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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 37 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 37/ मन्त्र 7
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-३७
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    मा ते॑ अ॒स्यां स॑हसाव॒न्परि॑ष्टाव॒घाय॑ भूम हरिवः परा॒दै। त्राय॑स्व नोऽवृ॒केभि॒र्वरू॑थै॒स्तव॑ प्रि॒यासः॑ सू॒रिषु॑ स्याम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । ते॒ । अ॒स्याम् । स॒ह॒सा॒ऽव॒न् । परि॑ष्टौ । अ॒घाय॑ । भू॒म॒ । ह॒रि॒ऽव॒: । प॒रा॒ऽदौ ॥ त्राय॑स्‍व । न॒: । अ॒वृ॒केभि॑: । वरू॑थै: । तव॑ । प्रि॒यास॑: । सू॒रिषु॑ । स्या॒म॒ ॥३७.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा ते अस्यां सहसावन्परिष्टावघाय भूम हरिवः परादै। त्रायस्व नोऽवृकेभिर्वरूथैस्तव प्रियासः सूरिषु स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । ते । अस्याम् । सहसाऽवन् । परिष्टौ । अघाय । भूम । हरिऽव: । पराऽदौ ॥ त्रायस्‍व । न: । अवृकेभि: । वरूथै: । तव । प्रियास: । सूरिषु । स्याम ॥३७.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 37; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (सहसावन्) हे बहुत बलवाले ! (हरिवः) हे प्रशंसनीय मनुष्योंवाले ! [राजन्] (ते) तेरी (अस्याम्) इस (परिष्टौ) सब ओर से इष्ट सिद्धि में (परादै) छोड़ने योग्य (अघाय) पाप करने के लिये (मा भूम) हम न होवें। (नः) हमको (अवृकेभिः) चोर न होनेवाले (वरूथैः) श्रेष्ठों के द्वारा (त्रायस्व) बचा, (सूरिषु) प्रेरक नेताओं के बीच हम लोग (ते) तेरे (प्रियासः) प्यारे [प्रसन्न करनेवाले] (स्याम) होवें ॥७॥

    भावार्थ

    जैसे प्रजागण धर्मात्मा राजा की उन्नति के लिये प्रयत्न करें, वैसे ही वह भी उत्तम-उत्तम विद्याओं और बड़े-बड़े अधिकारों के देने से प्रजा को प्रसन्न करें ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(मा) निषेधे (ते) तव (अस्याम्) उपस्थितायाम् (सहसावन्) मध्ये तृतीयाविभक्तिश्छान्दसी। हे सहस्वन्। बहुबलयुक्त (परिष्टौ) शकन्ध्वादित्वात् पररूपम्। परित इष्टसिद्धौ (अघाय) पापकरणाय (भूम) भवेम (हरिवः) अ०२०।३१।। प्रशस्तमनुष्ययुक्त (परादै) प्रयै रोहिष्यै अव्यथिष्यै। पा०३।४।१०। परा+ददातेः-कै प्रत्ययस्तुमर्थे। परादानाय त्यागाय। त्यक्तव्याय-इति दयानन्दभाष्ये (त्रायस्व) पाहि (नः) अस्मान् (अवृकेभिः) अचोरैः (वरूथैः) वरैः। श्रेष्ठैः (तव) (प्रियासः) प्रीताः (सूरिषु) प्रेरकेषु नेतृषु (स्याम) भवेम ॥

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    विषय

    मा अघाय, मा परादै

    पदार्थ

    १. हे (सहसावन्) = शत्रुओं को कुचलनेवाले बल से सम्पन्न, (हरिवः) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वों को प्रास करानेवाले प्रभो। हम (ते) = आपके (अस्याम्) = इस (परिष्टौ) = अन्वेषणा में [In search of thee] (अघाय) = पाप के लिए (माभूम) = मत हों। (परादै) = परादान के लिए-आपसे त्यागे जाने के लिए न हों। आपकी खोज में लगे हुए हम न तो पापों में फंसे और न ही आप से परित्यक्त हों। २. आप (नः) = हमें (अवकेभि:) = बाधा से शून्य [अबाधै: सा०] (वरूथै:) = रक्षणों द्वारा (त्रायस्व) = रक्षित कीजिए। हम (तव प्रियास:) = आपके प्रिय हों और (सूरिषु स्याम) = ज्ञानियों में गिनतीवाले हों-ज्ञान प्रधान जीवन बिताएँ।

    भावार्थ

    प्रभु की खोज में लगे हुए हम प्रभु से परित्यक्त न हों-पाप में न फंसे। प्रभु द्वारा रक्षित होकर कर्तव्य-कर्मों में लगे हुए हम प्रभु के प्रिय बनें-ज्ञानप्रधान जीवनवाले बनें।

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    भाषार्थ

    (सहसावन्) हे पापों का पराभव करनेवाले! (हरिवः) हे प्रत्याहार सम्पन्न इन्द्रियाश्वों के स्वामी! (ते) आपकी (अस्याम्) इस (परिष्टौ) परिस्तुति में, (अघाय) पापों के वश में (मा भूम) नहीं हम होने पाते। (मा परादै) कृपया हमें पापरूपी शत्रुओं के वशीभूत न होने दीजिए, या इस सम्बन्ध में आप हमारा परित्याग न कीजिए; अपितु (अवृकेभिः) हिंसा से बचानेवाली (वरूथैः) निज कवचों द्वारा (नः) हमारा (त्रायस्व) परित्राण कीजिए, ताकि (सूरिषु) आपके स्तोतृवर्ग में हम स्तोता भी (तव) आपके (प्रियासः स्याम) प्रिय बने रहें।

