अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 37/ मन्त्र 1
यस्ति॒ग्मशृ॑ङ्गो वृष॒भो न भी॒म एकः॑ कृ॒ष्टीश्च्या॒वय॑ति॒ प्र विश्वाः॑। यः शश्व॑तो॒ अदा॑शुषो॒ गय॑स्य प्रय॒न्तासि॒ सुष्वि॑तराय॒ वेदः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठय: । ति॒ग्मऽशृ॑ङ्ग: । वृ॒ष॒भ: । न । भी॒म: । एक॑: । कृ॒ष्टी: । च्य॒वय॑ति । प्र । विश्वा॑: ॥ य: । शश्व॑त: । अदा॑शुष: । गय॑स्य । प्र॒ऽय॒न्ता । अ॒सि॒ । सुस्वि॑ऽतराय । वेद॑: ॥३७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्तिग्मशृङ्गो वृषभो न भीम एकः कृष्टीश्च्यावयति प्र विश्वाः। यः शश्वतो अदाशुषो गयस्य प्रयन्तासि सुष्वितराय वेदः ॥
स्वर रहित पद पाठय: । तिग्मऽशृङ्ग: । वृषभ: । न । भीम: । एक: । कृष्टी: । च्यवयति । प्र । विश्वा: ॥ य: । शश्वत: । अदाशुष: । गयस्य । प्रऽयन्ता । असि । सुस्विऽतराय । वेद: ॥३७.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(एकः) अकेला [वही] (विश्वा) सब (कृष्टीः) मनुष्य प्रजाओं को (प्र) अच्छे प्रकार (च्यावयति) चलाता है, (यः) जो (तिग्मशृङ्गः न) तीखी किरणोंवाले सूर्य के समान (भीमः) भयङ्कर और (वृषभः) बरसा करनेवाला है। और (यः) जो (शश्वतः) निरन्तर (अदाशुषः) न देनेवाले के (गयस्य) घर का (वेदः) धन (सुष्वितराय) अधिक ऐश्वर्यवाले व्यवहार के लिये (प्रयन्ता) देनेवाला (असि) है ॥१॥
भावार्थ
जैसे सूर्य अपने ताप से जल खींच बरसा करके उपकार करता है, वैसे ही राजा कुदानी वा कंजूसों से धन लेकर विद्या आदि शुभ कर्मों में लगावे ॥१॥
टिप्पणी
यह सूक्त ऋग्वेद में है-७।१९।१-११॥१−(यः) पुरुषः (तिग्मशृङ्गः) तिग्मानि तेजःस्वीनि शृङ्गाणि किरणा यस्य स सूर्यः (वृषभः) वृष्टिकरः (न) इव (भीमः) भयङ्करः (एकः) अद्वितीयः (कृष्टीः) मनुष्यप्रजाः (च्यावयति) चालयति (प्र) प्रकर्षेण (विश्वाः) सर्वाः (यः) (शश्वतः) निरन्तरस्य, सदा वर्तमानस्य (अदाशुषः) अदातुः पुरुषस्य (गयस्य) गृहस्य (प्रयन्ता) नियमयिता। प्रदाता (असि) अस्ति (सुष्वितराय) अ०२०।३।१। अधिकैश्वर्यवते व्यवहाराय (वेदः) धनम्-निघ०२।१०॥
विषय
तिग्मशृंगो वृषभो न भीमः
पदार्थ
१. हे इन्द्र! (य:) = जो आप हैं वे (तिग्मशृंग:) = तीक्ष्ण सींगोंवाले (वृषभः न) = बैल के समान (भीमः) = शत्रुओं के लिए भयंकर हैं। (एक:) = आप अकेले ही (विश्वा:कृष्टी:) = सब शत्रुभूत मनुष्यों को (प्रच्यावयति) = स्थानभ्रष्ट करते हैं। प्रभु को हम हृदय में उपासित करते हैं, प्रभु हमारे शत्रुओं को वहाँ से भगा देते हैं-वहाँ काम-क्रोध आदि का स्थान नहीं रहता। २. हे प्रभो! (य:) = जो आप हैं, वे (अदाशुष:) = अदानशील (शश्वत:) = व्यापारादि के लिए प्लुतगतिवाले-व्यापार में खूब निमग्न पुरुष के (गयस्य) = धन के [Welth] प्रयन्ता-[restrain, stop, suppress] निग्रह करनेवाले (असि) = हैं और (सुष्वितराय) = अतिशयेन यज्ञशील पुरुष के लिए (वेदः) = धन को प्रयन्त (असि) = देनेवाले हैं [offer, give]।
भावार्थ
प्रभु हमारे शत्रुओं का विनाश करते हैं। अदानशील पुरुषों के धन का निग्रह करते हैं और यज्ञशील पुरुषों के लिए धन प्राप्त कराते हैं।
भाषार्थ
(तिग्मशृङ्गः) तीक्ष्ण सीगोंवाले (वृषभः) बैल के (न) सदृश, या तीक्ष्ण किरणोंवाले और वर्षा करने सूर्य के सदृश (यः) जो आप (भीमः) भयप्रद हैं, वे आप (एकः) अकेले ही (विश्वाः) सब (कृष्टीः) प्रजाजनों को (प्रच्यावयति) विचलित कर देते हैं। (यः) आप (शश्वतः) शाश्वत काल से (अदाशुषः) अदानी के (गयस्य) धन से (प्रयन्ता असि) नियन्ता हैं, वे आप (वेदः) अदानी के धन को (सुष्वितराय) इतरों के प्रति दे देते हैं, प्रेरित कर देते हैं।
टिप्पणी
[कृष्टीः=मनुष्यनाम (निघं০ २.३)। गयस्य=धननाम (निघं০ २.१०)। वेदः=धननाम (निघं০ २.१०)। सुष्वितराय=सु+षणु (दाने) इतराय; अथवा सु+षु (प्रेरणे)+इतराय]।
इंग्लिश (4)
Subject
lndra Devata
Meaning
Indra, lord commander of weapons sharp and blazing as rays of light, virile, generous and yet fearsome as a bull, is the one supreme who guides, controls, rules and inspires the world community, and he is the one who always is the supporting power of the house and children of the indigent who cannot afford to pay for education and development. O lord, you are the guide and giver of wealth and knowledge to the man dedicated to the yajnic development of humanity.
