अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 51/ मन्त्र 4
श॒तानी॑का हे॒तयो॑ अस्य दु॒ष्टरा॒ इन्द्र॑स्य स॒मिषो॑ म॒हीः। गि॒रिर्न भु॒ज्मा म॒घव॑त्सु॑ पिन्वते॒ यदीं॑ सु॒ता अम॑न्दिषुः ॥
स्वर सहित पद पाठश॒तऽअ॑नीका: । हे॒तय॑: । अ॒स्य॒ । दु॒स्तरा॑ । इन्द्र॑स्य । स॒म्ऽइष॑: । म॒ही: ॥ गि॒रि: । न । भु॒ज्मा । म॒घव॑त्ऽसु । पि॒न्व॒ते॒ । यत् । ई॒म् । सु॒ता: । अम॑न्दिषु: ॥५१.४॥
स्वर रहित मन्त्र
शतानीका हेतयो अस्य दुष्टरा इन्द्रस्य समिषो महीः। गिरिर्न भुज्मा मघवत्सु पिन्वते यदीं सुता अमन्दिषुः ॥
स्वर रहित पद पाठशतऽअनीका: । हेतय: । अस्य । दुस्तरा । इन्द्रस्य । सम्ऽइष: । मही: ॥ गिरि: । न । भुज्मा । मघवत्ऽसु । पिन्वते । यत् । ईम् । सुता: । अमन्दिषु: ॥५१.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमेश्वर की उपासना का उपदेश।
पदार्थ
(अस्य) इस (इन्द्रस्य) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] की (महीः) पूजनीय (समिषः) यथावत् इच्छाएँ (शतानीकाः) सैकड़ों सेनादलों में वर्तमान (हेतयः) बाणों के समान (दुष्टराः) दुस्तर [अजेय] हैं। (गिरिः न) मेघ के समान, वह [परमात्मा] (भुज्मा) भोग्य पदार्थों को (मघवत्सु) गतिवालों पर (पिन्वते) सींचता है, (यत्) जबकि (सुताः) पुत्र [के समान उपासक] (ईम्) प्राप्तियोग्य [परमेश्वर] को (अमन्दिषुः) प्रसन्न कर चुकें ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा की अनन्त शक्तियाँ दुष्टों वा दोषों को इस प्रकार नाश करती हैं, जैसे बड़े सेनापति के हथियार और जो उद्योगी उपासक उसकी आज्ञा मानते हैं, उनको वह मेह के समान अवश्य अत्यन्त सुख देता है ॥४॥
टिप्पणी
४−(शतानीकाः) शतेषु सैन्येषु वर्तमाना यथा (हेतयः) बाणाः (अस्य) (दुष्टराः) दुःखेन तरणीयाः। अजेयाः (इन्द्रस्य) परमेश्वरस्य (समिषः) सम्यग् इच्छाः (महीः) महत्यः (गिरिः) मेघः-निघ० १।१०। (न) यथा (भुज्मा) इषियुधीन्धि०। उ० १।१४। भुज पालनाभ्यवहारयोः-मक्। भुज्मानि। भोग्यवस्तूनि (मघवत्सु) मघ मघी गतौ आरम्भे च-अच्। गतिमत्सु। उद्योगिषु (पिन्वते) सिञ्चति (यत्) यदा (ईम्) ई गतिकान्त्यादिषु-क्विप्। प्राप्तव्यं परमेश्वरम् (सुताः) पुत्र इवोपासकाः (अमन्दिषुः) प्रसन्नं कृतवन्तः ॥
विषय
दुष्टरा हेतयः समिषो मही:
पदार्थ
१. (अस्य इन्द्रस्य) = इस सर्वशक्तिमान् शत्रु-विद्रावक प्रभु के (शतानीका) = सैकड़ों बलोंवाले (हेतयः) = हनन-साधन-आयुध (दुष्टरा:) = कठिनता से तैरने योग्य हैं। इनसे बच निकलना किसी के लिए सम्भव नहीं। इस इन्द्र की (सम् इषः) = उत्तम प्रेरणाएँ भी (मही:) = महनीय व पूजनीय हैं। प्रभु की प्रेरणाएँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । २. (यत्) = जब (ईम्) = निश्चय से (सुता:) = [सुतं अस्य अस्ति इति] सोम का सम्पादन करनेवाले यज्ञशील पुरुष (अमन्दिषु) = [to praise] उस प्रभु का स्तवन करते हैं तब ये प्रभु (मघवत्स) = उन यज्ञशील पुरुषों में (पिन्वते) = धनों का सेचन करते हैं। प्रभु उनके लिए (गिरिः न) = [गरु: न] एक उपदेष्टा के समान होते हैं और (भुज्मा) = उनका पालन करनेवाले होते हैं। गुरु शिष्य को गर्भ में धारण करता हुआ उसका रक्षण करता है। ये यज्ञशील पुरुष भी प्रभु से रक्षणीय होते हैं।
भावार्थ
प्रभु के आयुध दुष्टर हैं। उनकी प्रेरणाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। प्रभु यज्ञशील स्तोता को उचित प्रेरणा देते हुए उसे पालित करते हैं। यह यज्ञशील स्तोता 'मेध्यातिथि' बनता है-निरन्तर पवित्र प्रभु की ओर गतिवाला। यह स्तवन करता हुआ कहता है -
भाषार्थ
(अस्य) इस परमेश्वर के (हेतयः) अस्त्रशस्त्र (दुष्टराः) दुर्लङ्घ्य हैं, (शतानीका= शतानीकानि) जैसे कि सैकड़ों सेनाओं के घेरे दुर्लङ्घ्य होते हैं। और (अस्य इन्द्रस्य) इस परमेश्वर की (महीः इषः) महत इच्छाएँ (सम् तराः) सम्यक् तैरानेवाली हैं। परमेश्वर (गिरिः न) मेघवत् (भुज्मा) भोगसाधन प्रदान करता है। (यदि) यदि (इम्) इस परमेश्वर को (सुताः) निष्पादित भक्तिरस (अमन्दिषुः) प्रसन्न कर देते हैं तो यह, (मघवत्सु) आध्यात्मिक ऐश्वर्यवालों को, (पिन्वते) अपने आनन्दरसों से, या और अधिक आध्यात्मिक ऐश्वर्यों से, (पिन्वते) सींच देता है।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Hundreds of great and invincible forces of this lord almighty, protective, promotive and overladen with sustenance, power and prosperity like the pregnant cloud and abundant mountain, shower gifts of desire and fulfilment on the seekers of excellence and grace when the soma creations of the yajnic celebrants please the lord.
