अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 3
अ॒स्मै भी॒माय॒ नम॑सा॒ सम॑ध्व॒र उषो॒ न शु॑भ्र॒ आ भ॑रा॒ पनी॑यसे। यस्य॒ धाम॒ श्रव॑से॒ नामे॑न्द्रि॒यं ज्योति॒रका॑रि ह॒रितो॒ नाय॑से ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्मै । भी॒माय॑ । नम॑सा । सम् । अ॒ध्व॒रे । उष॑: । न । शु॒भ्रे॒ । आ । भ॒र॒ । पनी॑यसे ॥ यस्य॑ । धाम॑ । अव॑से । नाम॑ । इ॒न्द्रि॒यम् । ज्योति॑: । अका॑रि । ह॒रित॑: । न । अय॑से ॥१५.३॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्मै भीमाय नमसा समध्वर उषो न शुभ्र आ भरा पनीयसे। यस्य धाम श्रवसे नामेन्द्रियं ज्योतिरकारि हरितो नायसे ॥
स्वर रहित पद पाठअस्मै । भीमाय । नमसा । सम् । अध्वरे । उष: । न । शुभ्रे । आ । भर । पनीयसे ॥ यस्य । धाम । अवसे । नाम । इन्द्रियम् । ज्योति: । अकारि । हरित: । न । अयसे ॥१५.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सभाध्यक्ष के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(शुभ्रे) हे चमकीली (उषः) उषा ! [प्रभात वेला के समान सुखदायक पुरुष] (न) अव (अस्मै) इस (भीमाय) भीम [भयङ्कर], (पनीयसे) अत्यन्त व्यवहारकुशल [सभाध्यक्ष] के लिये (अध्वरे) हिंसारहित कर्म में (नमसा) सत्कार के साथ (सम्) अच्छे प्रकार (आ भर) भरपूर हो। (यस्य) जिस [सभाध्यक्ष] का (धाम) धाम [न्यायालय आदि स्थान], (नाम) नाम [यश], (इन्द्रियम्) ऐश्वर्य और (ज्योतिः) प्रताप (श्रवसे) अन्न के लिये (अकारि) बनाया गया है, (हरितः न) जैसे दिशाएँ (अयसे) चलने के लिये [बनी] हैं ॥३॥
भावार्थ
जैसे प्रातःकाल में अन्धकार के नाश से आनन्द होता है, वैसे ही मनुष्य योग्य सभाध्यक्ष के सत्कार करने में सुखी होवें, और वह भी अपना सर्वस्व प्रजा को सुख देने में सब ओर लगावे ॥३॥
टिप्पणी
३−(अस्मै) प्रसिद्धाय (भीमाय) भयङ्कराय (नमसा) सत्कारेण (सम्) सम्यक् (अध्वरे) हिंसारहिते कर्मणि (उषः) पादादित्वाद् निघाताभावः। हे प्रभातवेले (न) सम्प्रति-निरु० ७।३१ (शुभ्रे) स्फायितञ्चि०। उ० २।१३। शुभ दीप्तौ-रक् टाप्। हे दीप्यमाने (आ) समन्तात् (भर) धृतः पूरितो भव (पनीयसे) पन व्यवहारे स्तुतौ च-तृच्, ईयसुन्, तृलोपः। अत्यन्तव्यवहारकुशलाय सभाध्यक्षाय (यस्य) सभाध्यक्षस्य (धाम) न्यायालयादिस्थानम् (श्रवसे) अन्नलाभाय (नाम) यशः (इन्द्रियम्) इन्द्रियं धननाम-निघ० २।१०। इन्द्रलिङ्गम्। ऐश्वर्यम् (ज्योतिः) प्रतापः (अकारि) कृतम् (हरितः) हरितो दिङ्नाम-निघ० १।९। दिशः (न) इव (अयसे) अय गतौ-असुन्। गमनाय ॥
विषय
उषाकाल में प्रभु-पूजन
पदार्थ
१. (अस्मै) = इस (भीमाय) = शत्रुओं के लिए भयंकर (पनीयसे) = स्तुत्य प्रभु के लिए (उषः न शुभ्रे) = उषाकाल के समान शुभ्र (अध्वरे) = यज्ञ में (नमसा) = नमन के साथ (सम् आभर) = अपने को सम्यक् प्राप्त करा। उपासक को चाहिए कि उषाकाल में नम्रता के साथ प्रभु की उपासना में प्रवृत्त हो। २. उस परमात्मा की उपासना में हम प्रवृत्त हों (यस्य) = जिस प्रभु का (धाम) = तेज (श्रवसे) = हमारी यशोवृद्धि के लिए होता है। जिस प्रभु का (नाम) = नामस्मरण (इन्द्रियम्) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिए हितकर होता है [इन्द्रहितम्]। प्रभु-नाम-स्मरण से वासना का विनाश होता है, अतः मनुष्य जितेन्द्रिय बन पाता है। जिस प्रभु का (ज्योति:) = प्रकाश (हरित: न) = दिशाओं की भांति (अयसे) = गति के लिए होता है, अर्थात् जहाँ तक दिशाओं का विस्तार है, वहाँ तक प्रभु का प्रकाश फैला हुआ है। उपासक इस प्रकाश में मार्ग को देख पाता है और आगे बढ़ता है।
