अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 140/ मन्त्र 3
आ नू॒नं र॒घुव॑र्तनिं॒ रथं॑ तिष्ठाथो अश्विना। आ वां॒ स्तोमा॑ इ॒मे मम॒ नभो॒ न चु॑च्यवीरत ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नू॒नम् । र॒घुऽव॑र्तनिम् । रथ॑म् । ति॒ष्ठा॒थ॒: । अ॒श्वि॒ना ॥ आ । वा॒म् । स्तोमा॑: । इ॒मे । मम॑ । नभ॑: । न । चु॒च्य॒वी॒र॒त॒ ॥१४०.३॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नूनं रघुवर्तनिं रथं तिष्ठाथो अश्विना। आ वां स्तोमा इमे मम नभो न चुच्यवीरत ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नूनम् । रघुऽवर्तनिम् । रथम् । तिष्ठाथ: । अश्विना ॥ आ । वाम् । स्तोमा: । इमे । मम । नभ: । न । चुच्यवीरत ॥१४०.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
दिन और रात्रि के उत्तम प्रयोग का उपदेश।
पदार्थ
(अश्विना) हे दोनों अश्वी ! [व्यापक दिन-राति] (रघुवर्तनिम्) हलके घूमनेवाले [अति शीघ्रगामी] (रथम्) रथ पर (नूनम्) अवश्य (आ तिष्ठाथः) तुम चढ़ते हो, (मम) मेरे (इमे) यह (स्तोमाः) स्तुति के वचन (वाम्) तुम दोनों को (नभः न) मेघ के समान [शीघ्र] (आ) सब ओर से (चुच्यवीरत) [हमें] प्राप्त कराते हैं ॥३॥
भावार्थ
जैसे पवन से बादल आकाश में दौड़ता है, उससे भी अधिक शीघ्रगामी काल को वश में लाकर बुद्धिमान् आनन्द पाते हैं ॥३॥
टिप्पणी
३−(आ तिष्ठाथः) अधितिष्ठथः (नूनम्) अवश्यम् (रघुवर्तनिम्) वृतेश्च। उ० २।१०६। लघु+वृतु वर्तने-अनि, लस्य रः। लघुवर्तनोपेतम्। अतिशीघ्रगामिनम् (रथम्) यानम् (अश्विना) म० २। हे व्यापकौ। अहोरात्रौ (आ) समन्तात् (वाम्) युवाम् (स्तोमाः) स्तुतिवचनानि (इमे) (मम) (नभः) मेघः (न) यथा (चुच्यवीरत) अन्तर्गतण्यर्थः। च्यवयन्ति। गमयन्ति ॥
विषय
रघुवर्तनि रथम्
पदार्थ
१. हे (अश्विना) = प्राणापानो ! (नूनम्) = निश्चय से (रघुवर्तनिम्) = [लघुगमनम्]-शीघ्र गतिवाले इस (रथम्) = शरीर-रथ पर आप (आतिष्ठाथ:) = स्थित होते हैं। प्राणसाधना के द्वारा यह शरीर-रथ (आलस्यशून्य) = स्फूर्तिवाला बनता है, २. अत: (इमे) = ये (मम) = मेरे-मुझसे किये जानेवाले (स्तोमाः) = स्तुतिसमूह (नभः न) = सूर्य के समान तेजस्वी (वाम्) = आपको (आचुच्यवीरत) = अभिगत होते हैं। मैं प्राणापान का स्तवन करता हुआ प्राणसाधना में प्रवृत्त होता हूँ। यह प्राणसाधना मुझे सूर्य के समान तेजस्वी बनाती है।
भावार्थ
प्राणसाधना से शरीर में स्फूर्ति आ जाती है। यह प्राणसाधना हमें सूर्यसम तेजस्वी बनाती है।
भाषार्थ
(अश्विना) हे अश्वियो! तुम दोनों (रघुवर्तनिम्) सुगमता से चलाये जा सकनेवाले (रथम्) राष्ट्र-रथ पर (नूनम्) निश्चयपूर्वक (आ तिष्ठाथः) आ बैठो, और इसे चलाओ। (मम) मुझ राष्ट्रपति के (इमे) ये (स्तोमाः) तुम्हारे कर्त्तव्यों के स्तवन अर्थात् कथन परामर्श, (नभः न) मेघ के जलों के सदृश, (चुच्यवीरत) शान्ति देते हुए, तथा उपकारी होते हुए (वाम्) तुम्हारे लिए प्रवाहित हों।
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
Ashvins, take to the fastest chariot now and come by the shortest straight path. These hymns of adoration burst forth from me like an explosion in space, reach you like the sun and draw you hither.
Translation
O teacher, and preacher, you mount on your car that rightly rolls upon its path. May these my praises make you speed hitherward like-a cloud of heaven.
Translation
O teacher, and preacher, you mount on your car that rightly rolls upon its path. May these my praises make you speed hitherward like-a cloud of heaven.
Translation
O ‘Asvins’, let-you station yourselves fully in the fast-moving vehicle (i.e., car or aeroplane) or in the body, so that all these useful properties of yours, utilized by me may trickle down like the rays of the sun in the sky.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(आ तिष्ठाथः) अधितिष्ठथः (नूनम्) अवश्यम् (रघुवर्तनिम्) वृतेश्च। उ० २।१०६। लघु+वृतु वर्तने-अनि, लस्य रः। लघुवर्तनोपेतम्। अतिशीघ्रगामिनम् (रथम्) यानम् (अश्विना) म० २। हे व्यापकौ। अहोरात्रौ (आ) समन्तात् (वाम्) युवाम् (स्तोमाः) स्तुतिवचनानि (इमे) (मम) (नभः) मेघः (न) यथा (चुच्यवीरत) अन्तर्गतण्यर्थः। च्यवयन्ति। गमयन्ति ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
অহোরাত্রসুপ্রয়োগোপদেশঃ
भाषार्थ
(অশ্বিনা) হে উভয় অশ্বী! [ব্যাপক দিন-রাত] (রঘুবর্তনিম্) অতি শীঘ্রগামী (রথম্) রথে (নূনম্) অবশ্যই (আ তিষ্ঠাথঃ) তোমরা আরোহন করো, (মম) আমার (ইমে) এই (স্তোমাঃ) স্তুতি বচন (বাম্) তোমাদের উভয়কে (নভঃ ন) মেঘের মতো [শীঘ্র] (আ) সর্ব দিক হতে (চুচ্যবীরত) [আমাদের] প্রাপ্ত করায়॥৩॥
भावार्थ
বাদল যেমন বাতাসের দ্বারা আকাশে দৌড়ায়, এর চেয়েও অধিক শীঘ্রগামী কালকে বশে এনে বুদ্ধিমানগণ আনন্দ পায়/প্রাপ্ত হয়॥৩॥
भाषार्थ
(অশ্বিনা) হে অশ্বিগণ! তোমরা দুজন (রঘুবর্তনিম্) সুগমতাপূর্বক নিয়ন্ত্রণযোগ্য (রথম্) রাষ্ট্র-রথে (নূনম্) নিশ্চয়পূর্বক (আ তিষ্ঠাথঃ) এসে বসো/স্থিত হও, এবং পরিচালনা করো। (মম) আমার [রাষ্ট্রপতির] (ইমে) এই (স্তোমাঃ) তোমাদের কর্ত্তব্যের স্তবন অর্থাৎ কথন পরামর্শ, (নভঃ ন) মেঘের জলের সদৃশ, (চুচ্যবীরত) শান্তি প্রদান করে, তথা উপকারী হয়ে (বাম্) তোমাদের জন্য প্রবাহিত হোক।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal