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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 2
    ऋषिः - इरिम्बिठिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-५
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    तु॑वि॒ग्रीवो॑ व॒पोद॑रः सुबा॒हुरन्ध॑सो॒ सदे॑। इन्द्रो॑ वृ॒त्राणि॑ जिघ्नते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तु॒वि॒ऽग्रीव॑: । व॒पाऽउ॑दर: । सु॒ऽबा॒हु:। अन्‍ध॑स: । मदे॑ । इन्द्र॑: । वृ॒त्राणि॑ । जि॒घ्न॒ते॒ ॥५.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तुविग्रीवो वपोदरः सुबाहुरन्धसो सदे। इन्द्रो वृत्राणि जिघ्नते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तुविऽग्रीव: । वपाऽउदर: । सुऽबाहु:। अन्‍धस: । मदे । इन्द्र: । वृत्राणि । जिघ्नते ॥५.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सोम रस के सेवन का उपदेश।

    पदार्थ

    (तुविग्रीवः) दृढ़ गलेवाला, (वपोदरः) चर्बी से युक्त पेटवाला, (सुबाहुः) बलवान् भुजाओंवाला (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवाला पुरुष] (अन्धसः) अन्न रस के (मदे) आनन्द में (वृत्राणि) वैरियों को (जिघ्नते) मारे ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य उत्तम ओषधियों के यथावत् सेवन से पुष्ट और बलवान् होकर शत्रुओं का नाश करे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(तुविग्रीवः) दृढकण्ठः (वपोदरः) वपा वसा मेद उदरे यस्य सः (सुबाहुः) प्रभूतबलभुजः (अन्धसः) अन्नरसस्य (मदे) हर्षे (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (वृत्राणि) शत्रून् (जिघ्नते) हन्तेर्लेट्। लेटोऽडाटौ। पा० ३।४।९४। अडागमः, शपः श्लुः। बहुलं छन्दसि। पा० ७।४।७८। अभ्यासस्य इत्त्वम्। हन्यात्। मारयेत् ॥

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    विषय

    तुविग्रीवः सुबाहुः

    पदार्थ

    १. (अन्धसः) = शरीर में सुरक्षित सोम के (मदे) = उल्लास में (इन्द्रः) = यह जितेन्द्रिय पुरुष (वृत्राणि) = ज्ञान की आवरणभूत वासनाओं को (जिघ्नते) = विनष्ट करता है। वासनाओं के विनाश के द्वारा यह अपने ज्ञान को दीस कर पाता है। २. इस सोम के मद में ही यह (तुविग्रीव:) = शक्तिशाली गरदनवाला बनता है-निर्बलता से इसकी गरदन झुक नहीं जाती। (वपोदरः) = यह सोम को अपने उदर में ही बोनेवाला होता है। जैसे बीज भूमि में बोया जाता है-वह भूमि में सुरक्षित होता है, इसी प्रकार सोम इसके उदर में सुरक्षित होता है। (सुबाहुः) = सुरक्षित सोम से यह उत्तम भुजाओंवाला होता है-इसकी भुजाएँ शक्तिशाली बनती हैं।

    भावार्थ

    सोम के सुरक्षित होने पर वपोदर बनने पर यह शक्तिशाली गरदनवाला और सबल भुजाओंवाला होता है। यह सब वासनाओं को विनष्ट करनेवाला होता है।

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    भाषार्थ

    (तुविग्रीवः) जैसे महाग्रीव, (वपोदरः) स्थूलकाय, (सुबाहुः) शस्त्रास्त्र चलाने में सशक्त बाहुओंवाला (इन्द्रः) सेनापति, (अन्धसो मदे) शक्तिप्रद अन्न की मस्ती में (वृत्राणि) राष्ट्र पर घेरा डाले शत्रुओं का (जिघ्नते) विहनन करता है, वैसे (इन्द्रः) परमेश्वर (अन्धसः मदे) भक्तिरस की प्रसन्नता में (वृत्राणि) उपासकों को घेरे हुए कामादि शत्रुओं का (जिघ्नते) विनाश करता है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    In the ecstasy and exhilaration of soma, Indra, lord mighty of head and arms joined at the neck and vast of cosmic belly space, destroys the dark forces of life.

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    Translation

    In the rapture of Soma-preparation Indra, the ruler who is bulky, strong-necked and atout-armed dispels away all the foes.

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    Translation

    In the rapture of Soma-preparation Indra, the ruler who is bulky, strong-necked and atout-armed dispels away all the foes.

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    Translation

    The Almighty Father, with His multifarious powers, the Creative Energy and Powerful -gripping arms destroys all evils in the very rupture of the Soma.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(तुविग्रीवः) दृढकण्ठः (वपोदरः) वपा वसा मेद उदरे यस्य सः (सुबाहुः) प्रभूतबलभुजः (अन्धसः) अन्नरसस्य (मदे) हर्षे (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (वृत्राणि) शत्रून् (जिघ्नते) हन्तेर्लेट्। लेटोऽडाटौ। पा० ३।४।९४। अडागमः, शपः श्लुः। बहुलं छन्दसि। पा० ७।४।७८। अभ्यासस्य इत्त्वम्। हन्यात्। मारयेत् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    সোমসেবনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (তুবিগ্রীবঃ) দৃঢ় কণ্ঠ, (বপোদরঃ) চর্বীযুক্ত উদরসম্পন্ন, (সুবাহুঃ) বলবান বাহুসম্পন্ন (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যসম্পন্ন পুরুষ] (অন্ধসঃ) অন্ন রসের (মদে) আনন্দে (বৃত্রাণি) শত্রুদেরকে (জিঘ্নতে) বিনাশ করে/করুক॥২॥

    भावार्थ

    মনুষ্য উত্তম ঔষধিসমূহের সেবন করে পুষ্ট এবং বলবান হয়ে শত্রুদের বিনাশ করুক ॥২॥

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    भाषार्थ

    (তুবিগ্রীবঃ) যেমন মহাগ্রীব, (বপোদরঃ) স্থূলকায়, (সুবাহুঃ) শস্ত্রাস্ত্র চালনে সশক্ত বাহুযুক্ত (ইন্দ্রঃ) সেনাপতি, (অন্ধসো মদে) শক্তিপ্রদ অন্নের আনন্দে (বৃত্রাণি) রাষ্ট্র পরিবেষ্টনকারী/ঘিরে থাকা শত্রুদের (জিঘ্নতে) হনন করে, তেমনই (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর (অন্ধসঃ মদে) ভক্তিরসের প্রসন্নতায় (বৃত্রাণি) উপাসকদের ঘিরে থাকা কামাদি শত্রুদের (জিঘ্নতে) বিনাশ করে।

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