अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 37/ मन्त्र 9
स॒द्यश्चि॒न्नु ते॑ मघवन्न॒भिष्टौ॒ नरः॑ शंसन्त्युक्थ॒शास॑ उ॒क्था। ये ते॒ हवे॑भि॒र्वि प॒णीँरदा॑शन्न॒स्मान्वृ॑णीष्व॒ युज्या॑य॒ तस्मै॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस॒द्य: । चि॒त् । नु । ते॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । अ॒भिष्टौ॑ । पर॑: । शं॒स॒न्ति॒ । उ॒क्थ॒ऽशस॑: । उ॒क्था ॥ ये । ते॒ । हवे॑भि: । वि । प॒णीन् । अदा॑शन् । अ॒स्मात् । वृ॒णी॒ष्व॒ । युज्या॑य । तस्मै॑ ॥३७.९॥
स्वर रहित मन्त्र
सद्यश्चिन्नु ते मघवन्नभिष्टौ नरः शंसन्त्युक्थशास उक्था। ये ते हवेभिर्वि पणीँरदाशन्नस्मान्वृणीष्व युज्याय तस्मै ॥
स्वर रहित पद पाठसद्य: । चित् । नु । ते । मघऽवन् । अभिष्टौ । पर: । शंसन्ति । उक्थऽशस: । उक्था ॥ ये । ते । हवेभि: । वि । पणीन् । अदाशन् । अस्मात् । वृणीष्व । युज्याय । तस्मै ॥३७.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(मघवन्) हे बड़े पूजनीय ! (ये) जो (उक्थशासः) प्रशंसनीय अर्थों का उपदेश करनेवाले (नरः) नर [नेता लोग] (ते) तेरी (अभिष्टौ) सब प्रकार इष्ट सिद्धि में (सद्यः) शीघ्र (चित्) ही (नु) निश्चय करके (उक्था) कहने योग्य वचनों को (शंसन्ति) कहते हैं। और (ते) तेरे (हवेभिः) बुलावों से (पणीन्) व्यवहारों का (वि) विविध प्रकार (अदाशन्) दान करते हैं, [उन] (अस्मान्) हमको (तस्मै) उस (युज्याय) योग्य व्यवहार के लिये (वृणीष्व) तू स्वीकार कर ॥९॥
भावार्थ
जो मनुष्य राज्य की भलाई का उपदेश करें और अवसर होने पर उत्तम उपाय करें, राजा उनका सदा सन्मान करें ॥९॥
टिप्पणी
९−(सद्यः) शीघ्रम् (चित्) अपि (नु) निश्चयेन (ते) तव (मघवन्) हे महापूज्य (अभिष्टौ) अभीष्टसिद्धौ (नरः) नेतारः (शंसन्ति) कथयन्ति (उक्थशासः) उक्थानां प्रशंसनीयार्थानां वक्तारः (उक्था) कथनीयानि वचनानि (ये) (ते) तव (हवेभिः) आह्वानैः (वि) विविधम् (पणीन्) व्यवहारान् (अदाशन्) लडर्थे लङ्। ददति (अस्मान्) (तान्) तथाविधान् (वृणीष्व) स्वीकुरु (युज्याय) युजिर् योगे-क्यप्। योग्यव्यवहाराय (तस्मै) ॥
विषय
उक्थशास:
पदार्थ
१. हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो! (ते अभिष्टौ) = आपकी अभ्येषणा [प्रार्थना] में (उक्थशास:) = स्तोत्रों का शंसन करनेवाले (नरः) = स्तोता लोग (सद्यः चित्) = शीघ्र ही (नु) = निश्चय से (उक्था) = स्तोत्रों को (शंसन्ति) = उच्चरित करते हैं। २. (ये) = जो (ते हवेभि:) = आपकी पुकारों से-आराधनाओं से (पणीन्) = वणिक् वृत्तिवालों को (वि अदाशन) = दानवृत्तिवाला बना देते हैं, उन (अस्मान्) = हमें (तस्मै युज्याय) = उस अपनी मित्रता के लिए (वृणीष्व) = वरिये। हम आपकी मित्रता में चलें। आपकी आराधना करते हुए हम कृपणों को भी दानशील बनाने का यत्न करें।
भावार्थ
प्रभु की आराधना में हम स्तोत्रों का उच्चारण करें। पवित्र जीवनवाले बनते हुए हम कृपणों को भी दानशील बना पाएँ।
भाषार्थ
(मघवन्) हे धनपते! सांसारिक और आध्यात्मिक धन से स्वामी! (उक्थशासः) सूक्तों द्वारा स्तुतियाँ करनेवाले (नरः) उपासक नेता लोग, (सद्यः चित् नू) शीघ्र ही अर्थात् अल्पायु में ही, (ते अभिष्टौ) आपकी स्तुतियों के निमित्त, (उक्था=उक्थानि) वैदिक सूक्तों को (शंसन्ति) गायन करने लगते हैं। (ये ते) जो आपके हम उपासक, (हवेभिः) आह्वानपूर्वक, (पणीन्) स्तुतियाँ (वि अदाशन्) आपके प्रति समर्पित कर रहे हैं; उन (अस्मान्) हम उपासकों को, आप (वृणीष्व) वर लीजिए, स्वीकार कीजिए। ताकि (तस्मै) उस प्रसिद्ध (युज्याय) सायुज्य-मुक्ति को हम प्राप्त कर सकें।
टिप्पणी