Translation
He who is dreadful like a bull of pointed horns rules all the people alone and He is that who gives the benevolent man the wealth of the house belonging to man who is a habitue miser.
Translation
He who is dreadful like a bull of pointed horns rules all the people alone and He is that who gives the benevolent man the wealth of the house belonging to man who is a habitue miser.
Translation
The king who is terrific like the rain-pouring Sun with sharp rays like the horns, and who alone subdues all the subjects and ever givers of the wealth of the niggard to the liberal-minded person, offering oblation generously.
Footnote
(1-11) cf.Rig,7,19,1-11
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह सूक्त ऋग्वेद में है-७।१९।१-११॥१−(यः) पुरुषः (तिग्मशृङ्गः) तिग्मानि तेजःस्वीनि शृङ्गाणि किरणा यस्य स सूर्यः (वृषभः) वृष्टिकरः (न) इव (भीमः) भयङ्करः (एकः) अद्वितीयः (कृष्टीः) मनुष्यप्रजाः (च्यावयति) चालयति (प्र) प्रकर्षेण (विश्वाः) सर्वाः (यः) (शश्वतः) निरन्तरस्य, सदा वर्तमानस्य (अदाशुषः) अदातुः पुरुषस्य (गयस्य) गृहस्य (प्रयन्ता) नियमयिता। प्रदाता (असि) अस्ति (सुष्वितराय) अ०२०।३।१। अधिकैश्वर्यवते व्यवहाराय (वेदः) धनम्-निघ०२।१०॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(একঃ) একাকী [তিনিই] (বিশ্বা) সকল (কৃষ্টীঃ) মনুষ্য প্রজাদের (প্র) উত্তমরূপে (চ্যাবয়তি) পরিচালনা করেন, (যঃ) যিনি (তিগ্মশৃঙ্গঃ ন)তিক্ষ্ম কিরণযুক্ত সূর্যের ন্যায় (ভীমঃ) ভয়ঙ্কর ও (বৃষভঃ) বর্ষণকারী। এবং (যঃ) যিনি (শশ্বতঃ) নিরন্তর (অদাশুষঃ) অদানীর (গয়স্য) ঘরের (বেদঃ) ধন (সুষ্বিতরায়) অধিক ঐশ্বর্যযুক্ত ব্যবহারের জন্য (প্রয়ন্তা) দানকারী (অসি) হন ॥১॥
भावार्थ
যেমন সূর্য নিজের তাপ দ্বারা জল শোষণ করে বর্ষণ করে উপকার করে, তেমনই রাজা কুদানী বা কৃপণের থেকে ধন নিয়ে বিদ্যাদি শুভকর্মে প্রয়োগ করুক। এই সূক্ত ঋগ্বেদে আছে-৭।১৯।১-১১।
भाषार्थ
(তিগ্মশৃঙ্গঃ) তীক্ষ্ণ শৃঙ্গযুক্ত (বৃষভঃ) বলদের (ন) সদৃশ, বা তীক্ষ্ণ কিরণযুক্ত এবং বর্ষণকারী সূর্যের সদৃশ (যঃ) যে আপনি (ভীমঃ) ভয়প্রদ, সেই আপনি (একঃ) একাই (বিশ্বাঃ) সকল (কৃষ্টীঃ) প্রজাদের (প্রচ্যাবয়তি) বিচলিত করেন। (যঃ) আপনি (শশ্বতঃ) শাশ্বত কাল থেকে (অদাশুষঃ) অদানীর (গয়স্য) ধন দ্বারা (প্রয়ন্তা অসি) নিয়ন্তা, সেই আপনি (বেদঃ) অদানীর ধন (সুষ্বিতরায়) ইতরদের প্রতি প্রদান করেন, প্রেরিত করেন।
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