    टिप्पणी

    [परिष्टौ=परि+ष्टु (स्तुतौ)। वरुथैः=वरूथ=An armour, a coat a moil (आप्टे), अर्थात् कवच, जो कि शरीर का आवरण करती है। वरूथ को वेद में वर्म भी कहा है। यथा—“प्रजापतेरावृतो ब्रह्मणा वर्मणाहम्” तथा “परीवृतो ब्रह्मणा वर्मणाहम्” (अथर्व০ १७.१.२७, २८)। इन मन्त्रों में ब्रह्म अर्थात् परमेश्वर और मन्त्रों को वर्म अर्थात् कवच कहा है। ब्रह्म अर्थात् परमेश्वर और मन्त्र उपासक की कवच बनकर, उसकी रक्षाकरते हैं। अवृकेभिः ; परादैः=वृक आदाने (भ्वादि), वृक, आदान करता है, भेड़ बकरी का। परादैः=पर (शत्रु)+आदा। अर्थात् पापरूपी शत्रु हमारा आदान न करें। हम उनके वश में न होने पाएँ। इस प्रकार “वृक और परादै”,। इन दोनों शब्दों में “आदान” अर्थ समान है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    lndra Devata

    Meaning

    O lord of peace, patience and justice, ruler of dynamic powers and people, in this social order of your governance, let us not be exposed to a state of throw away sin and crime. Save us by virtue of the company of non-violent, best and wisest protective people. Let us abide among your dearest favourites and loved ones, among the brave, the wise and the virtuous.

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    Translation

    O King, possessor of spirit, you have the power of men. Let us not come as offenders in the presence of yours by braking command comitting sin. You protect us through the groups of man who are not wicked and may we be your favourites among the learned men:

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    Translation

    O King, possessor of spirit, you have the power of men. Let us not come as offenders in the presence of yours by braking command comitting sin. You protect us through the groups of man who are not wicked and may we be your favorites among the learned men.

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    Translation

    O Mighty Lord of all powerful and swift-moving natural forces, let us not go in for sin, which is to be shun with care, in this sacrificial act to serve Thee. Protect us through honest and non-violent forces. May be dear to Thee among the learned and the wise.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(मा) निषेधे (ते) तव (अस्याम्) उपस्थितायाम् (सहसावन्) मध्ये तृतीयाविभक्तिश्छान्दसी। हे सहस्वन्। बहुबलयुक्त (परिष्टौ) शकन्ध्वादित्वात् पररूपम्। परित इष्टसिद्धौ (अघाय) पापकरणाय (भूम) भवेम (हरिवः) अ०२०।३१।। प्रशस्तमनुष्ययुक्त (परादै) प्रयै रोहिष्यै अव्यथिष्यै। पा०३।४।१०। परा+ददातेः-कै प्रत्ययस्तुमर्थे। परादानाय त्यागाय। त्यक्तव्याय-इति दयानन्दभाष्ये (त्रायस्व) पाहि (नः) अस्मान् (अवृकेभिः) अचोरैः (वरूथैः) वरैः। श्रेष्ठैः (तव) (प्रियासः) प्रीताः (सूरिषु) प्रेरकेषु नेतृषु (स्याम) भवेम ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (সহসাবন্) হে বলবান ! (হরিবঃ) হে প্রশংসনীয় মনুষ্যযুক্ত ! [রাজন্] (তে) তোমার (অস্যাম্) এই (পরিষ্টৌ) সকল দিক হতে ইষ্ট সিদ্ধিতে (পরাদৈ) ত্যাগযোগ্য (অঘায়) পাপ করার জন্য (মা ভূম) আমরা হব না। (নঃ) আমাদের (অবৃকেভিঃ) চোর না হওয়া (বরূথৈঃ) শ্রেষ্ঠগণ দ্বারা (ত্রায়স্ব) রক্ষা করো, (সূরিষু) প্রেরক নেতাদের মাঝে আমরা (তে) তোমার (প্রিয়াসঃ) প্রিয় [প্রসন্নকারী] (স্যাম) হব/ হই॥৭॥

    भावार्थ

    যেমন প্রজাগণ ধর্মাত্মা রাজার উন্নতির জন্য প্রচেষ্টা করে, তেমনই তিনিও উত্তম-উত্তম বিদ্যা এবং বড় অধিকার দিয়ে প্রজাদের প্রসন্ন করেন ॥৭॥

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    भाषार्थ

    (সহসাবন্) হে পাপ-সমূহ পরাভবকারী! (হরিবঃ) হে প্রত্যাহার সম্পন্ন ইন্দ্রিয়াশ্বের স্বামী! (তে) আপনার (অস্যাম্) এই (পরিষ্টৌ) পরিস্তুতিতে, (অঘায়) পাপের বশে (মা ভূম) না আমরা হতে পারি। (মা পরাদৈ) কৃপাপূর্বক আমাদের পাপরূপী শত্রুদের বশীভূত হতে দেবেন না, বা এবিষয়ে আপনি আমাদের পরিত্যাগ করবেন না; অপিতু (অবৃকেভিঃ) হিংসা থেকে উদ্ধারকারী (বরূথৈঃ) নিজ কবচ দ্বারা (নঃ) আমাদের (ত্রায়স্ব) পরিত্রাণ করুন, যাতে (সূরিষু) আপনার স্তোতৃবর্গে আমরা [স্তোতাগণও] (তব) আপনার (প্রিয়াসঃ স্যাম) প্রিয় হয়ে থাকি।

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