[पणीन्=पण् स्तुतौ। यथा—पणते, पणस्यति, पणायति, पणायते=अर्चतिकर्मा (निघं০ ३.१४)। अदाशन्=दाशृ दाने। वृणीष्व=यमेवैष वृणुते तेन लभ्यः (कठ০ २.२३) अर्थात् परमेश्वर जिसे वर लेता है, वह उपासक परमेश्वर को पा लेता है। युज्याय=सायुज्याय, अर्थात् योगविधि द्वारा परमेश्वर के साथ योग अर्थात् सम्बन्ध प्राप्त कर लेना। यथा—“आत्मनात्मानमभि संविवेश” (यजुः০ ३२.११) ; अर्थात् जीवात्मा निज-आत्मस्वरूप से परमात्मा में प्रवेश पा जाता है। इस सायुज्य-मुक्ति का क्रम निम्नलिखित है। यथा—“तदपश्यत् तदभवत्, तदासीत्” (यजुः০ ३२.१२); अर्थात् योगी पहले परमात्मा का दर्शन पाता है, फिर उसके दर्शन में तद्रूप हो जाता है, तल्लीन हो जाता है, तदनन्तर उसमें चिरस्थित हो जाता है। आसीत्=सम्भवतः आसीत (आस् उपवेशने)। यह चिरस्थिति ही सायुज्य-मुक्ति है।
इंग्लिश (4)
Subject
lndra Devata
Meaning
O lord of light, honour and excellence of generosity, select us for dedication to that holy work which, under the protection of your love and goodwill, leading scholars and interpreters of the Divine Word relentlessly pursue, reciting and teaching the Vedic songs of divinity and, by recitation and exhortation, converting even hard headed businessmen to generous givers of charity in the service of Divinity.
Translation
O master of wealth, you elect for the good dealing those of us who are the pronouncers of Vedic verses and in your praise shout the songs of praise and on your calls do the various dealings of business.
Translation
O master of wealth, you elect for the good dealing those of us who are the pronouncers of Vedic verses and in your praise shout the songs of praise and on your calls do the various dealings of business.
Translation
O Bounteous Lord, the leading persons, skilled in preaching Vedic knowledge, ever preach the Vedic truths under your guidance and direction. They set at naught the efforts of the niggardly covetous people at Thy calls. Please accept us too for the same good sacrificial act.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(सद्यः) शीघ्रम् (चित्) अपि (नु) निश्चयेन (ते) तव (मघवन्) हे महापूज्य (अभिष्टौ) अभीष्टसिद्धौ (नरः) नेतारः (शंसन्ति) कथयन्ति (उक्थशासः) उक्थानां प्रशंसनीयार्थानां वक्तारः (उक्था) कथनीयानि वचनानि (ये) (ते) तव (हवेभिः) आह्वानैः (वि) विविधम् (पणीन्) व्यवहारान् (अदाशन्) लडर्थे लङ्। ददति (अस्मान्) (तान्) तथाविधान् (वृणीष्व) स्वीकुरु (युज्याय) युजिर् योगे-क्यप्। योग्यव्यवहाराय (तस्मै) ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(মঘবন্) হে মহা পূজনীয়! (যে) যে (উক্থশাসঃ) প্রশংসনীয় অর্থের উপদেষ্টা (নরঃ) নর [নেতাগন] (তে) তোমার (অভিষ্টৌ) সকল প্রকার ইষ্টসিদ্ধিতে (সদ্যঃ) শীঘ্র (চিৎ) ই (নু) নিশ্চিতরূপে (উক্থা) কথন যোগ্য বচনসমূহ (শংসন্তি) বলে। এবং (তে) তোমার (হবেভিঃ) আহ্বানে (পণীন্) ব্যবহারসমূহের (বি) বিবিধ প্রকারে (অদাশন্) দান করে, (অস্মান্) আমাদের (তস্মৈ) সেই (যুজ্যায়) যোগ্য ব্যবহারের জন্য (বৃণীষ্ব) তুমি স্বীকার করো॥৯॥
भावार्थ
যে মনুষ্য রাজ্যের হিতের উপদেশ দেন এবং অবসরে উত্তম ব্যবস্থা করেন, রাজা তাঁদের সদা সম্মাণ করবেন ॥৯॥
भाषार्थ
(মঘবন্) হে ধনপতি! সাংসারিক এবং আধ্যাত্মিক ধনসম্পদের স্বামী! (উক্থশাসঃ) সূক্ত-সমূহ দ্বারা স্তুতিকারী (নরঃ) উপাসক নেতাগণ, (সদ্যঃ চিৎ নূ) শীঘ্রই অর্থাৎ অল্পায়ুতেই, (তে অভিষ্টৌ) আপনার স্তুতির নিমিত্ত/জন্য, (উক্থা=উক্থানি) বৈদিক সূক্ত-সমূহ (শংসন্তি) গান করে। (যে তে) যে আমরা আপনার উপাসক, (হবেভিঃ) আহ্বানপূর্বক, (পণীন্) স্তুতি-সমূহ (বি অদাশন্) আপনার প্রতি সমর্পিত করছি; সেই (অস্মান্) আমাদের [উপাসকদের], আপনি (বৃণীষ্ব) বরণ করুন, স্বীকার করুন। যাতে (তস্মৈ) সেই প্রসিদ্ধ (যুজ্যায়) সায়ুজ্য-মুক্তি আমরা প্রাপ্ত করতে পারি।
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