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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 5
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६
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    द॑धि॒ष्वा ज॒ठरे॑ सु॒तं सोम॑मिन्द्र॒ वरे॑ण्यम्। तव॑ द्यु॒क्षास॒ इन्द॑वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द॒धि॒ष्व । ज॒ठरे॑ । सु॒तम् । सोम॑म् । इ॒न्द्र॒ । वरे॑ण्यम् । तव॑ । द्यु॒क्षास॑: । इन्द॑व: ॥६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दधिष्वा जठरे सुतं सोममिन्द्र वरेण्यम्। तव द्युक्षास इन्दवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दधिष्व । जठरे । सुतम् । सोमम् । इन्द्र । वरेण्यम् । तव । द्युक्षास: । इन्दव: ॥६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 6; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रः) हे इन्द्र [सम्पूर्ण ऐश्वर्यवाले राजन्] (वरेण्यम्) अङ्गीकार करने योग्य (सुतम्) सिद्ध किये हुए (सोमम्) सोम [अन्न आदि महौषधियों के रस] को (जठरे) पेट में (दधिष्व) धर, (द्युक्षासः) व्यवहार में रहनेवाले (इन्दवः) रसीले पदार्थ (तव) तेरे [ही हैं] ॥॥

    भावार्थ

    राजा आदि श्रेष्ठ जन उत्तम पदार्थों के सेवन से बल और बुद्धि बढ़ावें ॥॥

    टिप्पणी

    −(दधिष्व) दधातेर्लोट्, सांहितिको दीर्घः। धत्स्व। धरस्व (जठरे) उदरे (सुतम्) संस्कृतम् (सोमम्) अन्नादिमहौषधिरसम् (इन्द्रः) (वरेण्यम्) अ० ७।१४।४। वृञ् वरणे-एण्य। स्वीकरणीयम् (तव) तवैव (द्युक्षासः) दिव्+क्षि निवासगत्योः-डप्रत्ययः, असुगागमः। दिवि व्यवहारे निवासशीलाः (इन्दवः) म० ४। सजलाः। रसात्मकाः पदार्थाः ॥

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    विषय

    धुक्षासः, इन्दवः

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष! तू (सुतम्) = शरीर में उत्पन्न किये गये (वरेण्यम्) = वरणीय (सोमम्) = इस सोम को (जठरे) = अपने जठर में ही अपने ही अन्दर-(दधिष्व) = धारण कर । २. ये सोमकण (तव) = तेरी (यक्षास:) = ज्ञान-ज्योति में निवास का कारण बनेंगे [धु+क्षि] और (इन्दवः) = तुझे शक्तिशाली बनाएँगे।

    भावार्थ

    शरीर में सुरक्षित सोम शक्ति व ज्ञान-वृद्धि का कारण बनता है।

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    भाषार्थ

    जैसे व्यक्ति अन्न को (जठरे) अपने उदर में धारण करता है, वैसे (इन्द्र) हे परमेश्वर! (वरेण्यम्) स्वीकार करने योग्य श्रेष्ठ (सुतं सोमम्) उत्पन्न भक्तिरस को (दधिष्व) आप अपने में धारण कीजिए। (द्युक्षासः) अध्यात्म-प्रकाश देनेवाले और आध्यात्मिक अन्तरायों का क्षय करनेवाले (इन्दवः) भक्तिरस (तव) आपके लिए हैं।

    टिप्पणी

    [द्युक्षासः=द्यु (=प्रकाश)+क्ष=क्षीण करनेवाले।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    Indra, lover of life and health a long age, the soma distilled drop by drop in sunlight is selected for you. Take it, bear it in the stomach, and it will give you the vigour and joy of a full life.

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    Translation

    O Almighty God, you, in the period of dissolution take into your belly, the all-devouring power (material cause) this born and excellent world. All the luminous and powerful worlds are yours.

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    Translation

    O Almighty God, you, in the period of dissolution take into your belly, the all-devouring power (material cause) this born, and excellent world. All the luminous and powerful worlds are yours.

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    Translation

    O glorious God, in the act of the creation of the universe, Thou bearest this spiritual sun, worthy to be attained in deep meditation. All these yogis, shining with the brilliance of yog-samadhi are Thine.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(दधिष्व) दधातेर्लोट्, सांहितिको दीर्घः। धत्स्व। धरस्व (जठरे) उदरे (सुतम्) संस्कृतम् (सोमम्) अन्नादिमहौषधिरसम् (इन्द्रः) (वरेण्यम्) अ० ७।१४।४। वृञ् वरणे-एण्य। स्वीकरणीयम् (तव) तवैव (द्युक्षासः) दिव्+क्षि निवासगत्योः-डप्रत्ययः, असुगागमः। दिवि व्यवहारे निवासशीलाः (इन्दवः) म० ४। सजलाः। रसात्मकाः पदार्थाः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাবিষয়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্রঃ) হে ইন্দ্র [সম্পূর্ণ ঐশ্বর্যবান রাজন্] (বরেণ্যম্) অঙ্গীকার যোগ্য (সুতম্) সংষ্কৃত (সোমম্) সোম [অন্ন আদি মহৌষধিসমূহের রস] কে (জঠরে) উদরে (দধিষ্ব) ধারণ করো, (দ্যুক্ষাসঃ) ব্যবহারে বর্তমান (ইন্দবঃ) রসালো পদার্থ (তব) তোমার [ই] ॥৫॥

    भावार्थ

    রাজাদি শ্রেষ্ঠ ব্যক্তিরা উত্তম পদার্থ সেবন দ্বারা শক্তি ও বুদ্ধি বৃদ্ধি করে/করুক।।৫।।

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    भाषार्थ

    যেমন ব্যক্তি অন্নকে (জঠরে) নিজের উদরে ধারণ করে, তেমনই (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (বরেণ্যম্) স্বীকার যোগ্য শ্রেষ্ঠ (সুতং সোমম্) উৎপন্ন ভক্তিরস (দধিষ্ব) আপনি নিজের মধ্যে ধারণ করুন। (দ্যুক্ষাসঃ) আধ্যাত্ম-প্রকাশ প্রদায়ী এবং আধ্যাত্মিক অন্তরায়ের ক্ষয়কারী (ইন্দবঃ) ভক্তিরস (তব) আপনার জন্য।

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