Translation
The great desires or wills of this Alimighty God like the arms hundred points unsurpassed. He like clouds pours the things of enjoyments on the man who perform Yajna (Maghavanah) when the devotees like offsprings please Him with prayers.
Translation
The great desires or wills of this Almighty God like ‘the arms hundred points unsurpassed. He like clouds pours the things of enjoyments on the man who perform Yajna (Maghavanah) when the devotees like off-springs please Him with prayers.
Translation
Many-faced are the invincible weapons of destruction and great are the forces of mobilisation of This Lord of Destruction. He satisfies the fortunate ones to their fill, like the mountain or the cloud, pouring the blessed showers of water to the needy, when the medicinal juices, produced by the devotees, gladden Him,
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(शतानीकाः) शतेषु सैन्येषु वर्तमाना यथा (हेतयः) बाणाः (अस्य) (दुष्टराः) दुःखेन तरणीयाः। अजेयाः (इन्द्रस्य) परमेश्वरस्य (समिषः) सम्यग् इच्छाः (महीः) महत्यः (गिरिः) मेघः-निघ० १।१०। (न) यथा (भुज्मा) इषियुधीन्धि०। उ० १।१४। भुज पालनाभ्यवहारयोः-मक्। भुज्मानि। भोग्यवस्तूनि (मघवत्सु) मघ मघी गतौ आरम्भे च-अच्। गतिमत्सु। उद्योगिषु (पिन्वते) सिञ्चति (यत्) यदा (ईम्) ई गतिकान्त्यादिषु-क्विप्। प्राप्तव्यं परमेश्वरम् (सुताः) पुत्र इवोपासकाः (अमन्दिषुः) प्रसन्नं कृतवन्तः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ
भाषार्थ
(অস্য) এই (ইন্দ্রস্য) ইন্দ্রের [পরম ঐশ্বর্যবান পরমাত্মার] (মহীঃ) পূজনীয় (সমিষঃ) যথাবৎ ইচ্ছাসমূহ (শতানীকাঃ) শত সেনাদলে বিদ্যমান (হেতয়ঃ) বাণসমূহের ন্যায় (দুষ্টরাঃ) অজেয়। (গিরিঃ ন) মেঘের সমান, তিনি [পরমাত্মা] (ভুজ্মা) ভোগ্য পদার্থ সমূহকে (মঘবৎসু) গতিশীলদের প্রতি/ওপর (পিন্বতে) সিঞ্চন করেন, (য়ৎ) যখন (সুতাঃ) পুত্র [পুত্রের সমান উপাসক] (ঈম্) প্রাপ্তিযোগ্য [পরমেশ্বরকে] (অমন্দিষুঃ) পরিতুষ্ট করেন।। ৪।।
भावार्थ
পরমাত্মার অনন্ত শক্তি দুষ্টদের অথবা দোষসমূহকে এমনভাবে বিনাশ করে, যেভাবে শ্রেষ্ঠ সেনাপতির অস্ত্র এবং যেসকল উদ্যমী উপাসক পরমেশ্বরের আজ্ঞা মান্য করে তাঁদের, তিনি বৃষ্টির সমান অবশ্যই পরম সুখ প্রদান করেন।। ৪।।
भाषार्थ
(অস্য) এই পরমেশ্বরের (হেতয়ঃ) অস্ত্রশস্ত্র (দুষ্টরাঃ) দুর্লঙ্ঘ্য, (শতানীকা= শতানীকানি) যেমন শত সেনাদের ব্যূহ দুর্লঙ্ঘ্য হয়। এবং (অস্য ইন্দ্রস্য) এই পরমেশ্বরের (মহীঃ ইষঃ) মহত ইচ্ছা-সমূহ (সম্ তরাঃ) সম্যক্ উদ্ধারকারী। পরমেশ্বর (গিরিঃ ন) মেঘবৎ (ভুজ্মা) ভোগসাধন প্রদান করেন। (যদি) যদি (ইম্) এই পরমেশ্বরকে (সুতাঃ) নিষ্পাদিত ভক্তিরস (অমন্দিষুঃ) প্রসন্ন করে তবে তিনি, (মঘবৎসু) আধ্যাত্মিক ঐশ্বর্যসম্পন্নদের, (পিন্বতে) নিজের আনন্দরস দ্বারা, বা আরও অধিক আধ্যাত্মিক ঐশ্বর্য দ্বারা, (পিন্বতে) সীঞ্চণ করেন।
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