भावार्थ
हम प्रतिदिन उषाकाल में प्रभु-पूजन में प्रवृत्त हों। हमें प्रभु का तेज प्राप्त होगा। प्रभु का नामस्मरण हमें बल देगा। प्रभु के प्रकाश में हम मार्ग पर आगे बढ़ेंगे।
भाषार्थ
हे उपासक! (अध्वरे) हिंसारहित उपासना-यज्ञ में, तू (भीमाय) कठोर न्याय की दृष्टि से भयानक, परन्तु (पनीयसे) न्यायवज्र के हितकर और रमणीय होने के कारण स्तुति-योग्य (अस्मै) इस परमेश्वर के प्रति, (नमसा) नमस्कारों द्वारा (सम्) सम्यक्रूप में (आ भर) भक्तिरस समर्पित कर। (न) जैसे कि (उषाः) उषा (शुभ्रे) दिन के शुभ्र हो जाने पर सूर्य के निमित्त आत्मसमर्पण कर देती है। (नाम) सबको नमानेवाला (यस्य) जिस परमेश्वर का (इन्द्रियं धाम) परमेश्वरीय निज तेज (श्रवसे) श्रवण योग्य, विश्रुत है। उसने हम उपासकों में (ज्योतिः) एक दिव्य ज्योति (अकारि) प्रकट कर दी है। (न) जैसे कि (हरितः) अन्धकार का हरण करनेवाली सूर्यकिरणें (अयसे) आते समय (ज्योतिः) उषारूपी ज्योति प्रकट कर देती हैं।
टिप्पणी
[शुभ्रे=उषा सूर्य से प्रथम आती है, और सूर्य पीछे आता है। जब सूर्य आ गया तब उषा मिट गई। मानो उषा ने सूर्य के प्रति आत्मसमर्पण कर दिया। जब तक आकाश लाल रहता है, तब तक उषा रहती है। सूर्य के आ जाने पर जब दिन शुभ्र हो जाता है, तब उषा अपने स्वरूप से मिट जाती है। मानो उसने सूर्य के प्रति आत्मसमर्पण कर दिया है।]
इंग्लिश (4)
Subject
Indr a Devata
Meaning
O man of knowledge, come to the auspicious yajna like the glorious dawn, bearing gifts of food, power and energy for this awful lord of majesty and charity, whose house, famous for gold and chant of the Word, emanates the light and power of science and knowledge like the spaces in the morning reflecting the light and glory of the dawn.
Translation
O man of scientific knowledge, you through the excellent mean utilize into construcive worke the electricity which is terrible and means of many performances like the radiant dawn. This is that whose power may be utilized for the purpose of audibility and whose expansion is concerned with wealth and whose power may be used to go to all the quarters.
Translation
O man of scientific knowledge, you through the excellent mean utilize into constructive work the electricity which is terrible and means of many performances like the radiant dawn. This is that whose power may be utilized for the purpose of audibility and whose expansion is concerned with wealth and whose power may be used to go to all the quarters.
Translation
O well-versed engineer make use of this terrible electric power fit to be utilised for-useful purposes by controlling it, for non-violent, brilliant liglit like the dawn. lt has the potentiality to help hearing, control, energy and spread light in all quarters.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(अस्मै) प्रसिद्धाय (भीमाय) भयङ्कराय (नमसा) सत्कारेण (सम्) सम्यक् (अध्वरे) हिंसारहिते कर्मणि (उषः) पादादित्वाद् निघाताभावः। हे प्रभातवेले (न) सम्प्रति-निरु० ७।३१ (शुभ्रे) स्फायितञ्चि०। उ० २।१३। शुभ दीप्तौ-रक् टाप्। हे दीप्यमाने (आ) समन्तात् (भर) धृतः पूरितो भव (पनीयसे) पन व्यवहारे स्तुतौ च-तृच्, ईयसुन्, तृलोपः। अत्यन्तव्यवहारकुशलाय सभाध्यक्षाय (यस्य) सभाध्यक्षस्य (धाम) न्यायालयादिस्थानम् (श्रवसे) अन्नलाभाय (नाम) यशः (इन्द्रियम्) इन्द्रियं धननाम-निघ० २।१०। इन्द्रलिङ्गम्। ऐश्वर्यम् (ज्योतिः) प्रतापः (अकारि) कृतम् (हरितः) हरितो दिङ्नाम-निघ० १।९। दिशः (न) इव (अयसे) अय गतौ-असुन्। गमनाय ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
সভাধ্যক্ষগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(শুভ্রে) হে চমকিত (উষঃ) ঊষা! [প্রভাতবেলার সমান সুখদায়ক পুরুষ] (ন) এখন (অস্মৈ) এই (ভীমায়) ভীম [ভয়ঙ্কর], (পনীয়সে) অত্যন্ত ব্যবহারকুশল [সভাধ্যক্ষ] এর জন্য (অধ্বরে) হিংসারহিত কর্মে (নমসা) সৎকারের সহিত (সম্) উত্তমরূপে (আভর) ভরপূর হোক। (যস্য) যে [সভাধ্যক্ষ] এর (ধাম) ধাম [ন্যায়ালয় আদি স্থান], (নাম) নাম [যশ], (ইন্দ্রিয়ম্) ঐশ্বর্য এবং (জ্যোতিঃ) প্রতাপ (শ্রবসে) অন্নের জন্য (অকারি) তৈরি করা হয়েছে, (হরিতঃ ন) যেমন দিশাসমূহ (অয়সে) গমনের জন্য [তৈরি] হয়েছে॥৩॥
भावार्थ
যেমন প্রাতঃকালে অন্ধকার নাশ দ্বারা আনন্দ হয়, তেমনই মনুষ্য যোগ্য সভাধ্যক্ষের সৎকার করার ক্ষেত্রে সুখী হোক, এবং সেও নিজের সর্বস্ব প্রজাগণকে সুখ প্রদানের জন্য সর্বদিকে ব্যবহার করুক॥৩॥
भाषार्थ
হে উপাসক! (অধ্বরে) হিংসারহিত উপাসনা-যজ্ঞে, তুমি (ভীমায়) কঠোর ন্যায়ের দৃষ্টিতে ভয়ানক, কিন্তু (পনীয়সে) ন্যায়বজ্রের হিতকর এবং রমণীয় হওয়ার কারণে স্তুতি-যোগ্য (অস্মৈ) এই পরমেশ্বরের প্রতি, (নমসা) নমস্কার দ্বারা (সম্) সম্যক্-রূপে (আ ভর) ভক্তিরস সমর্পিত করো। (ন) যেমন (উষাঃ) ঊষা (শুভ্রে) দিন শুভ্র/আলোকিত/উজ্জ্বল হলে সূর্যের প্রতি আত্মসমর্পণ করে। (নাম) সকলকে নতকারী (যস্য) যে পরমেশ্বরের (ইন্দ্রিয়ং ধাম) পরমেশ্বরীয় নিজ তেজ (শ্রবসে) শ্রবণ যোগ্য, বিশ্রুত। তিনি আমাদের উপাসকদের মধ্যে (জ্যোতিঃ) এক দিব্য জ্যোতি (অকারি) প্রকট করেছেন। (ন) যেমন (হরিতঃ) অন্ধকার হরণকারী সূর্যকিরণ (অয়সে) আসার/আগমনের সময় (জ্যোতিঃ) ঊষারূপী জ্যোতি প্রকট করে ।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal