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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 4
    ऋषिः - इरिम्बिठिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-५
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    दी॒र्घस्ते॑ अस्त्वङ्कु॒शो येना॒ वसु॑ प्र॒यच्छ॑सि। यज॑मानाय सुन्व॒ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दी॒र्घ: । ते॒ । अ॒स्तु॒ । अ॒ङ्कु॒श: । येन॑ । वसु॑ । प्र॒ऽयच्छ॑स‍ि । यज॑मानाय । सु॒न्व॒ते ॥५.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दीर्घस्ते अस्त्वङ्कुशो येना वसु प्रयच्छसि। यजमानाय सुन्वते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दीर्घ: । ते । अस्तु । अङ्कुश: । येन । वसु । प्रऽयच्छस‍ि । यजमानाय । सुन्वते ॥५.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 5; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सोम रस के सेवन का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे शूर !] (ते) तेरा (अङ्कुशः) अङ्कुश [दण्डसाधन] (दीर्घः) लम्बा (अस्तु) होवे, (येन) जिसके कारण से (सुन्वते) तत्त्व रस निचोड़नेवाले (यजमानाय) यजमान [दाता पुरुष] को (वसु) धन (प्रयच्छसि) तू देता है ॥४॥

    भावार्थ

    राजा दुष्टों के दण्ड देने में निष्पक्ष और प्रचण्ड होकर सज्जनों का मान बढ़ावे ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(दीर्घः) आयतः। विस्तृतः (ते) तव (अस्तु) (अङ्कुशः) वक्राग्रो लौहास्त्रभेदः। दण्डसाधनम् (येन) कारणेन (वसु) धनम् (प्रयच्छसि) ददासि (यजमानाय) दानिने पुरुषाय (सुन्वते) तत्त्वरसं निष्पादयते ॥

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    विषय

    प्रभु का दीर्घ अंकुश

    पदार्थ

    १. हे प्रभो! (ते अंकुश:) = आपका नियमन [restraint, check] (दीर्घ: अस्तु) = विशाल हो। हम आपकी प्रेरणा से नियमित जीवनवाले होकर ही जीवन को बिताएँ। (येन) = जिस नियमन के द्वारा आप (वसु) = सब वसुओं को-निवास के लिए आवश्यक तत्वों को (प्रयच्छसि) = हमारे लिए देते हैं। २. (यजमानाय) = यज्ञशील पुरुष के लिए और सुन्वते अपने शरीर में सोम का अभिषव करनेवाले पुरुष के लिए आप वसुओं को प्राप्त कराते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु के द्वारा नियमन में चलते हुए हम यज्ञशील सोम का रक्षण करनेवाले बनें। यही वसुओं की प्राप्ति का मार्ग है।

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! (ते) आपका (अंकुशः) न्यायव्यवस्थारूपी अंकुश (दीर्घः अस्तु) ब्रह्माण्डव्यापी तथा त्रिकालव्यापी है, (येन) जिस न्यायव्यवस्था द्वारा आप (सुन्वते) भक्तिरसवाले (यजमानाय) उपासनायाजी को (वसु) शक्तियाँ और विभूतियाँ आदि सम्पत्तियाँ (प्र यच्छति) प्रदान करते हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    Let your arms of law and order be long and far reaching by which you protect and provide peace, prosperity and security for the self-sacrificing performer of yajna who creates soma for the common good.

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    Translation

    O mighty king, very broad is your controlling power by which you bestow wealth upon the Yajmana, performing Yajna.

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    Translation

    O mighty king, very broad is your controlling power by which you bestow wealth upon the Yajmana, performing Yajna.

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    Translation

    Long be Thy goading power, by which Thou grantest riches and wealth to the creative sacrificer.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(दीर्घः) आयतः। विस्तृतः (ते) तव (अस्तु) (अङ्कुशः) वक्राग्रो लौहास्त्रभेदः। दण्डसाधनम् (येन) कारणेन (वसु) धनम् (प्रयच्छसि) ददासि (यजमानाय) दानिने पुरुषाय (सुन्वते) तत्त्वरसं निष्पादयते ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    সোমসেবনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে পরাক্রমশালী !] (তে) তোমার (অঙ্কুশঃ) অঙ্কুশ [দণ্ডসাধন] (দীর্ঘঃ) দীর্ঘ (অস্তু) হোক, (যেন) যার কারনে (সুন্বতে) তত্ত্ব রস নিষ্পাদনকারী (যজমানায়) যজমান [দাতা পুরুষ] কে (বসু) ধন (প্রয়চ্ছসি) তুমি দান করো ॥৪।।

    भावार्थ

    রাজা অপরাধীকে শাস্তি দেওয়ার ক্ষেত্রে পক্ষপাতরহিত এবং তেজস্বী হয়ে সজ্জনদের সম্মান বৃদ্ধি করবে/করুক।

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    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর! (তে) আপনার (অঙ্কুশঃ) ন্যায়ব্যবস্থারূপী অঙ্কুশ (দীর্ঘঃ অস্তু) ব্রহ্মাণ্ডব্যাপী তথা ত্রিকালব্যাপী, (যেন) যে ন্যায়ব্যবস্থা দ্বারা আপনি (সুন্বতে) ভক্তিরসযুক্ত (যজমানায়) যজমানকে (বসু) শক্তি এবং বিভূতি আদি সম্পত্তি (প্র যচ্ছতি) প্রদান করেন।

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