्) प्रजा [सन्तान आदि] को (च) भी (चीक्लृपाति) समर्थ करे ॥४॥

    भावार्थ

    सभापति राजा और सभासद् लोग संसार के सब पदार्थों से उपकार लेकर सबकी यथावत् रक्षा करें ॥४॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ४-६ आचुके हैं-अथ० २०।६३।१-३ ॥ ४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ६३।१-३ ॥

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    विषय

    व्याख्या २०.६३.१-३ पर द्रष्टव्य है

    पदार्थ

    गत सूक्त की भावना के अनुसार जीवन को सुन्दर बनाता हुआ यह व्यक्ति उत्तम यशवाला 'सुकीर्ति' बनता है। प्रभु का उत्तम कीर्तन करने से भी यह 'सुकीर्ति' होता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है -

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    भाषार्थ

    हम (इमा भुवना) इन शारीरिक भुवनों को—पैरों, जङ्घाओं, उदर, छाती, हृदय, इन्द्रियों और मस्तिष्क को (नु) शीघ्र (सीषधाम) योग-साधनाओं द्वारा सिद्ध करते हैं, वश में करते हैं, (इन्द्रः) परमेश्वर (च) और (विश्वे देवाः) सब दिव्यगुण तथा उच्चकोटि के दिव्य उपासक, हमारी इस साधना को (कम्) सुखपूर्वक सिद्ध करें। (नः यज्ञं च) हमारे उपासना-यज्ञों को (च तन्वम्) और हमारे शरीरों को, (च प्रजाम्) और हमारी सन्तानों को (इन्द्रः) परमेश्वर (आदित्यैः सह) आदित्य ब्रह्मचारी उपासकों की सहायता द्वारा (चीक्लृपाति) समर्थ करे।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Let us proceed and win our goals across these regions of the world and let all divine forces of nature and nobilities of humanity be favourable to us. Indra, the sun, the wind, and electric energy of the firmament with all year’s phases of the sun supports, strengthens and promotes our yajna, our body’s health and our future generations.

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    Translation

    Let these created objects, Indra, the mighty ruler and all men of enlightenment bring happiness all over the world. May Indra, the Almighty God togeather with learned persons make our body and offspring strong and efficient.

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    Translation

    Let these created objects, Indra, the mighty ruler and all men of enlightenment bring happiness all ever the world. May Indra, the Almighty God together with learned persons make our body and offspring strong and efficient.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ४-६ आचुके हैं-अथ० २०।६३।१-३ ॥ ४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ६३।१-३ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইমা) এই সকল (ভুবনা) উৎপন্ন পদার্থ, (চ)(ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [মহান ঐশ্বর্যবান্ সভাপতি] (চ) এবং (বিশ্বে) সকল (দেবাঃ) বিদ্বানগণ আমরা (নু) শীঘ্রই (কম্) সুখ (সীষধাম) সিদ্ধ/প্রাপ্ত করি। (আদিত্যৈঃ সহ) অখণ্ড ব্রতধারী বিদ্বানদের সহিত (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [মহান ঐশ্বর্যযুক্ত সভাপতি] (নঃ) আমাদের (যজ্ঞম্) যজ্ঞ [সঙ্গতিকরণ-ব্যবহার আদি] (চ)(তন্বম্) শরীর (চ) এবং (প্রজাম্) প্রজাকে [সন্তানাদিকে] (চ)(চীক্লৃপাতি) সমর্থ্য করে/করুক ॥৪॥

    भावार्थ

    সভাপতি রাজা এবং সভাসদগণ সংসারের সকল পদার্থ থেকে উপকৃত হয়ে সকলের যথাবৎ রক্ষা করে/করুক ॥৪॥

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    भाषार्थ

    আমরা (ইমা ভুবনা) এই শারীরিক ভুবনকে—পা, জঙ্ঘা, উদর, ছাতী, হৃদয়, ইন্দ্রিয়-সমূহ এবং মস্তিষ্ককে (নু) শীঘ্র (সীষধাম) যোগ-সাধনা দ্বারা সিদ্ধ করি, বশবর্তী করি, (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর (চ) এবং (বিশ্বে দেবাঃ) সব দিব্যগুণ তথা উচ্চকোটির দিব্য উপাসক, আমাদের এই সাধনা (কম্) সুখপূর্বক সিদ্ধ করুক। (নঃ যজ্ঞং চ) আমাদের উপাসনা-যজ্ঞকে (চ তন্বম্) এবং আমাদের শরীরকে, (চ প্রজাম্) এবং আমাদের সন্তানদের (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর (আদিত্যৈঃ সহ) আদিত্য ব্রহ্মচারী উপাসকদের সহায়তা দ্বারা (চীক্লৃপাতি) সমর্থ করেন।

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