अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 21/ मन्त्र 6
ते त्वा॒ मदा॑ अमद॒न्तानि॒ वृष्ण्या॑ ते॒ सोमा॑सो वृत्र॒हत्ये॑षु सत्पते। यत्का॒रवे॒ दश॑ वृ॒त्राण्य॑प्र॒ति ब॒र्हिष्म॑ते॒ नि स॒हस्रा॑णि ब॒र्हयः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठते । त्वा॒ । मदा॑: । अ॒म॒द॒न् । तानि॑ । वृष्ण्या॑ । ते । सोमा॑स: । वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑षु । स॒त्ऽप॒ते॒ ॥ यत् ।का॒रवे॑ । दश॑ । वृ॒त्राणि॑ । अ॒प्र॒ति । ब॒र्हिष्म॑ते । नि । स॒हस्रा॑णि । ब॒र्हय॑: ॥२१.६॥
स्वर रहित मन्त्र
ते त्वा मदा अमदन्तानि वृष्ण्या ते सोमासो वृत्रहत्येषु सत्पते। यत्कारवे दश वृत्राण्यप्रति बर्हिष्मते नि सहस्राणि बर्हयः ॥
स्वर रहित पद पाठते । त्वा । मदा: । अमदन् । तानि । वृष्ण्या । ते । सोमास: । वृत्रऽहत्येषु । सत्ऽपते ॥ यत् ।कारवे । दश । वृत्राणि । अप्रति । बर्हिष्मते । नि । सहस्राणि । बर्हय: ॥२१.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(सत्पते) हे सत्पुरुषों के रक्षक ! [सेनापति] (ते) उन (मदाः) आनन्द देनेवाले शूरों ने, (तानि) उन (वृष्ण्या) वीरों के योग्य कर्मों ने और (ते) उन (सोमासः) ऐश्वर्यों ने (वृत्रहत्येषु) वैरियों के मारनेवाले संग्रामों में (त्वा) तुझको (अमदन्) प्रसन्न किया है, (यत्) जब (बर्हिष्मते) विज्ञानी (कारवे) कर्मकर्ता के लिये (दश सहस्राणि) दस सहस्र [असंख्य] (वृत्राणि) शत्रुदलों को (अप्रति) बिना रोक (नि बर्हयः) तूने मार डाला है ॥६॥
भावार्थ
धार्मिक राजा सज्जनों की रक्षा के लिये दुष्टों का नाश करके आनन्द के साथ वैभव बढ़ावें ॥६॥
टिप्पणी
६−(ते) प्रसिद्धाः (त्वा) त्वाम् (मदाः) आनन्दयितारः शूराः (अमदन्) हर्षितवन्तः (तानि) प्रसिद्धानि (वृष्ण्या) वृषन्-यत्। शेर्लोपः। वृष्णः इन्द्रस्य वीरस्य योग्यानि कर्माणि (ते) प्रसिद्धाः (सोमासः) ऐश्वर्याणि (वृत्रहत्येषु) वृत्राणां शत्रूणां हत्या हननं येषु तेषु संग्रामेषु (सत्पते) हे सत्पुरुषाणां रक्षक (यत्) यदा (कारवे) कृवापा०। उ० १।१। करोतेः-उण्। कर्मकर्त्रे (दश सहस्राणि) असंख्यातानि (वृत्राणि) शत्रुसैन्यानि (अप्रति) अ० २०।१२।३। यथा तथा, प्रातिकूल्यस्य विघ्नस्य राहित्येन (बर्हिष्मते) विज्ञानवते (नि बर्हयः) बर्ह प्राधान्ये हिंसादिषु च-लङ्, अडभावश्छान्दसः। निबर्हयतिर्बलकर्मा-निघ० २।१९। नितरामवधीः ॥
विषय
प्राणायाम स्तोत्र+सोम-रक्षण
पदार्थ
१. हे (सत्पते) = हे सज्जनों के रक्षक प्रभो! (वृत्रहत्येषु) = ज्ञान को आवरणभूत वासनाओं के विनाशकारी संग्रामों में (मदा:) = मद [उल्लास] के जनक मरुतों [प्राणों] ने (अमदन) = आनन्दित किया है। उपासक प्राणसाधना द्वारा प्रभु का प्रिय बनता है। (तानि वृष्ण्या) = उन स्तोत्रों ने तुझे आनन्दित किया है जो स्तोता के लिए सुखों के वर्षक होते हैं। (ते सोमास:) = शरीर में सुरक्षित उन सोमकणों ने तुझे आनन्दित किया है। यह सोमकणों का रक्षण हमें प्रभु का प्रिय बनाता है। प्रभु-प्रीति-प्राप्ति के तीन साधन हैं[क] प्राणायाम [ख] स्तोत्र [ग] सोम-रक्षण। २. इसप्रकार (यत्) = जब आप प्रसन्न होते हैं तब (कारवे) = स्तोता के लिए (बहिष्मते) = यज्ञादि पवित्र कर्मों को करनेवाले के लिए (दश सहस्त्राणि) = दशों हज़ार (वृत्राणि) = ज्ञान की आवरक वासनाओं को (अप्रति निबर्हयः) = आप ऐसे विनष्ट करते हैं जिससे कि उनका फिर लौटना होता ही नहीं। प्रसन्न प्रभु हमारी सब शत्रुभूत वासनाओं को विनष्ट कर डालते हैं।
भावार्थ
प्राणायाम+स्तवन व सोम-रक्षण द्वारा हम प्रभु के प्रीतिपात्र बनें । प्रभु हमारी सब वासनाओं को विनष्ट कर डालेंगे।
भाषार्थ
(सत्पते) हे सच्चे पति! (ते) उन हमारी शक्ति की (मदाः) मस्तियों ने, (तानि) उन (वृष्ण्या) हमारे भक्तिरसवर्षी कर्मों ने, तथा (ते) उन हमारे (सोमासः) भक्तिरसों ने (वृत्रहत्येषु) हमारे पाप-वृत्रों के हनन कार्यों में (त्वा) आपको (अमदन्) प्रसन्न कर दिया है। (बर्हिष्मते) क्योंकि पापों की जड़ काटने में लगे हुए (कारवे) स्तुतिकर्त्ता उपासक के, (सहस्राणि) अति प्रबल (दश वृत्राणि) १० पापों को (अप्रति) विना विरोध के, अर्थात् आसानी से (यत्) जो आपने (नि बर्हयः) काट दिया है।
टिप्पणी
[वृष्ण्या=वृष्ण्यानि=वर्षकर्माणि (निरु০ १०.१.१०)। कारवे=कारुः स्तोता (निघं০ ३.१६)। दश वृत्राणि=दस इन्द्रियों के दस प्रकार के राजस कर्म। सहस्राणि=यौगिकदृष्ट्या “सहस्रं सहस्वत्” (निरु০ ३.२.१०)। अथवा—सहस्रम्=बहुत। बर्हिः, बर्हयः=नि बृह्= To destroy, Remove (आप्टे)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Self-integration
Meaning
Lord of truth and protector of the people of truth and piety, when in the battles against Vrtra, demon of darkness and evil, for the defence of the hero of yajnic action you resolutely overthrow tens of thousands of the forces of darkness, then those joyous and generous fighters and lovers of soma celebrate the victories with you.
Translation
O ruler, these delighting sources, these forces, these juices of herbs satisfy of you in the slaughter of enemies, O protector of good men, whereby you courageously give the ten thousand incomparable riches (Vritrani)
Translation
O ruler, these delighting sources, these forces, these juices of herbs satisfy of you in the slaughter of enemies, O protector of good men, whereby you courageously give the ten thousand incomparable riches (Vritrani).
Translation
O Protector of the virtuous, may these cheering, powerful pleasure-giv¬ ing brave warriors encourage thee in the destruction of the wicked, so that thou mayst completely inihilate tens of thousands of them at one stroke for the active, prosperous king.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(ते) प्रसिद्धाः (त्वा) त्वाम् (मदाः) आनन्दयितारः शूराः (अमदन्) हर्षितवन्तः (तानि) प्रसिद्धानि (वृष्ण्या) वृषन्-यत्। शेर्लोपः। वृष्णः इन्द्रस्य वीरस्य योग्यानि कर्माणि (ते) प्रसिद्धाः (सोमासः) ऐश्वर्याणि (वृत्रहत्येषु) वृत्राणां शत्रूणां हत्या हननं येषु तेषु संग्रामेषु (सत्पते) हे सत्पुरुषाणां रक्षक (यत्) यदा (कारवे) कृवापा०। उ० १।१। करोतेः-उण्। कर्मकर्त्रे (दश सहस्राणि) असंख्यातानि (वृत्राणि) शत्रुसैन्यानि (अप्रति) अ० २०।१२।३। यथा तथा, प्रातिकूल्यस्य विघ्नस्य राहित्येन (बर्हिष्मते) विज्ञानवते (नि बर्हयः) बर्ह प्राधान्ये हिंसादिषु च-लङ्, अडभावश्छान्दसः। निबर्हयतिर्बलकर्मा-निघ० २।१९। नितरामवधीः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(সৎপতে) হে সৎপুরুষদের রক্ষক! [সেনাপতি] (তে) সেই (মদাঃ) আনন্দ প্রদায়ী বীরগণ, (তানি) সেই (বৃষ্ণ্যা) বীরগণের যোগ্য কর্ম এবং (তে) সেই (সোমাসঃ) ঐশ্বর্যসমূহ (ত্বা) তোমাকে (বৃত্রহত্যেষু) শত্রুদের হননকারী সংগ্রামে (ত্বা) তোমাকে (অমদন্) প্রসন্ন করেছে, (যৎ) যখন (বর্হিষ্মতে) বিজ্ঞানী (কারবে) কর্মকর্তাদের জন্য (দশ সহস্রাণি) দশ সহস্র [অসংখ্য] (বৃত্রাণি) শত্রুদের (অপ্রতি) বিনা বিরোধেই (নি বর্হয়ঃ) তুমি নাশ করেছো ।।৬।।
भावार्थ
ধার্মিক রাজা সজ্জনদের রক্ষার্থে দুষ্টদের নাশ করে আনন্দের সহিত বৈভব বৃদ্ধি করুক ।।৬।।
भाषार्थ
(সৎপতে) হে সৎপতি! (তে) সেই আমাদের শক্তির (মদাঃ) উন্মাদনা, (তানি) সেই (বৃষ্ণ্যা) আমাদের ভক্তিরসবর্ষী কর্ম-সমূহ, তথা (তে) সেই আমাদের (সোমাসঃ) ভক্তিরস (বৃত্রহত্যেষু) আমাদের পাপ-বৃত্র-সমূহের হনন কার্যে (ত্বা) আপনাকে (অমদন্) প্রসন্ন করেছে। (বর্হিষ্মতে) কারণ পাপের মূল দমনে নিয়োজিত (কারবে) স্তুতিকর্ত্তা উপাসকের, (সহস্রাণি) অতি প্রবল (দশ বৃত্রাণি) ১০ পাপ-সমূহকে (অপ্রতি) বিনা বিরোধেই, অর্থাৎ খুব সহজেই (যৎ) যা আপনি (নি বর্হয়ঃ) দমন/ছিন্ন করেছেন।
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